उपभोक्ता के पिता के नाम बिजली निगम रिकॉर्ड में नहीं है बिजली का कोई कनेक्शन
गुडग़ांव, 8 जून (अशोक): पिता के नाम पर बिजली कनेक्शन का बकाया उसके पुत्र का कनेक्शन काटकर वसूलने के मामले की सुनवाई करते हुए सिविल जज अरुण डाबला की अदालत ने बिजली निगम की कार्यवाही को गलत करार दिया है, लेकिन अदालत ने उपभोक्ता द्वारा जमा कराई गई राशि का भुगतान ब्याज सहित वापिस करने का कोई फैसला नहीं दिया है। अदालत के इस फैसले को उपभोक्ता उच्च अदालत में अपील करेगा।
जिले के गांव गढ़ी हरसरु के उपभोक्ता ओमवीर के अधिवक्ता क्षितिज मेहता से प्राप्त जानकारी के अनुसार उपभोक्ता गांव में एक स्कूल चला रहे हैं और स्कूल में बिजली निगम से बिजली का कमर्शियल कनेक्शन भी लिया हुआ है। 30 जनवरी 2019 की सायं बिजली निगम के अधिकारियों ने बिना कोई नोटिस दिए उनका बिजली का कनेक्शन काट दिया गया था। उपभोक्ता का कहना है कि मीटर रीडिंग को लेकर संबंधित लाईनमैन से उनकी दिसम्बर 2018 में कुछ कहासुनी हो गई थी और लाईनमैन ने उन्हें धमकी भी दी थी कि यदि उन्होंने उसकी मांग को पूरा नहीं किया तो वह बिजली का मीटर उतार लेेगा और उनके ऊपर बिजली चोरी का झूठा केस भी बनवा देगा। इसलिए उसका कनेक्शन काटा गया है।
बिजली निगम ने उपभोक्ता को बताया था कि उसके पिता बाबूलाल के नाम से बिजली का मीटर था और वर्ष 2008 से बिजली का उनके नाम पर बकाया चला आ रहा है, जो अब तक एक लाख 22 हजार 665 रुपए बन गया है। इसलिए उसका बिजली का कनेक्शन काटा गया। अधिवक्ता का कहना है कि एक फरवरी 2019 को उपभोक्ता ने बिजली निगम के खिलाफ अदालत में केस दायर कर दिया। तत्कालीन सिविल जज ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि एक लाख 22 हजार 665 रुपए की 20 प्रतिशत धनराशि जो 24 हजार 533 रुपए बनती है, उसे जमा करा दिया जाए। ताकि बिजली निगम काटा गया बिजली का कनेक्शन पुन: जोड़ सके। अधिवक्ता का कहना है कि अदालत में मामले की सुनवाई हुई। बिजली निगम के कर्मचारी ने अदालत में स्वीकार किया कि बाबू लाल का बिजली कनेक्शन ओमवीर के कनेक्शन के पास लगने का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। ओमवीर को बिजली का कनेक्शन तभी दिया गया था, जब उस परिसर में बिजली निगम का कोई बकाया नहीं था।
अधिवक्ता का कहना है कि यह सब बिजली निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से ही संभव हो सका था। अदालत ने जमा की गई राशि को ब्याज सहित उपभोक्ता को वापिस करने का कोई आदेश नहीं दिया है। इसलिए उपभोक्ता उच्च अदालत में जमा की गई धनराशि को 24 प्रतिशत ब्याज दर से वापिस करने की अपील करेगा और इस मामले से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी ह्रासमेंट का मामला अदालत में दायर करेगा। गौरतलब है कि उपभोक्ता भी एक वकील है। उसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक कानूनविद के साथ जब इस प्रकार का व्यवहार बिजली निगम करता है तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा।