छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में विराजमान है भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न, जानें 600 साल पुरानी इन पेड़ो की कहानी राम जी के केवल 3 भाई नहीं, 1 बहन भी थीं, क्यों नहीं मिलता रामायण में उनका उल्लेख? अशोक कुमार कौशिक रावण के मर्दन के बाद भगवान श्रीराम जब वापस सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो उसके कुछ ही समय बाद उन्हें रावण के पराक्रमी भाई सहस्रानन से युद्ध करना पड़ा. उस युद्ध में सहस्रानन ने राम समेत उनकी सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया था. इस प्रसंग का वर्णन अदभुत रामायण में है. ये संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य विशेष है. इस ग्रन्थ के प्रणेता ‘वाल्मीकि’ थे. लेकिन ग्रन्थ की भाषा और रचना से ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में ‘अद्भुत रामायण’ की रचना की गई. क्यों मुस्कुराने लगी थीं सीता दरअसल राज्याभिषेक होने के उपरांत जब मुनिगण राम के शौर्य की प्रशंसा कर रहे थे तो सीता जी मुस्कुरा उठीं. इस मुस्कुराहट में रहस्य था. जब राम ने सीता जी से हँसने का कारण पूछने पर उन्होंने जो जवाब दिया, उससे श्रीराम को एक और युद्ध की तैयारी करनी पड़ी. तब सीता ने सहस्रानन का जिक्र किया सीता ने राम के पूछने पर बताया कि आपने केवल ‘दशानन’ (रावण) का वध किया है, लेकिन उसी का भाई सहस्रानन अभी जीवित है. उसकी हार के बाद ही आपकी जीत और शौर्य गाथा का औचित्य सिद्ध हो सकेगा. ये सुनने के बाद श्रीराम ने अपनी चतुरंग सेना सजाई. उनकी इस सेना में विभीषण, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि सभी थे. उसे ब्रह्मा से क्या वरदान मिला था सहस्त्र रावण यानि सहस्त्रानन रावण का बड़ा भाई था. जब रावण छोटा था तब सहस्त्र रावण अपने छोटे भाई रावण से हमेशा झगड़ता रहता था. इससे नाराज होकर रावण की माता देवी कैकशी ने उसे दूर जाने को कहा. तब सहस्त्रानन वहां से चला गया. वह एक ब्रमांड नाम के मायावी ग्रह पर रहने लगा. उसे ब्रह्मा से वरदान था उसे स्त्री अलावा औऱ कोई भी नहीं मार सकता. राम की बड़ी सेना सहस्रानन से लड़ने पहुंची उस सेना के साथ उन्होंने समुद्र पार करके सहस्रस्कंध पर चढ़ाई की, जहां सहस्रानन का शासन था. सीता भी इस सेना के साथ थीं. युद्ध स्थल में सहस्रानन ने मात्र एक बाण से ही श्रीराम की समस्त सेना एवं वीरों को अयोध्या में फेंक दिया. सीता ने काली का रूप धरकर उसे मारा अद्भुत रामायण कहती है कि रणभूमि में केवल श्रीराम और सीता रह गए. राम अचेत थे. तब सीता जी ने ‘असिता’ अर्थात् काली का रूप धारण किया और तब सहस्रमुख का वध किया. कई काव्यग्रंथों ने भी इसकी चर्चा की हिन्दी में भी इस कथानक को लेकर कई काव्य ग्रंथों की रचना हुई है, जिनका नाम या तो ‘अद्भुत रामायण’ है या ‘जानकीविजय’. 1773 ई. में पण्डित शिवप्रसाद ने, 1786 ई. में राम जी भट्ट ने, 18वीं शताब्दी में बेनीराम ने, 1800 ई. में भवानीलाल ने तथा 1834 ई. में नवलसिंह ने अलग-अलग ‘अद्भुत रामायण’ की रचना की. 