भारत सारथी/ कौशिक

हरियाणा में राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा को लेकर आ चुके हैं। उनको इस यात्रा से क्या हासिल होगा भारत को जोड़ने के साथ ही कांग्रेस को वो कितना जोड़ पाएंगे ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन यात्राएं अपने आप में एक अनोखा अनुभव होता है। नेताओं के लिए तो यात्राएं और भी महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि वो आम जनमानस से ज्यादा जुडाव महसूस करते हैं और जनता की तकलीफों को उनके निकट जाकर समझ सकते हैं। देश में जितने भी बडे़ नेता हों चाहे वो गांधी जी हों या दूसरे सब पदयात्राओं से ही जननेता बने हैं। 2022 के आखिर में राहुल गांधी की ये यात्रा हरियाणा की धरती से गुजर रही है लेकिन पदयात्राओं और हरियाणा के नेताओं का बहुत पुराना नाता है। असल में पूरे देश की राजनीति को यात्राओं से जुड़ाव की राह भी हरियाणा ने दिखाई अगर ये कहा जाए तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होंगी।

हरियाणा में पदयात्रा करने वाले पहले नेता थे जननायक ताऊ देवीलाल। राजीव लोंगोवाल समझौते में जब हरियाणा के हितों की अनदेखी हुई तो चौधरी देवीलाल तिलमिला उठे थे। उन्होंने हरियाणा के लोगों को साथ लेकर देश को पहली बार जनआक्रोश का रूप पदयात्रा से दिखाया था। चार दिसंबर 1985 को चौधरी देवीलाल ने हिसार से लेकर दिल्ली तक की पदयात्रा शुरू की थी। ये पदयात्रा 1987 आते आते चौधरी देवीलाल की लहर में बदल गई। शुरुआत में तो उनके साथ बीस पच्चीस ही आदमी चले थे लेकिन 19 दिसंबर को जब वो दिल्ली पहुंचे तो हरियाणा के लाख आदमियों का काफिला उनके साथ था। उनका साथ देने के लिए उसी समय दो उप यात्राएं भी शुरू हुई थी। भिवानी से हीरानंद आर्य जी ने और नरवाना से देशराज नंबरदार ने भी यात्राएं की और ये सब जाकर चौधरी देवीलाल की जन जागरण न्याय यात्रा में शामिल हो गई। गांवों में चौधरी देवीलाल का भारी स्वागत होता गया और जगह- जगह पर उनको सिक्कों से तोला जाता था। हरियाणा के जन जन से जो जुड़ाव इस यात्रा का हुआ उसने चौधरी देवीलाल को जननायक बना दिया। उन्होंने इसके बाद न्याय युद्ध रैली और रास्ता रोको का भी ऐलान किया। यात्रा का हरियाणा के जनमानस पर गहरा असर हुआ और 1987 में ताऊ देवीलाल की हरियाणा में आंधी और उन्होंने पिच्चासी सीटें जीतकर इतिहास रचा।

यात्राओं से सत्ता के मार्ग को उनके बेटे चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने भी समझा और शारीरिक क्षमताएं उनके आड़े आ रही इसलिए उन्होंने यात्रा तो की लेकिन पैदल की जगह उसमें किसान का साथी ट्रैक्टर को जोड़ दिया। चौधरी भजनलाल की सरकार के दौरान 12 मई 1994 को यमुना जल समझौता हुआ था। इस पर चौधरी भजनलाल ने भी हस्ताक्षर किए थे और समझौते के अनुसार यमुना के पानी में राजस्थान, हिमाचल और दिल्ली को भी सांझीदार बनाया गया था। ये समझौता आज तक चल रहा है। नये समझौते के अनुसार यमुना जल के पानी में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान, हिमाचल तथा दिल्ली को भी साझीदार बनाया गा। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री ने समझौते का आधार ठगी की भाषा में केवल मानवीय बताया। समझौते के अनुसार हरियाणा को 5.730 अरब घन मीटर, उत्तर प्रदेश को 4.032 अरब घन मीटर, राजस्थान को 1.119 अरब घन मीटर, हिमालच को 0.378 अरब घन मीटर तथा दिल्ली को 0.724 अरब घन मीटर पानी दिया गया। पूरे पानी की कुल मात्रा 11.983 अरब घन मीटर बनती थी और उक्त समझौते से पहले हरियाणा लगभग 8 अरब घन मीटर पानी का प्रयोग कर रहा था जबकि नये समझौते से हरियाणा का हिस्सा 6 अरब घन मीटर से भी कम हो गया। एसवाईएल नहर पानी हरियाणा को मिलना तो दूर रहा वह अपने वास्तविक पानी से भी हाथ धो बैठा।

नहरी पानी के नये समझौते के बाद हरियाणा विधानसभा में भी और विधानसभा के बाहर भी सभी विपक्षी दलों तथा आम जनता ने भी हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. भजनलाल को लान-तान देकर कोसना शुरू किया। चौ. भजनलाल के पास केवल एक ही उत्तर था कि उन्होंने समझौता केवल मानवीय आधार पर किया है। चौ. बंसीलाल का कहना था कि क्या इस देश को मानवता का ठेका हरियाणा ने ही लिया हुआ है और उस हरियाणा ने जो उस पानी के रहते भी प्यासा था और अब तो और प्यासा हो गया।

पदयात्राओं से सत्ता की दहलीज तक पहुंचने का ये हिट फार्मूला तीसरी बार प्रदेश में आजमाने का श्रेय भूपेंद्र सिंह हुड्डा का को जाता है। चौटाला सरकार के दौरान कंडेला की घटना के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 20 जून 2002 को जींद से दिल्ली तक की पदयात्रा शुरू की। देखते ही देखते हुड्डा की ये पदयात्रा जनसैलाब में बदल गई। जब ये यात्रा दिल्ली पहुंची तो लग रहा था कि पूरा दिल्ली ही हरियाणा हो गया है। रामलीला मैदान में एक विशाल रैली हुई और इसमें चौधरी भजनलाल को तो हुटिंग करने वालों ने बोलने ही नहीं दिया। कांग्रेस में कलह बेशक रही हो इस यात्रा ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को 2005 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा ही दिया।

अजय सिंह चौटाला भी पदयात्रा करके सांसद बने हैं और प्रदेश के कई नेता भी अपने इलाकों में पदयात्राओं से जनमानस के बीच अपनी छवि को मजबूत कर चुके हैं। अब राहुल गांधी की हरियाणा में पदयात्रा को सफल बनाने का जिम्मा भूपेंद्र सिंह हुडडा के हाथ में और अपनी पदयात्रा का कितना अनुभव इसमें काम आएगा ये तो 2024 में पता चलेगा लेकिन इस बहाने सही नेता जनता तो जाते ही हैं।

चौ. ओमप्रकाश चौटाला ने तो अपनी पार्टी की ओर से उक्त समझौते को रद्द करवाने के लिये एक विधिवत आन्दोलन चलाने की घोषणा कर दी तथा एक नवम्बर सन् 1994 को नारनौल में एक भारी सभा बुला कर नारनौल से चण्डीगढ़ तथा हरियाणा के बीचों-बीच ट्रैक्टर-ट्रालियों द्वारा हजारों लोगों के काफिले के साथ विरोध मार्च किया और फिर चण्डीगढ़ पहुंचकर भी एक भारी सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस यात्रा ने भी चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को चौधरी देवीलाल की छाया से निकालकर एक परिपक्व राजनेता बनने का अवसर दिया और उनकी जो छवि महम कांड में बनी थी वो अब बदलकर एक मजबूत राजनेता के तौर पर बनीं।