साक्षी और बजरंग के विरोध के बाद भारतीय कुश्ती संघ बर्खास्त

सोशल मीडिया पर संसद में मोदी द्वारा राहुल की मिमिक्री धड़ल्ले से शेयर

अशोक कुमार कौशिक 

संसद परिसर में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री विवाद, साक्षी मलिक के कुश्ती छोड़ने तथा बंजरग पूनिया व वीरेंद्र उर्फ गूंगा पहलवान द्वारा ‘पदमश्री’ लौटानें के ऐलान को जाट समाज से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। उपराष्ट्रपति के समर्थन में भाजपा खड़ी हो गई तो साक्षी समेत अन्य पहलवानों के साथ कांग्रेस नेता आ गए हैं। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने विवाद को जाट समाज का अपमान बताया। भाजपा ने भी इस विवाद को जाट समाज से जोड़ते हुए विपक्ष के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन का एलान किया। वहीं, पहलवानों के मुद्दे पर कांग्रेस ने खुलकर समर्थन दिया। 

कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे व सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने पहले बजरंग पुनिया और साक्षी से मुलाकात की। बाद में दोनों को प्रियंका गांधी के निवास पर ले गए। इसी मुद्दे पर कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने बाक्सर वीरेंद्र के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा नेताओं को घेरा।

दरअसल, इन दोनों विवादों के बीच दोनों राजनीतिक दलों का निशाना कहीं और है। हरियाणा में 10 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। उससे पहले लोकसभा के चुनाव भी तय हैं। हरियाणा की आबादी में 23-25 फीसदी जाट हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 40 सीटों पर जाटों का महत्वपूर्ण असर है। 

साल 2014 में भाजपा को जाटों का 25-30 फीसदी वोट मिला था। मगर 2019 के चुनाव में वोट शेयर घट गया। यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जाटों की नाराजगी का पार्टी को नुकसान भी झेलना पड़ा था। भाजपा के धुरंधर जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़, सुभाष बराला और प्रेमलता को हार का मुंह देखना पड़ा। पॉलिटिक्स ऑफ चौधर के लेखक सतीश त्यागी कहते हैं कि 10 से 15 फीसदी जाट वोट अब भी भाजपा के साथ हैं।

सरकार में मंत्री भी हैं। मिमिक्री विवाद को पार्टी इसलिए भुनाने की कोशिश में है, ताकि उसे जाट समुदाय का 15 से 20 फीसदी और वोट मिल जाए। यदि पार्टी को यह वोट शेयर मिलता है तो उसकी जीत आसान हो जाएगी और उसे किसी का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। अब भाजपा मिमिक्री विवाद के जरिये जाट वोट बैंक को दोबारा से अपने साथ जोड़ने की कोशिश में जुटी है।

वहीं, मिमिक्री विवाद के बाद बैकफुट पर खड़ी कांग्रेस को पहलवानों के मुद्दों से उम्मीद जगी है। कांग्रेस साक्षी के कुश्ती छोड़ने के मुद्दे को जाटों के अपमान से जोड़ रही है। एक तरह से कांग्रेस की मजबूरी भी है। हर चुनाव में दूसरी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस को जाट वोट शेयर ज्यादा मिलता रहा है। अगर वह पहलवानों के साथ नहीं खड़े होंगे तो उनके खिलाफ नाकरात्मक संदेश जा सकता है।

इसलिए हरियाणा के कांग्रेस नेता पहलवानों के साथ खड़े हैं। किसी समय दीपेंद्र हुड्डा हरियाणा कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। पहलवानों के साथ भी उनके अच्छे रिश्ते हैं। 

सीएसडीएस-लोकनीति के मुताबिक साल 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जाट समुदाय का 21 फीसदी वोट मिला और वहीं, 2019 में यह वोट शेयर 12 फीसदी बढ़ा।

किसान आंदोलन से जाट समुदाय पहले से ही खफा हैं। अब जब भाजपा को लगा कि ‘मिमिक्री’ की बात को लेकर जाट समुदाय व उसकी खापे उसके खिलाफ होती जा रही है। तो उसने इसकी भरपाई करने के लिए तीन दिन पूर्व ही चुनाव में भारतीय कुश्ती संघ (भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह के समर्थक) सुनील व अन्य पदाधिकारियों को बर्खास्त कर दिया है। 

अब देखना यह होगा ‘शह ओर मात’ के इस खेल में कौन सी पार्टी (भाजपा या कांग्रेस) जाट समुदाय को साधने में सफल रहेगी। पर यह निश्चित है दोनों पार्टियों लोकसभा चुनाव में हर छोटे से छोटे मुद्दे को बनाने में पीछे नहीं रहने वाली। संसद से बाहर की गई जिस मिमिक्री को लेकर भाजपा आंदोलित है वही दो दिन से सोशल मीडिया पर स्वयं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राहुल गांधी की संसद में की गई मिमिक्री धड़ल्ले से शेयर की जा रही है।

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