-अयोध्या में ‘राम की पैड़ी’ का इतिहास जानकर हैरान रह जाएंगे, कैसे पड़ा ये नाम जानें

-क्‍या आप जानते हैं प्रभु राम के जन्‍म की ये रोचक कथा? प्रसाद की खीर से है गहरा संबंध

अशोक कुमार कौशिक 

त्रेतायुग में भगवान विष्‍णु ने अयोध्‍या के राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप में अवतार लिया था. प्रभु राम भगवान विष्‍णु के सातवे अवतार हैं. प्रभु राम हिंदुओं के प्रमुख आराध्‍य देव हैं. प्रभु राम पर लिखे गए रामायण और रामचरित मानस हमारे पवित्र ग्रंथ हैं. एक ओर तुलसीदास जी ने श्री राम को ईश्वर मान कर रामचरितमानस की रचना की है, वहीं आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण में प्रभु श्री राम को मनुष्य ही माना है. यही वजह है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम के राज्यभिषेक तक का ही वर्णन है, जबकि श्री वाल्मीकि ने रामायण में कथा को आगे बढ़ाते हुए श्री राम के महाप्रयाण तक वर्णित किया है.

अयोध्या में 22 जनवरी भव्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी चल रही है. देश भर से लोग पहुंचने वाले हैं, दुनिया भर के राम भक्त इस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है. त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम के रूप में यहां अवतार लिया था. अयोध्या में राम मंदिर के अलावा राम की पैड़ी भी प्रसिद्ध स्थान है, जहां एक नियमित समय में स्नान करने से व्यक्ति के जन्मों का पाप धुल जाते हैं. राम की पैड़ी सरयू नदी के किनारे स्थित घाटों की एक श्रंखला है. पौराणिक मान्यता है कि श्रीराम इसी पैड़ी से होकर सरयू में स्नान करने जाते थे.

राम की पौड़ी को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है, कहा जाता है कि एक बार जब लक्ष्मण जी ने सभी तीर्थों में दर्शन करने का मन बनाया तो श्रीराम ने अयोध्या में सरयू किनारे तट पर खड़े होकर कहा कि जो व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व इस स्थल पर सरयू में स्नान करेगा. उसे समस्त तीर्थ में दर्शन करने के समान पुण्य प्राप्त होगा. माना जाता है कि सरयू के जिस तट पर श्रीराम ने ये बात कही वहीं आज राम के पौड़ी के नाम से प्रसिद्ध है. यही वजह है कि पूर्णिमा पर यहां स्नान का विशेष महत्व है. 

अब चूंकि अयोध्‍या में राम जन्‍मभूमि पर बन रहे नए मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्‍ठा को कुछ ही दिन शेष हैं. तब प्रभु राम के जन्‍म की रोचक कथा जानते हैं. 

पुत्र प्राप्ति के लिए कराया यज्ञ 

विवाह के कई वर्षों बाद तक जब महाराजा दशरथ को संतान प्राप्ति नहीं हुई तो उन्‍होंने पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ कराने की ठानी. इसके लिए श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया. महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया. निश्‍चित समय आने पर सारे अतिथि गण, गुरु वशिष्ठ, ऋंग ऋषि आदि यज्ञ मण्डप में पधारे. फिर महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया. पूरा वातावरण वेदों की ऋचाओं और मंत्रोच्‍चार से गूंज उठा. यज्ञ के बाद समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को सम्‍मानपूर्वक धन-धान्‍य, उपहार देकर विदा किया गया. 

प्रसाद की खीर खाकर गर्भवती हुईं रानियां 

इसके बाद राजा दशरथ यज्ञ के प्रसाद चरा(खीर) को अपने महल में लेकर गए. जहां तीनों रानियों को ये प्रसाद‍ दिया और ये प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया. फिर जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय हो रहा था तब ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने रामलला को जन्‍म दिया. शिशु राम नील वर्ण के, चुंबकीय आकर्षण वाले, बेहद तेजोमय, परम कान्तिवान और अत्यंत सुंदर थे. देखने वाले उस शिशु को देखते ही रह जाते थे. इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी ने एक व रानी सुमित्रा ने दो तेजस्वी पुत्रों को जन्म दिया था.

क्या आप जानते हैं राम की नगरी अयोध्या से भगवान कृष्ण का भी नाता है. आज के लेख में हम आपको अयोध्या से जुड़ी भगवान श्रीकृष्ण की पौराणिक कथा बताने वाले हैं, जिसमें बताया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण प्रभु श्री राम की नगरी अयोध्या आए थे. वहां उन्होंने एक भवन को देखा जो बहुत ही खस्ताहाल में था. कहा जाता है भगवान श्रीकृष्ण ने फिर इस भवन का जीर्णोद्वार कराया था. आइए विस्तार से जानते हैं.

भगवान श्रीकृष्ण ने कराया था जीर्णोद्धार?

धार्मिक कथाओं के अनुसार जरासंध का वध करने के बाद श्रीकृष्ण अयोध्या नगरी आए थे. यहां उन्होंने कनक भवन को एक टीले के रूप में जर्जर हालत में देखा. इस टीले को देखकर भगवान श्रीकृष्ण बहुत आनंदित हुए थे, तब उन्होंने किले की मरम्मत करवाई और भगवान राम और माता सीता मूर्तियां भी कनक भवन ने रखवाई थी. इसका प्रमाण कनक भवन में संरक्षित महाराजा विक्रमादित्य के शिलालेख हैं.

शिलालेख पर श्लोक भी लिखे हैं कि, भगवान श्रीकृष्ण ने टीले पर काफी आनंद का अनुभव किया था, जिसके बाद उन्होंने इसका फिर से मरम्मत कराने का फैसला किया. भगवान श्रीकृष्ण ने टीले का मरम्मत कराने के साथ साथ टीले में भगवान राम और माता सीता की मूर्तियां भी स्थापित की. भगवान श्रीकृष्ण के युगों बाद गंधर्वसेन के पुत्र महाराजा विक्रमादित्य ने कनक भवन का जीर्णोद्धार कराया था.

महाराजा विक्रमादित्य के समय कनक भवन का अलग ही वैभव था. पर ये वैभव कुछ सहस्राब्दियों के बाद फीका पड़ गया. बाद में ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि ने कनक भवन को अलग ही भव्यता प्रदान की थी. रानी कैकई का था कनक भवन?

माना जाता है कि अयोध्या का कनक भवन कैकई का भवन था, जिसे राजा दशरथ ने अपनी पत्नी रानी केकई को भेंट में दिया था. इसी भवन को रानी केकई ने सीता माता को उनकी मुंह दिखाई की रस्म में दिया था.

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