जातीय समीकरणों में फंसे अभय सिंह, मंजू दे रही है जबरदस्त टक्कर 

भाजपा में दो खेमें खट्टर चेहते अभय को राम इन्द्र का खौफ

भारत सारथी/ कौशिक 

अभय सिंह

नारनौल। प्रदेश में चुनाव की घोषणा होने तक हरियाणा में बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित सीट नांगल चौधरी की मानी जा रही थी। हर आदमी कहता था ‘डॉ अभय सिंह तो जीतेगा, भाई काम बोलता है।’ प्रदेश में मुख्यमंत्री नायब सिंह बनाने के बाद उनको हरियाणा मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री के तौर पर शामिल किया गया। नामांकन होने के बाद स्थिति यह है कि महेंद्रगढ़ जिले की चार सीटों में से बीजेपी की सबसे अधिक फंसी हुई कोई सीट है तो वो नांगल चौधरी है। इस बार अभय सिंह ‘अभय’ नहीं रहे। प्रदेश की नांगल चौधरी सीट पर सबसे कम उम्मीदवार मैदान में है।

मंजू चौधरी

डॉ अभय सिंह यादव ने प्रबंधन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नारनौल और अटेली में भाजपा के नेता बागी होकर चुनाव में कूद गए हैं, लेकिन डॉ यादव ने भाजपा में तो किसी को बागी होने ही नहीं दिया, कांग्रेस के भी जो नेता निर्दलीय लड़कर बीजेपी को नुकसान कर सकते थे उन्हें भी मैनेज कर लिया। मगर कांग्रेस की टिकट चौ. फूसाराम की पुत्रवधू और पूर्व विधायक मूलाराम की पत्नी मंजू चौधरी को मिलने से गुर्जर लामबंद हो गए और किसी भी दूसरे गुर्जर को फॉर्म नहीं भरने दिया। कथित तौर पर बीजेपी प्रत्याशी ने कुछ गुर्जर लोगों को वोट काटने के उदेश्य से चुनाव लड़ने के लिए तैयार भी किया था, लेकिन वे या तो खुद पीछे हट गए या गुर्जर सरदारों ने उन्हें रोक लिया। इसके बाद समीकरण बदल गए हैं। अब यहां भाजपा के डॉ अभय सिंह यादव और कांग्रेस की मंजू चौधरी में सीधा मुकाबला होगा। 

गुर्जरों के मंजू चौधरी के पीछे लामबद्ध हो जाने के बाद अब अहीर भी ऐसा ही प्रयास डॉ अभय सिंह के पीछे जोड़ने का कर रहे हैं। किन्तु डॉ अभय सिंह और राव इन्द्रजीत के बीच चल रही खींचतान इसमें आड़े आ रही है। राव इन्द्रजीत समर्थक अभी भी डॉ के साथ जाने को तैयार नहीं हैं। अहीर वोटों में विभाजन भाजपा की राह मुश्किल कर सकता है। इसके साथ खट्टर द्वारा अभय सिंह के खास आदमी पूर्व जिला प्रधान कंवर सिंह यादव को पंडित रामबिलास शर्मा की जगह बनाए गए प्रत्याशी ने भी उनके लिए नई सिरदर्दी पैदा कर दी। अभय और खट्टर की इस कुटील चाल से ब्राह्मणों के साथ अन्य बिरादरी में तेजी से नाराजगी बड़ी है। महेंद्रगढ़ जिले की चारों सीटों सहित प्रदेश की हर सीट पर भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। नांगल चौधरी में तो राम इंद्र की जोड़ी इस बार अभय के लिए खतरा बन गई है। 

ओमप्रकाश इंजीनियर

विकास की अपेक्षा इस बार यहां जातीय समीकरण अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए हैं। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार यहां अहीरों के लगभग 44 हजार वोट हैं, जबकि गुर्जर वोटरों की संख्या 36 हजार के करीब है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार उसे अनुसूचित जाति के वोट भी मिलेंगे जिनकी संख्या 25 हजार के करीब बताई जा रही है। दूसरी तरह यहां सैनी मतदाता अच्छी संख्या में हैं, जिनके नायब सैनी के मुख्यमत्री बनने के कारण भाजपा के साथ जाने की पूरी सम्भावना थी पर नारनौल में खट्टर समर्थन भारती सैनी के मैदान में कूद जाने के बाद स्थितियां बदल गई है। 

जाट वोट भी यहां 24 हजार के करीब हैं, जो निर्णायक साबित हो सकते हैं। जाट वोटर अक्सर उम्मीदवार की जगह मुख्यमंत्री पद के दावेदार या बड़े जाट नेता को देखकर वोटिंग करते हैं और इस समय प्रदेश में सबसे बड़ा जाट नेता भूपेंद्र हुड्डा को माना जा रहा है, इसलिए कांग्रेस को उम्मीद है कि जाट वोट उसे मिलेंगे। हालांकि अटेली विधानसभा के ओमप्रकाश इंजीनियर जजपा से यहां प्रत्याशी बनाए गए हैं। जजपा और इंजीनियर का कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा। 

ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन यह तय है कि नांगल चौधरी आज के दिन भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट नहीं रह गई है। यहां जीत के लिए भाजपा और डॉ अभय सिंह को पसीना बहाना पड़ेगा। जिस प्रकार पहली बार नांगल चौधरी सीट पर जनता कांग्रेस प्रत्याशी के पीछे एकजुट हो रही है, उससे तो ऐसा ही लगता है।

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