टिकट काटने के बाद दूसरा झटका, स्टार प्रचारकों की सूची से नाम गायब 

2014 में भाजपा को लाने वाली जोड़ी ‘राम इन्द्र’  को अड़ंगी लगा रहा ‘मोदी यार’ 

संघ -भाजपा खट्टर क्यों बनाए हुए हैं हरियाणा में ‘पावरफुल?’

जिला महेंद्रगढ़ से ब्राह्मण राजनीति खत्म करने की साजिश

अशोक कुमार कौशिक 

भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता एवं महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से बार बार अपना परचम लहराने वाले पंडित रामबिलास शर्मा एक भजन को अक्सर उदाहरण के तौर पर सुनाते हैं, ‘कदै  कदै गादड़ा सूं सिंह हार जावै, समय को भरोसो कोनी कब पलटी मारी जावै।’ यह भजन वर्तमान में उनके ऊपर बिल्कुल सटीक बैठा है। हरियाणा में भाजपा द्वारा अपने दिग्गज नेता ‘दादा’ रामबिलास शर्मा के प्रति दिखाई गई ‘बेरुखी’ सियासतदानों और आम लोगों के गले नहीं उतर पा रही है। एक आश्चर्यजनक कदम के तहत भाजपा ने शर्मा को हटाकर अपने पूर्व जिला अध्यक्ष कंवर सिंह यादव को अहीर समुदाय के प्रभाव वाली महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। महेंद्रगढ़ में 47 साल बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा, जब शर्मा मैदान में नहीं होंगे।

ये वही रामबिलास शर्मा हैं, जिन्होंने उस वक्त प्रदेश में भाजपा का झंडा उठाया था, जब कोई भी नेता ‘भगवा’ टोली का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं था। खास बात है कि 2014 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा ने हरियाणा में अपने दम पर पहली बार सरकार बनाई, तब रामबिलास शर्मा ही भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था। उस राव राजा इंद्रजीत ने भी भाजपा को ज्वाइन कर उसको सत्ता में लाने के लिए पंख लगा दिए। इसके बाद तो भाजपा की देश में लहर चल पड़ी थी। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित करने के बाद रेवाड़ी की सैनिक रैली ने मोहर लगाई थी। 

दोनों को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया गया था। लेकिन मुख्यमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी के आशीर्वाद से मनोहरलाल खट्टर बाजी मार ले गए। भाजपा ने अब महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से पांच बार कमल खिलाने वाले 73 वर्षीय प्रो. रामबिलास शर्मा का टिकट काट दिया। उन्हें एकाएक भाजपा का लालकृष्ण आडवाणी बना दिया गया। इतना नहीं, प्रो. रामबिलास शर्मा को भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची में भी जगह नहीं दी गई, जबकि पार्टी के 40 स्टार प्रचारकों की सूची में पिछले दिनों भाजपा ज्वाइन करने वाली किरण चौधरी का नाम शामिल है। इसके अलावा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में रह चुके अशोक तंवर को भी स्टार प्रचारक बनाया गया है। उसके बाद भी पंडित रामबिलास ने दरियादिली दिखाई और भाजपा में बने रहकर अपनी जगह बनाए हुए प्रत्याशी का समर्थन कर दिया। यहां एक सवाल और खड़ा होता है कि आखिर दादा कि ऐसी क्या मजबूरी थी की इतनी बेइज्जती के बावजूद भी पंडित रामबिलास शर्मा भारतीय जनता पार्टी के साथ बने हुए हैं?

