भरतेश गोयल

गिरगिट की तरह पल – पल रंग बदल रहे महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक हालात ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या 2023 के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छतीसगढ़ के विधानसभा चुनावों के साथ ही न केवल हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव बल्कि साथ ही लोकसभा चुनाव की भी घोषणा की जा सकती है l विभिन्न न्यूज़ चैनलों द्वारा किए गए ताज़ा सर्वेक्षण से यह बात तो स्पष्ट होती है कि लोकप्रियता के मापदंड पर प्रधानमंत्री मोदी अभी भी सर्वोच्च स्थान पर हैं लेकिन हाल के दिनों में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ काफ़ी नीचे गिरा है l

राजस्थान में जहाँ कांग्रेस आपसी फूट को नियंत्रित करने की भरपूर कोशिश कर रही है, वहीं पर मध्यप्रदेश व राजस्थान दोनों प्रदेशों में ही भाजपा को भी भारी असंतोष का सामना करना पड़ रहा है l रमन सिंह को दरकिनार करने के बाद भाजपा में छत्तीसगढ़ में कोई ऐसा नेता नहीं है जो विधानसभा चुनाव में पार्टी की बागडोर संभाल सके l ऐसे में इन तीन राज्यों में यदि भाजपा की हार होती है तो भाजपा के लिए स्थिति को नियंत्रण में रखना आसान नहीं होगा तथा पार्टी में बगावत की सम्भावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता जिसका जोखिम प्रधानमंत्री मोदी कभी भी नहीं ले सकते l हरियाणा में सरकार के प्रति लोगों में बढ़ते असंतोष और महाराष्ट्र में शिंदे गुट के विधायकों पर दलबदल क़ानून की लटकती तलवार के मद्देनजर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वक़्त से पहले ही मोदी जी लोकसभा चुनावों की घोषणा कर सकते हैं l

हालांकि एन सी पी में हाल में ही हुई दोफाड़ से विपक्षी एकता के प्रयासों को धक्का जरूर लगा है लेकिन जिस प्रकार से पटना में 23 जून को 15 प्रमुख विपक्षी दल लामबंद हुए उससे भाजपा हाईकमान सतर्क और चिंतित जरूर हो गया है जिसका परिणाम हड़बड़ाहट व जल्दी में महाराष्ट्र में उठाया गया कदम है l सरकार में शामिल भाजपा, शिंदे गुट व अजीत पवार गुट तीनों के ही विधायक न केवल अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर काफ़ी चिंतित और सशंकित हैं बल्कि कभी भी बगावत पर आमादा हो सकते हैं, अतः आगामी सप्ताह में महाराष्ट्र की सियासत में कोई नया भूचाल आ जाए तो किसी को कोई हैरानी नहीं होगी l

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पिछले दिनों ही अपने मुखपत्र में भाजपा को चेतावनी देते हुए लिखा था कि आगामी चुनाव में हिंदुत्व व मोदी लहर के बल पर भाजपा चुनाव नहीं जीत सकती, यदि उसे चुनाव जीतना है तो उसे अपनी रणनीति में परिवर्तन करना पड़ेगा तथा विभिन्न प्रदेशों में वहाँ के कद्दावर नेताओं को उचित मान सम्मान देकर उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ना होगा l 24 X 7 चुनावी मोड़ में रहने वाली भाजपा ऐसे में जल्दी चुनाव करवा कर जीत का वरण करना चाहेगी, हालांकि 2004 में ‘ भारत शाइनिंग ‘ नारे के बल पर अटल बिहारी वाजपेयी ने भी समय से पूर्व लोकसभा चुनाव करवा कर सभी को अचंभित कर दिया था लेकिन उसका जो हश्र हुआ, उसे देखकर भाजपा बड़ा फूँक फूँक कर कदम रखने का प्रयत्न कर रही है l विपक्षी दलों को तैयारी का कोई अवसर न देकर अचानक ही लोकसभा चुनावों की घोषणा की संभावना सबसे ज्यादा प्रबल प्रतीत होती है l कर्नाटक विधानसभा में हुई करारी हार ने भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को आत्म मंथन करने पर विवश कर दिया है, ऐसे में आगामी दो तीन माह में कोई बड़ी घोषणा हो जाए, ऐसा कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l इंतजार कीजिये और देखिये कि राजनीति का यह ऊँट किस कदर करवट बदलता है?

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