कहा: जब चेते तभी सवेरा; घड़ी वही शुभ है जहां से आपके सत्कर्म शुरू होते हैं। हॄदय को कपट से खाली करो, आपका हृदय ही परमात्मा का घर है : कंवर साहेब सेवा सबसे उत्तम भक्ति है : कंवर साहेब कहा: सेवा से हर कार्य सिद्ध होता है; सेवा मन वचन और कर्म तीनो से होती है। नए साल में संकल्प करो की परोपकार और परमार्थ कमाएंगे : कंवर साहेब कहा: हम दूसरों के दुर्गण नहीं देखेंगे बल्कि अपने भीतर सद्गुण भरेंगे चरखी दादरी/भिवानी जयवीर सिंह फौगाट, 31दिसंबर – जिसका प्रारम्भ अच्छा उसका अंत भी अच्छा ही होता है ऐसे में आने वाले नव वर्ष की शुरुवात परमात्मा की भक्ति से करो। आदि अंत मध्य में है ही परमात्मा तो उसको याद भी तो हमेशा ही रखना चाहिए, लेकिन इंसान इस माया जाल में इतना उलझ गया कि वो इस परमार्थ को ही भूल गया। संत इसी भूली हुई बात को याद दिलाने आते हैं। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने नववर्ष पर होने वाले सत्संग की पूर्व संध्या पर सेवा कार्य हेतु एकत्रित हुए सेवादारों को फरमाया। हुजूर ने फरमाया कि ये बीतता हुआ वर्ष साध संगत के लिए बहुत अच्छा बीता। अब जब नया वर्ष शुरू होने वाला है तो हम बीते हुए वक़्त के अच्छे बुरे समय का मूल्यांकन करके हम बीती से सबक लेकर आने वाला अच्छा कर सकते हैं। हर कोई ये मूल्यांकन करता है।व्यापारी, किसान, दुकानदार, गृहस्थी तो फिर परमार्थ के रास्ते पर चलने वाला साधक को भी अपना मूल्यांकन करना चाहिए क्योंकि परमात्मा मिलन का यही अवसर है। अब जब हमें यह नर देह मिल गई तो हम हिसाब लगाए कि हमने कितना वक्त परमात्मा की भक्ति को दिया है। क्या पता कब सांसो की ये डोर टूट जाये। क्या पता कब ये देह खेह हो जाये। राई घटेगी ना तिल बढ़ेगा तो क्यों नहीं चेत रहे। सन्तो के वचन को पकड़ो बीत गई उसे भूल जाओ और आगे की सुध विचार करो। गुरु जी ने कहा कि काल की मार से अनजान इंसान गफलत में जी रहा है। सांसारिक वस्तुओं के नफा नुकसान में तो हम सिर पटकते हैं लेकिन एक एक सांस जो लाल के मोल की है उसको व्यर्थ जाया कर रहे हैं। हुजूर ने कहा कि चिंता नहीं चिंतन करना सीखो। गुरु की शरण लेने वालो को तो सब कुछ मिल जाना चाहिए लेकिन यदि फिर भी आपको नहीं मिल रहा तो समझो कि आपने अपने आप को तृष्णाओ से मुक्त नहीं किया। हुजूर ने कहा कि प्रभु के भक्त वक़्त की कद्र करना जानते हैं। विचार करो कि जिस कारण ये मानव चोला मिला था क्या उसको हमने पूरा किया। उन्होंने कहा कि सत्संग की सफलता में सेवादारों का बड़ा योगदान होता है। सेवा से हर कार्य सिद्ध होता है क्योंकि सेवा सबसे उत्तम भक्ति है। सेवा, मन, वचन और कर्म तीनो से होती है। सेवा सेवार्थ से दूर कराती है। सत्संग और सेवा अपने निज के सुधार के लिए हैं। हुजूर ने कहा कि कामयाबी तभी मिलेगी जब सन्त मत की भक्ति को समझ लोगे। सन्तमत की भक्ति प्रेम की भक्ति है। तन, मन, धन देकर भी नेह को बचाना है। अपनी परख करो आत्मनिरीक्षण करो फिर आगे बढ़ो। दुसरो को नहीं अपनी चिंता करो। पराई छोड़ कर अपनी ठीक करो। गुरु जी ने फरमाया कि आप दूसरे जीवो से अलग होकर भी अलग क्यों नहीं कर रहे। मेरा मेरी में उलझे हो, छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करते हो फिर आप पशु पक्षियों से अलग कैसे हो। अलग हो तो नेकी करो भलाई करो। मानवता के कल्याण के लिए अपना जीवन लगाओ। सत्संग को रूह में धारण करो ताकि आप पाक साफ बन पाओ। हॄदय को कपट से खाली करो क्योंकि आपका हृदय ही परमात्मा का घर है। उन्होंने कहा कि जब चेते तभी सवेरा। घड़ी वही शुभ है जहां से आपके सत्कर्म शुरू होते हैं। भर्मो से निकलो। परमात्मा ने आपको बुद्धि दी है विवेक दिया है फिर खुदी में क्यों उलझ हो। अहंकार अभिमान क्यों रखते हो। बलिहारी गुरुदेव की तो बहुत गाते और बोलते हो लेकिन क्या वास्तविकता में हारे हो। गुरु तो जानते हुए भी अनजान बन जाता है। गुरु तो सदा आपके लिए गुरु है लेकिन क्या आप शिष्य हुए। गुरु ने तो दीनता, गरीबी और आधीनता का ही प्रचार किया लेकिन आपने उनके वचन को कितना आत्मसात किया। अपनी प्रकृति को सुधारो क्योंकि जैसी आपकी प्रकृति है वैसी ही आपकी वृति होगी। हुजूर ने कहा यह घड़ी बड़ी पवित्र है क्योंकि एक बीत रहा है और नया आ रहा है। ऐसी घड़ी में संकल्प उठाओ की जो बीत गया उससे सबक लेकर हम नए को ऐसा बनाये की इस नए का हमें गर्व हो। इस नए साल में संकल्प उठाओ की परोपकार और परमार्थ कमाएंगे। नए साल में हम दूसरों के दुर्गण नहीं देखेंगे बल्कि अपने भीतर सद्गुण भरेंगे। मां बाप की सेवा का और बड़े बुजुर्गों के आदर का संकल्प उठाओ। सेवा का संकल्प उठाओ। Post navigation उस युद्ध में राम हो गए अचेत और सेना छिन्न-भिन्न …….. तब सीता ने चंडी बन दिलाई जीत हमारी बोलचाल, प्यार, उलाहनों और कहावतों में सदियों से रचे बसे है श्रीराम