1756 ई. में प्रसिद्ध कवि और 1834 ई. में बलदेवदास ने ‘जानकीविजय’ नाम से इस कथानक को अपनी-अपनी रचना का आधार बनाया. सीता बहुत बहादुर थीं उरिया रामायण के अनुसार,रावण का भाई सहस्त्रानन कहीं ज्यादा ताकतवर कहा जाता था, उसने राम के खिलाफ युद्ध में ये दिखाया भी. जिस तरह उसने राम की अयोध्या से आई सेना को छिन्न भिन्न कर दिया. राम को अचेत भी कर दिया. उससे जाहिर होता है कि उसमें रावण से ज्यादा बल था.तब सीता को काली का रूप धरकर पराक्रम दिखाना पड़ा. रामायण में बाल्मीकि के कई छंद हैं, जिसमें सीता को बहादुर महिला कहा गया है. तेलगू में रामायण कहती है कि सहस्त्रानन या सहस्त्र रावण के खिलाफ जब ये लग रहा था कि राम की सेना के पैर उखड़ चुके हैं तो सीता ने पराक्रम दिखाया. उन्होंने रावण से कहीं ज्यादा ताकतवर उसके भाई सहस्त्रानन के सारे सिर काटकर उसको मार दिया. छत्तीसगढ़ का बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. बस्तर को साल वनों का द्वीप भी कहा जाता है. घने जंगल, यहां के वाटरफॉल और नैसर्गिक गुफाएं पूरे देश और विदेशों में भी प्रसिद्ध है. बस्तर में ही भारत का सबसे प्राचीन सागौन का पेड़ है. इस पेड़ की उम्र लगभग 600 साल है. इस पेड़ को भगवान श्री राम का नाम दिया गया है. इसके साथ ही इस पेड़ के ही अगल बगल में तीन और सागौन के पुराने पेड़ हैं जिन्हें लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम से जाना जाता है. इन विशालकाय पेड़ों को देखना अपने आप में रोमांच का अनुभव कराता है. दरअसल इन पेड़ों की वास्तविकता आयु की गणना के हिसाब से देखा जाए तो यह अयोध्या में श्रीराम लल्ला के जन्म स्थान निर्माण के पहले से अस्तित्व में है. एडवेंचर टूरिज्म के लिए प्रसिद्ध इन सागौन पेड़ धरोहरों को देखने यहां कम ही लोग पहुंच पाते हैं. 600 साल से भी अधिक पुराने है सागौन के पेड़ छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर है तिरिया वन ग्राम और यहां से माचकोट का घना जंगल शुरू हो जाता है. यहां कच्चे रास्ते और पहाड़ी नाला पार करके 12 किलोमीटर जंगल के भीतर जाना होता है. इसके बाद वह जगह आती है जहां कटीली तार से इन विशालकाय सागौन के पेड़ों को संरक्षित किया गया है. यह पूरा क्षेत्र विरान व मानव दखलंदाजी से कोसों दूर है. हालांकि इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की बात हमेशा से कही जा रही है. लेकिन अब तक देश-दुनिया से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटको के जानकारी से यह जगह पूरी तरह से अंजान है. माचकोट एरिया के फॉरेस्ट रेंजर दिनेश मानिकपुरी ने बताया कि इस घने जंगल एरिया में इस रेंज के सबसे विशालकाय सागौन टिक के पेड़ों को वन विभाग ने राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का नाम दिया हुआ है. खास बात यह है कि सिर्फ 20 मीटर के दायरे में यह चारों पेड़ एक सीधी कतार में खड़े हुए हैं. इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो त्रेतायुग के यह चारों भाई एक साथ खड़े हैं. इसमें सबसे ऊंचे सागौन का पेड़ जिसकी ऊंचाई 389 मीटर व तने की गोलाई 352 सेंटीमीटर मापी गई है. वही रेंजर ने बताया कि भारत के इस सबसे प्राचीन सागौन पेड़ों की उम्र 600 साल से भी अधिक है. ग्रामीण पेड़ो की करते है पूजा स्थानीय ग्रामीण व जानकार