गृहस्थ का पूर्ण धर्म निभाओ; मन को पाक साफ रख कर अपने आप को सत्कर्मों में बांधो यही सबसे बड़ा रक्षाबंधन है : कंवर साहेब
रक्षाबंधन पर राधास्वामी आश्रम में साध संगत का उमड़ा जन्म सैलाब

चरखी दादरी जयवीर सिंह फौगाट,

30 अगस्त, सन्त सतगुरु शिष्य को जगाने का और उसकी भटकन मिटा कर उसे सत का मार्ग दिखाने का कार्य करते हैं। जीव पर अनेको बन्धन हैं और सतगुरु इन्हीं जगत बन्धनों को काटते हैं और उसे परमात्मा के बंधन में बांधने का कार्य करते हैं। सतगुरु अपने जीव को सूत का धागा नहीं बांधते वे भाव का और भक्ति का धागा बांध कर उसे अनेको झीने और गाढ़े बंधनो को काटते हैं। रक्षाबन्धन का त्यौहार भी इसी तरह के पाक पवित्र बंधन का स्मरण कराता है। 

दादरी शाखा का यह वार्षिक सत्संग और भंडारा रक्षाबंधन के पर्व के अवसर पर संपन्न होता है। साध संगत को रक्षाबंधन की शुभकामना देते हुए हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि वैसे तो इस त्यौहार की अनेको कहानियां और प्रसंग हैं। हमें प्रसंग चाहे ना पता हो लेकिन हमें इसके महत्व को अवश्य जानना है। हर त्यौहार के पीछे एक संदेश छुपा होता है और वैसा ही प्रेरक सन्देश रक्षाबन्धन के पीछे भी है। रक्षा बन्धन का पर्व जहां कृष्ण द्रौपदी से जुड़ा है वहीं राजा बलि से भी जुड़ा है। कृष्ण जी ने जब शिशुपाल का वध किया तो सुदर्शन से उनकी उंगली कट गई तब द्रौपदी ने अपने चीर से उनकी उंगली पर पट्टी बांधी और बदले में जब द्रौपदी का चीर हरण होने लगा तो श्री कृष्ण ने उसका चीर इतना बढ़ा दिया कि दुशाशन का पराक्रम थक गया लेकिन चीर खत्म नहीं हुआ। दूसरे प्रसंग में राजा बलि ने भगवान विष्णु को पाताल लोक में अपनी पहरेदारी करने के वचन में बांध लिया था। जब लक्ष्मी को इस बात का पता चला तो उसने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध कर विष्णु को मुक्त करने का वचन ले लिया। तब से रक्षाबंधन का पर्व प्रचलित है।

हुजूर ने कहा कि और ना जाने कितने प्रसंग इस पवित्र त्योहार से जुड़े हैं। सिकन्दर पूरी दुनिया पर विजय करना चाहता था। जब वह हिंदुस्तान में आया तो राजा पुरु ने उसका डट कर मुकाबला कर दिया। सिकन्दर को हार का डर हुआ लेकिन सिकन्दर की पत्नी ने उसे भारतीय त्योहार की पंरपराओं के बारे में बताया और पुरु को राखी भेज कर सिकन्दर की विजय का आशीर्वाद मांगा। चितौड़ की रानी ने भी हुमायूं को राखी भेज कर अपनी रक्षा का वचन लिया था। यह केवल बहन भाई के रिश्ते का ही त्यौहार नहीं है। यह तो पिता पुत्र मां बेटा गुरु शिष्य के नातो का भी त्यौहार है। गुरु जी ने कहा कि इंसान पर बंधन अनेक हैं देह का नाते रिश्तेदारों का गोती नातियों पुत्र पुत्रियों का। ये सब बंधन हमें परमात्मा से विलग करते हैं लेकिन एक बंधन है जो हमें इन बंधनों से मुक्त करके परमात्मा के बंधन में बांधने का काम करता है वो है गुरु। गुरु भक्ति दृढ़ के करो ताकि आपके भरमों का निवारण हो जाये। 

स्वामी जी महाराज फरमाते है कि पहला बंधन पड़ा देह का, दूसरा त्रिया जान। तीसरा बंधन पुत्र विचारो, चौथा नाती जान।

नाती के कहूं नाती होवे, वा को कौन ठिकान। धन-संपत्ति और हाट-हवेली, यह बंधन क्या करूं बखान। चौलड़-पचलड़-सतलड़ रसरी, बांध दिया तोहे बहू विधि तान। मरे बिना तुम छूटो नाहीं, जीते जी धर सुनो न कान।

“गुरु महाराज जी ने कहा कि सब कुछ मन के लिए कर रहे हैं। कुछ प्रयास रूह के लिए भी करो। संसार की तरफ तो जागे हुए है लेकिन रूह की तरफ से गहरी निंद्रा में सोए है। इसी निंद्रा में हमने 84 लाख यौनियो में अनेको भटके खाये। कभी हम अंडे से पैदा हुए कभी जेर से कभी जल से तो कभी पसीने से लेकिन अब जब इंसानी यौनि मिल गई तो अब तो चेतो। इसी जीवन मे मुक्ति पाओ। सुबह शाम ध्यान करो, नाम का सुमिरन करो। ये किताबो से नहीं आएगा ये करनी से आएगा। करनी तभी होगी जब करनी का गुरु मिलेगा। हुजूर ने कहा कि इंसान हो तो इंसान का धर्म निभाओ। जिस प्रकार वैध, राजा और न्यायधीश किसी के साथ पक्षपात नहीं करते वैसे ही संत सतगुरु भी पक्षपात नहीं करते। उन्होंने कहा कि नेकी का ढिंढोरा मत पीटो। इंसान को और चाहे कुछ दो या ना दो अगर दुख की घड़ी में सांत्वना दे दोगे तो भी उसके लिए बहुत बड़ी बात है। गुरु जी के कहा कि प्रकृति का नियम है कि जो देगा वो बदले में कुछ ना कुछ अवश्य पायेगा। यही राखी के पर्व का संदेश है कि राखी के बदले पूरी जिंदगी रक्षा का वचन मिलता है।

हमारे सभी त्योहार परम्पराओ के अधीन है जो अनेको शिक्षाएं देती हैं। हुजूर ने कहा कि रक्षाबंधन का यही संदेश है कि गृहस्थ का पूर्ण धर्म निभाओ। मन को पाक साफ रख कर अपने आप को सत्कर्मों में बांधो यही सबसे बड़ा रक्षाबंधन है। वचन का बंधन बहुत बड़ा होता है। जो वचन को तोड़ता है उसे कष्ट भी उठाना पड़ता है। रक्षाबन्धन का पर्व यह संदेश भी देता कि हमें भाई, पिता, पुत्र, शिष्य सब नाते ईमानदारी और सच्चाई से निभाने चाहिए। किसी को दुख पीड़ा मत दो। जैसे झील में फेंके कंकर से उठी लहर उसके किनारे तक जाती है वैसे ही आपके द्वारा किया गया गलत कर्म आपका आखिरी छोर तक पीछा करता है।

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