भाजपा कांग्रेस को सैनी बिरादरी की भारती ने बनाया त्रिकोणीय मुकाबला

क्रांतिकारी छक्कड़ ने ललकारा कांग्रेस भाजपा को

भारत सारथी कौशिक 

नारनौल। टिकट वितरण के बाद नारनौल कांग्रेस में भले ही भाजपा की तरह बगावत नहीं हुई और न ही टिकट से वंचित लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में फॉर्म भरे, लेकिन कार्यकर्ताओं में टिकट वितरण को लेकर भारी गुस्सा और निराशा है। वर्ष 2014 के चुनाव में जमानत ज़ब्त होने और 2019 के चुनाव में भी बुरी तरह पराजित होने के बाद नारनौल हल्का छोड़कर अटेली का रुख करने वाले नरेन्द्र सिंह को तीसरी बार नारनौल से टिकट दिए जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं में कोई विशेष उत्साह नहीं है। क्योंकि पिछले पांच साल में उन्होंने नारनौल के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से कोई संवाद किया ही नहीं। बताया जा रहा है कि बीते दिन कांग्रेस प्रत्याशी ने नारनौल के नेताओं और कार्यकर्ताओं को फ़ोन किया, लेकिन अधिकांश नेताओं और कार्यकर्ताओं ने फोन नहीं उठाये।

नारनौल से 2009 में हजकां की टिकट पर जीतने के बाद पार्टी तोड़कर कांग्रेस में जाने से आहत हलके की जनता ने नरेन्द्र सिंह को पिछले दो चुनावों में पूरी तरह नकार दिया। चौ भजनलाल नरेन्द्र सिंह को अपना तीसरा बेटा कहते थे और उसी तरह महत्त्व भी देते थे, किन्तु सत्ता के लालच में चौ भजनलाल से धोखा करके कांग्रेस में शामिल हुए नरेन्द्र सिंह मंत्री तो बन गए, लेकिन लोगों का विश्वास खो बैठे। जनता के मन में एक बात गहरे बैठ गई कि जो अपने धर्म पिता का नहीं हुआ वो जनता का क्या होगा? मंत्री बनकर भी हलके में कोई काम तो करवाया नहीं, उलटे लोगों को नाजायज परेशान किया। इसी का परिणाम था कि 2014 के चुनाव में जमानत तक नहीं बची और 2019 के चुनाव में भी करारी शिकस्त हुई। इस बार क्या होने वाला है कुछ दिन में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

दूसरी ओर भाजपा में भी कोई बेहतर स्थिति नहीं है। प्रदेश भाजपा में आजकल धोखे में बने हुए हैं एक मनोहर लाल खट्टर का दूसरा उनके विरोधियों का। नारनौल की सीट उनके विरोधी राव इंद्रजीत सिंह खास ओम प्रकाश यादव को तीसरी बार दी गई। कहा जा रहा है कि खट्टर खेमे और कांग्रेस प्रत्याशी ने रणनीति के तहत भारती सैनी को मैदान में उतारा है। 

इसके बाद पिछली बार नगर परिषद चुनाव की तरह इस बार भी सैनी समाज ने एकजुट किया गया। सैनी बिरादरी ने भारती सैनी के रूप में अपना प्रत्याशी उतार दिया। सैनी समाज ने नगर परिषद् चेयरपर्सन के चुनाव में निर्दलीय कमलेश सैनी को हरियाणा में सबसे अधिक मतों से विजयी बनाकर अपनी ताकत दिखा चुका है। इसलिए उनके प्रत्याशी को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह दीगर बात है कि नगर परिषद के चुनाव में सैनी समाज को भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का जबरदस्त समर्थन मिला था। उसे चुनाव में एक लाबी द्वारा राव इंद्रजीत सिंह को लेकर एक हव्वा खड़ा किया गया। क्योंकि कमलेश सैनी लगातार कई चुनाव हार चुकी थी इसलिए लोगों में सहानुभूति भी थी।

भारती सैनी खुद भी नगर परिषद् की चेयरपर्सन रह चुकी हैं और भाजपा टिकट की दावेदार थीं। इसलिए फ़िलहाल मुकाबला भाजपा के ही अधिकृत और बागी नेताओं में होता नज़र आ रहा है। पहले ही दो बार नकारे जा चुके और हलके से गायब रहे व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने से कांग्रेस को यहां मुख्य मुकाबले में आने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

अपना तीसरा चुनाव लड़ रहे भाजपा के ओमप्रकाश यादव के खिलाफ़ खूब एंटी इनकम्बेंसी होने के बाद भी उनके युवा पुत्र की मौत के कारण थोड़ी सहानुभूति लोगों में नज़र आ रही है। लोग कह रहे हैं ओमप्रकाश यादव ने काम भले ही नहीं करवाए हों, लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में किसी को नाजायज परेशान भी नहीं किया। 

उधर जेजेपी ने भी सुरेश सैनी को अपना उम्मीदवार बनाकर सैनी वोटों में सेंध लगाने का प्रयास किया है, लेकिन जनाधार खो चुकी जेजेपी इसमें सफल होगी इसकी सम्भावना कम ही नज़र आ रही है।

आप ने रविन्द्र सिंह को टिकट दिया है, जो जाट बिरादरी से सम्बन्ध रखते। संभवत यह पहला अवसर है जब किसी जाट नेता को किसी मान्यता प्राप्त पार्टी ने नारनौल से टिकट दी है। आप पार्टी के निर्णय को विधानसभा की जनता पचा नहीं पा रही।

इनेलो ने भी नरसिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है, लेकिन फ़िलहाल उनकी लड़ाई पार्टी की उपस्थिति दर्ज़ करवाने तक ही सीमित नज़र आ रही है।

विधानसभा चुनाव में एक और चर्चित चेहरा वतन बचाओ मंच के अध्यक्ष उमाकांत छक्कड़ मैदान में है। नगर परिषद् में भ्रष्टाचार और शहर की दुर्दशा के खिलाफ़ लगातार संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी उमाकांत छ्क्कड़ इस बार भी निर्दलीय मैदान में हैं। वे शहीद भगत सिंह की तरह चुनाव का उपयोग लोगों को जागरूक करने के लिए करते हैं। साधन और संसाधनों का अभाव होने के बावजूद वे पूरे उत्साह से चुनाव लड़ते हैं और घर-घर जाकर व्यवस्था परिवर्तन में साथ देने की अपील करते हैं। लोकसभा व नगर परिषद के चुनाव में उन्होंने नोटा को लेकर एक अभियान चलाया था। यहां यह भी बता दे की उमाकांत छक्कड़ अतीत में अमेठी से कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं।

इनके अलावा शुभराम, कृष्णकुमार और शिवकुमार ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया है|

error: Content is protected !!