-गुरू के आश्रम में जाने, ना जाने के लिए बहाने, किस्मत की बात ना करें
-शुभ वाटिका में चार दिवसीय सत्संग कार्यक्रम का हुआ समापन

गुरुग्राम। आनंदमूर्ति गुरूमां ने चार दिवसीय सत्संग कार्यक्रम के अंतिम दिन गुरू अमरदास जी की गुरूबाणी के शब्द-सतगुरू की सेवा सफल है, जे को करे चित लाय, सतगुर की सेवा सफल है…से आनंदमूर्ति गुरूमां ने सत्संग आरम्भ किया।

अपने प्रवचनों में आनंदमूर्ति गुरूमां ने कहा कि एक समय था हमारी संस्कृति में गुरूकुल परम्परा थी। गुरू-शिष्य का अटूट रिश्ता होता था। अब हमारे यहां गुरूकुल परम्परा नहीं रही। जरूरी है कि इस परम्परा का स्कूलों में निर्वहन किया जाना चाहिए। स्कूलों में नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। स्कूलों में भारत के महापुरुषों के जीवन के बारे में बताओ। रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना रानी दुर्गावती ने अद्भुत जीवन जिया है, वह बच्चों को बताया जाए। गुरूमां ने आश्रम में आने को भी भगवान के भरोसे छोड़ दिया जाता है। उन्होंने कहा कि यह सोच सही नहीं है कि अगर भगवान ने चाहा तो आश्रम में जरूर आएंगे। तुम शादी के लिए लडक़ा-लडक़ी ढूंढते समय ऐसा नहीं सोचते। दूसरे अच्छे कार्यों के लिए भी बहुत मेहनत करते हो। अध्यात्म के लिए इतनी मेहनत नहीं करते।

अध्यात्म के लिए समय निकालें। गुरुओं के आश्रम आएं। ऑनलाइन सत्संग सुनने वालों को सत्संग में आने का संदेश देते हुए गुरूमां ने कहा कि ज्ञान की ऊष्मा, ऊर्जा का आनंद लेना है तो सत्संग में आना पड़ेगा। ऑनलाइन से काम नहीं चलेगा। जो ऑनलाइन सत्संग सुनते हैं, उनके साथ रिश्ता अच्छा नहीं बनता। सत्संग में आकर रिश्ता मजबूत बनाओ। उन्होंने कहा कि चार दिन के सत्संग के चार वाक्य भी शायद याद ना रहें, लेकिन यहां बैठकर जो अनुभूति ले रहे हो उसे नहीं भूल पाओगो।

दानियों द्वारा अपने नाम के पत्थर लगवाने पर गुरूमां ने कहा कि अपने नाम के लिए पैसे दिए या ईश्वर केप्रेम में पैसे दिए। एक आदमी दस करोड़ की बेईमानी करे, 10 लाख रुपये दान दे, क्या इसे दान माना जाएगा। भगवान को पैसा नहीं तुम्हारा भाव प्यारा है। यह तुम्हारा सौभागय होता है कि तुम कमाई करके धर्म में खर्च कर रहे हो। ईश्वर ने हमें सब कुछ दिया, क्या ईश्वर ने कभी कोइ्र अहसान जताया कभी। ऐसी ही सोच के बनों। दान नाम के लिए नहीं काम के लिए करो। जब तुम लोभी होते हो तो चिंता होती है। एक चिंता यह कि मुझे और मिल जाए। दूसरी यह कि जो मिला वह चला ना जाए। लोभ बहुत दुख देता है। कर सको तो दुख का निवारण कर लो। ग्रंथों में यहां तक आया कि कोई पैसा लेकर वापिस ना दे और वही व्यक्ति उसका बेटा बनकर उसके घर में पैदा होगा। उसकी प्रॉपर्टी भी लेगा। गुरूमां ने कहा कि कर्मों का हथोड़ा पीछे ही नहीं, अंदर भी चलता है। कोई किसी को दुख नहीं दे सकता। सुख, दुख अपने कर्मों से आते हैं।

इससे पूर्व मंच संचालन करते हुए आनंदमूर्ति गुरूमां आश्रम के ट्रस्टी बोधराज सीकरी ने कहा कि गुरूमां की शैली अद्भुत है। प्रवचनों में सीख है। ज्ञान को विज्ञान में परिवर्तित करना गुरूमां ने बखबूी सिखाया है। उन्होंने आगे कहा कि गुरूमां ने चार दिन में चिंता का कारण, उसका निवारण, पर्यावरण, आध्यात्मिक ज्ञान, जीवन शैली, जीने की कला सिखाई।

इस अवसर पर डा. परमेश्वर अरोड़ा आयुर्वेदाचार्य, डीएन कवातरा समाजसेवी, अत्तर सिंह संधू भाजपा किसान मोर्चा, हरीश गुप्ता हरेरा, भारत भूषण आर्य, धर्मेंद्र बजाज, गजेंद्र गोसाईं, नरेश चावला, डा. पूजा शर्मा एडवाइजर मेदांता अस्पताल, डा. सुशीला कटारिया वरिष्ठ चिकित्सक, सतीश आहुजा, राजबीर राणा, राजेश आहुजा, शालू, नवीन, श्याम सुंदर बीजेपी वरिष्ठ नेता, अंतरराष्ट्रीय मंच पर ख्याति प्राप्त दादी-पोती गीता-आशिका गोदारा, विश्व जागृति मिशन से चंदोक ने आनंदमूर्ति गुरूमां का अभिनंदन करके आशीर्वाद प्राप्त किया।

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