वैसे जिला महेंद्रगढ़ में ब्राह्मण राजनीति को बड़े सुनियोजित तरीके से सभी पार्टियों द्वारा खत्म किया जा रहा है। एक समय था जब नारनौल और महेंद्रगढ़ सीट को ब्राह्मणों की सीट माना जाता था। नारनौल सीट ने बनवारी लाल छक्कड़, अयोध्या प्रसाद शर्मा, पंडित कैलाश चंद शर्मा नसीबपुर वाले, पंडित कैलाश चंद शर्मा अमरपुरा वाले व पंडित राधेश्याम शर्मा जैसे ब्राह्मण नेताओं ने समय-समय पर यहां से जीत दर्ज कर ब्राह्मण राजनीति को आगे बढ़ाया। हरियाणा गठन से पहले जिले की एक और सीट नांगल चौधरी पर वैद्य देवकीनंदन शर्मा का भी कब्जा रहा। महेंद्रगढ़ सीट पर तो भाजपा की दिग्गज पंडित रामबिलास शर्मा का एकक्षत्र राज रहा। वर्तमान में भी भाजपा में उनके कद का कोई बड़ा नेता नहीं है।

बता दें कि प्रो. रामबिलास शर्मा को इस बार यह पूरी उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का मौका देगी। यहां से उन्होंने पांच बार जीत दर्ज कराई थी। हालांकि वे 2019 में चुनाव हार गए थे। प्रो. शर्मा के घर एवं आसपास के क्षेत्र में उनके नाम के पोस्टर भी लग गए थे। वे तकरीबन अपनी टिकट को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। पहली सूची में जब शर्मा का नाम नहीं आया तो उनके समर्थकों को निराश हुई। अंतिम सूची में भी जब उनका नाम गायब रहा तो न केवल शर्मा, बल्कि उनके समर्थक भी टूट गए। सोशल मीडिया में प्रो. शर्मा और उनके समर्थकों के रोने का वीडियो खूब वायरल हुआ है। शर्मा दो बार भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे थे। भाजपा नेता एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने रामबिलास शर्मा से मुलाकात की। उन्होंने कहा, पार्टी उन्हें बेइज्जत तो न करे। भाजपा में रामबिलास शर्मा के नाम के आगे सब ‘बौने’ हैं। ‘हाथी के पैर में ही सबका पैर है’। हरियाणा में भाजपा का झंडा बुलंद करने वाले रामबिलास शर्मा ही हैं। राव इंद्रजीत सिंह ने पार्टी को नसीहत देते हुए कहा, पार्टी टिकट किसी को भी दे, लेकिन बेइज्जत करने का अधिकार किसी का नहीं है।

राव इंद्रजीत के साथ सांसद धर्मवीर भी रामबिलास शर्मा के आवास पर पहुंचे। शर्मा पहले तो चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े रहे, लेकिन बाद में वे पार्टी के निर्णय से सहमत हो गए। उनके मान जाने को लेकर आम जनता में कई धारणाएं बन गई। कोई कह रहा है कि वह मुकदमे के डर से मान गए। तो कोई कह रहा है कि उन्हें ईडी और सीबीआई का भय दिखाया गया। असलियत क्या है? यह राजनीति के गर्भ में है, लेकिन समय आने पर इसका खुलासा अवश्य होगा। यह सारा विदित है कि इस सारे षड्यंत्र की जड़ मनोहर लाल खट्टर है। यहां यह भी सवाल खड़ा होता है कि संघ और भाजपा आखिर मनोहर लाल खट्टर की बैसाखियों पर क्यों खड़ी है? क्या इस षड्यंत्र में संघ भी शामिल है? संघ से जुड़े मास्टर कैलाश का नामांकन होना इस ओर इंगित करता है।

सूत्रों का कहना है कि मनोहर लाल खट्टर के साथ उनके रिश्ते ज्यादा अच्छे नहीं थे। प्रो. शर्मा जब रो रहे थे तो कार्यकर्ताओं ने मनोहर लाल खट्टर को लेकर कई टिप्पणियां की। खट्टर के बारे में कहा गया कि उन्होंने प्रदेश और भाजपा को बर्बाद कर दिया है। खट्टर ने न केवल रामबिलास शर्मा के साथ ऐसा किया अपितु ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु और अनिल विज भी उनकी कुटिल चालों की चपेट में आए। खट्टर नहीं चाहते कि उनके समक्ष कोई ऐसा नेता खड़ा हो जो उन्हें चुनौती दे? यह बात समझ से बाहर है कि भाजपा हाई कमान को सब कुछ जानकारी होने के बावजूद वह खट्टर को क्यों शह दे रही है?