बृजलाल विश्वकर्मा बताते हैं कि भगवान राम का इस दंडकारण्य से गहरा संबंध रहा है. इसलिए इन पेड़ों की उम्र के आधार पर नामकरण राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न किया गया है. ऐसी भी मान्यता है कि कुछ ग्रामीण बरसों पहले सागौन के इस पुराने पेड़ों को काटने पहुंचे थे, लेकिन जैसे ही कुल्हाड़ी चली इन पेड़ों से इंसानी आवाजें आई ,जिसे सुनकर ग्रामीण डर गए तब से इन्हें देव पेड़ मानकर ग्रामीण इन पेड़ों की पूजा करते हैं और दोबारा फिर किसी ने कभी इन पेड़ों को काटने की कोशिश नहीं की. वही इस विशालकाय पेड़ों का पर्यटकों को भी दीदार हो सके इसके लिए इस जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की भी आवश्यकता है. प्रभु राम के जीवन से जुड़ा एक किरदार ऐसा भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. ना ही इस किरदार के बारे में रामायण में उल्लेख मिलता है. ये किरदार है प्रभु राम की बड़ी बहन शांता. राजा दशरथ की एकमात्र बेटी शांता को लेकर कुछ कथाएं प्रचलित हैं. कौशल्या ने दिया था बेटी को जन्म पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ की तीन रानियां थीं. पहली रानी- कौशल्या, दूसरी रानी-सुमित्रा और तीसरी रानी- कैकेयी थीं. प्रभु राम रानी कौशल्या के ही बेटे थे. लेकिन बेटे राम से पहले माता कौशल्या ने एक बेटी शांता को भी जन्म दिया था. शांता चारों भाइयों से बड़ी थीं और कला तथा शिल्प में पारंगत थीं. शांता बेहद रूपवती भी थीं. लेकिन शांता का उल्लेख रामायण में नहीं मिलने के पीछे एक खास कारण था. ...इसलिए नहीं मिलता शांता का उल्लेख दरअसल, राजा दशरथ और रानी कौशल्या की बेटी शांता अपने परिवार के साथ ज्यादा समय तक रही ही नहीं. इसके चलते उनका रामायण में जिक्र नहीं मिलता है. इसके पीछे भी एक वजह है. कथाओं के अनुसार रानी कौशल्या की बड़ी बहन वर्षिणी लंबे समय से नि:संतान थीं. शांता के जन्म के बाद एक बार वे अपनी बहन कौशल्या से मिलने आईं. तब उन्होंने शांता को देखकर कहा कि बच्ची बहुत प्यारी है, क्या वे उसे गोद ले लें. इस वाक्य को सुनकर राजा दशरथ ने उन्हें बेटी को गोद देने का वचन दे दिया. रघुकुल इस बात के लिए हमेशा से विख्यात रहा है कि ‘प्राण जाए पर वचन ना जाए’ तो राजा दशरथ ने अपना वचन निभाते हुए अपनी बेटी को गोद दे दिया. बता दें कि वचन निभाने के लिए प्रभु राम को 14 वर्ष का वनवास काटना पड़ा था. उनके पिता दशरथ ने अपनी पत्नी रानी कैकेयी को वचन दिया था कि वे उनसे कभी भी 2 बातें मनवा सकती हैं और इसी का फायदा उठाते हुए कैकेयी ने राम को वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी मांग ली थी. श्रृंगी ऋषि से हुआ था विवाह कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम की बड़ी बहन का विवाह श्रृंगी ऋषि से हुआ था. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में श्रृंगी ऋषि का मंदिर भी है जहां ऋषि श्रृंगी और राम की बहन शांता की पूजा की जाती है. Post navigation श्री राम की अयोध्या का वो मंदिर, जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने कराया था कायाकल्प ? नव वर्ष की शुरुवात परमात्मा की भक्ति से करो : कंवर साहेब