2014 में जब शर्मा, खट्टर सरकार में मंत्री बने थे तो कई अवसरों पर मुख्यमंत्री के साथ उनका टकराव देखने को मिला था। यह भी कहा जाता है कि पीएम मोदी के साथ भी प्रो. शर्मा के रिश्ते ठीक नहीं थे। हालांकि शर्मा के करीब एक भाजपा नेता का कहना था, ऐसा नहीं है। ये सब खट्टर की वजह से हुआ है। 2014 के चुनाव में जीत दर्ज कराने के बाद भाजपा की ओर से खट्टर सीएम बने। चूंकि वे पीएम मोदी की पसंद थे, इसलिए मुख्यमंत्री पद के लिए शर्मा को दरकिनार कर दिया गया। इस बार भी मनोहर लाल खट्टर ने राव इंद्रजीत सिंह की करीबियों में शामिल होने तथा रामबिलास के जीत की आशंका वजह से व भविष्य में उनको चुनौती न दे इस वजह में उनकी टिकट कटवा दी।

प्रदेश की सियासत में यह बात आम जनमानस को अखर रही है कि प्रो शर्मा के साथ भाजपा ने ठीक नहीं किया। 1982 में महेंद्रगढ़ विधानसभा सीट से प्रो. रामबिलास शर्मा ने पहली बार कमल खिलाया था। भाजपा उनके साथ वही पॉलिसी अपना रही है, जो पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ अपनाई गई थी। उन्हें आयु का हवाला देकर मार्गदर्शक मंडल में बैठा दिया गया। उनके साथ मुरली मनोहर जोशी व कई दूसरे वरिष्ठ नेताओं को भी पार्टी में सक्रिय भूमिका से अलग कर दिया गया। प्रो. शर्मा ने कहा, उन्होंने हरियाणा में भाजपा का पौधा लगाया था। जब इसकी छांव में आराम करने का समय आया तो उन्हें अवसर नहीं मिला। कार्यकर्ताओं ने उनसे जब निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का आग्रह किया तो शर्मा भावुक हो उठे। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा, पांच दशक तक उन्होंने झंडा, डंडा व एजेंडा नहीं बदला। अब वह यह झंडा नहीं छोड़ सकते।

कौन हैं रामबिलास शर्मा?

रामबिलास शर्मा पांच बार दक्षिण हरियाणा की महेंद्रगढ़ सीट से विधायक रहे हैं। 2014 में जब हरियाणा में पहली बार बीजेपी ने अपने दम पर सरकार बनाई थी तब रामबिलास शर्मा ही पार्टी के अध्यक्ष थे। उन्हें मनोहर लाल खट्टर की पहली सरकार में शिक्षा मंत्री भी बनाया गया था। 2019 में रामबिलास शर्मा महेंद्रगढ़ से चुनाव हार गए थे। रामबिलास शर्मा ने 1974 में जयप्रकाश नारायण के द्वारा इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। वह कुरुक्षेत्र विवि में प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और तभी से वह हरियाणा में संघ और बीजेपी से जुड़े रहे हैं।

एफआईआर दर्ज कराने के आदेश से नाराजगी

इस बीच, रामबिलास शर्मा के खिलाफ एक पुराने मामले में एफआईआर दर्ज करने के आदेश से रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ की राजनीति में उबाल आ गया है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह ने रामबिलास शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश की निंदा की है। प्रदेश में ब्राह्मणों के अलावा दूसरी जातियों के लोग भी इस बात से बेहद खफा है की रामबिलास शर्मा को उम्र के अंतिम पड़ाव में लज्जित किया जा रहा है। इसका भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

रामबिलास शर्मा ने कहा है कि उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए बड़े-बड़े षड्यंत्र किये जा रहे हैं। शर्मा ने कहा है कि राव इंद्रजीत सिंह का आशीर्वाद उनके साथ है। शर्मा ने कहा कि जब उन्होंने इंदिरा गांधी की परवाह नहीं की तो वह राव इंद्रजीत सिंह के आशीर्वाद से सारे षडयंत्रों को देख लेंगे। 

अहीरवाल में है राव का सियासी असर

राव इंद्रजीत सिंह खुद छह बार सांसद और चार बार विधायक रहे हैं। वह गुरुग्राम और भिवानी महेंद्रगढ़ सीट से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। बीजेपी में आने से पहले वह यूपीए की सरकार के दौरान भारत सरकार में मंत्री थे। 2014 में उनको भी बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया गया था। उनकी खट्टर के साथ तनातनी रही। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद यह तब और बढ़ गई जब उनसे जूनियर मनोहर लाल खट्टर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया और उनको राज्य मंत्री स्वतंत्रता पर बाहर तक ही सीमित रखा। ये तो भाजपा को अहीरवाल में उनके प्रभुत्व का वह अन्यथा उनको भी रामबिलास की तरह दूध में मक्खी की तरह निकाल दिया जाता।

इसलिए दक्षिण हरियाणा में राव इंद्रजीत सिंह के सियासी असर को बीजेपी नकार नहीं सकती। इसके अलावा चौधरी धर्मबीर सिंह भी तीन बार भिवानी-महेंद्रगढ़ की सीट से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं और शर्मा के समर्थन में हैं। उन्होंने अपने बलबूती पर ने केवल गुरुग्राम की सीट जीती अपितु भिवानी महेंद्रगढ़ सीट पर भी चौधरी धर्मवीर को जिताकर अपना रुतबा कायम रखा।

राव बोले- फैसले का होगा असर

महेंद्रगढ़ में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि रामबिलास शर्मा वह शख्स हैं जिन्होंने हरियाणा में बीजेपी को खड़ा किया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पार्टी चाहे टिकट दे या ना दे लेकिन उसे रामबिलास शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं का ‘अपमान’ करने का कोई हक नहीं है। उन्होंने सवाल पूछा कि रामबिलास शर्मा पांच बार विधायक रहे हैं, हरियाणा बीजेपी में ऐसे कितने लोग हैं जो पांच बार विधायक बने हैं। राव ने कहा कि शर्मा की ‘छवि’ को खराब करने के लिए ‘अभियान’ चलाया गया है।

केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बीजेपी का यह फैसला न सिर्फ महेंद्रगढ़ जिले में पार्टी के प्रदर्शन पर असर डालेगा बल्कि पूरे राज्य में इसका असर पड़ेगा।

पूरे हरियाणा में है रामबिलास शर्मा की पहचान

सवाल यह है कि बीजेपी को रामबिलास शर्मा का टिकट काटे जाने से कितना नुकसान होगा? रामबिलास शर्मा क्योंकि दो बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं इसलिए हरियाणा के सभी हलकों में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता उन्हें पहचानते हैं । लेकिन गुड़गांव, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिले में आने वाली विधानसभा सीटों में रामबिलास शर्मा की अपनी एक अलग पहचान है। चूंकि राव इंद्रजीत सिंह और चौधरी धर्मबीर सिंह भी शर्मा के साथ डटकर खड़े हैं इसलिए बीजेपी को गुड़गांव जिले की चार, रेवाड़ी की तीन और महेंद्रगढ़ की चार विधानसभा सीटों पर ज्यादा नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या बीजेपी बड़े सियासी कद वाले इन नेताओं- रामबिलास शर्मा, राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी धर्मबीर सिंह, अनिल विज, कैप्टन अभिमन्यु तथा ओमप्रकाश धनखड़ की नाराजगी मोल लेने के लिए तैयार है?

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