परहित से बढ़ कर ना कोई कर्म है ना कोई धर्म : कंवर साहेब 
बुरे आदमी का एक छोटा सा विचार भी आपकी अच्छाई को डिगा सकता है।
इस दौरान लाखों की संख्या में साध संगत का जनसैलाब उमड़ा, 200 यूनिट रक्त का दान किया गया।

चरखी दादरी/भिवानी जयवीर फौगाट,

8 नवंबर – सत्संग का एक एक वचन जीव की भलाई का होता है इसलिए सत्संग में आंख कान और हृदय खुले रख कर बैठो ताकि आंखो से गुरु के दर्शन कर सको कान से सत्संग वचन सुन सको और हृदय में उन वचनों को सजा सको। आपका जीवन आपके कर्मो या परिणाम है। जैसे कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे। कर्म अगर परहित और निस्वार्थ है तो वो आपका भी कल्याण करता है और औरों का भी। परहित से बढ़ कर ना कोई कर्म है ना कोई धर्म। आज हम जिस संत शिरोमणी का अवतरण दिवस मना रहे है उन्होंने भी। कर्म सुधारने पर ही बल दिया है। नानक साहेब परहित और परोपकार की प्रतिमूर्ति थे। यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने नानक देव जी के अवतरण दिवस पर आयोजित सत्संग में फरमाए।

हुजूर ने कहा कि आज का दिन संत शिरोमणि गुरु नानक देव जी का अवतरण दिवस है। नानक साहब कुल मालिक के रूप थे जिन्होंने देह धारण कर इस जीव के कल्याण का मार्ग सुझाया। उन्होंने कहा कि संतो का वचन ऐसा मंत्र होता है जिसको मान कर हम अपना जगत और अगत को सुधार सकते हैं। आज जिस संत सतगुरु का हम अवतरण दिवस मना रहे हैं उनके बारे में जन्म लेते ही यह भविष्यवाणी हो गई थी ये बहुत पवित्र आत्मा है जो लोगो को जीते जी परमात्मा का जहूर दिखाएगी। नानक साहेब ने सांसारिक विद्या को लेने से यह कर इंकार कर दिया था कि जो विद्या मैं पढ़ने आया हूं वो इसमें नहीं है। उनके पिता ने लाख कोशिश की कि इसके मन को भक्ति से हटा कर सांसारिक माया में लगा दूं लेकिन नानक साहब के ऊपर उसका असर नहीं हुआ। पिता ने पैसे देकर कहा कि इनसे कोई सच्चा सौदा करना। नानक साहब ने उन पैसों से गरीब दुखी लोगो को खाना खिला दिया। पिता ने जब धमकाया तो बोले कि आप ने ही कहा था कि सच्चा सौदा करना अब किसी भूखे का पेट भरने से सच्चा सौदा क्या हो सकता है।

हुजूर ने फरमाया कि पूरा जीवन उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रमो को हटाने में लगा दिया। यहा तक कि एक बार मक्का में जाकर पवित्र मस्जिद की और पैर करके सो गए। एक पक्का मुस्लमान ने आकर जब टोका तो नानक साहब ने कहा कि मैं तो बुजुर्ग हूं आप ही मेरे पैर दूसरी तरफ कर दो। जब उसने नानक साब के पैर दूसरी तरफ किए तो दूसरी तरफ भी मक्का की मस्जिद दिखाई देने लगी। जहां भी वो नानक साहब के पैर करे वहीं मस्जिद दिखाई दे। नानक साहब ने कहा कि ये हमारा भ्रम है कि हम जिधर मस्जिद मंदिर देखना चाहते हैं उसी तरफ दिखते है लेकिन सत्य तो ये है कि परमात्मा तो कण कण में व्याप्त है। वो ना किसी दिशा का मोहताज है ना किसी जगह का। गुरु जी ने कहा कि भक्ति दूसरे की पीड़ा समझने में है। हम तो दुनियादारी को अपनी स्थूल आंखो से देखते है। पाप करते हुए हम मान बैठते है कि हमें कोई नही देख रहा लेकिन मत भूलो कि परमात्मा की अनगिनत आंखे हैं। वो सब को देख रहा है। वो आपकी पल पल निगाह रखता है इसलिए हर पल सतर्क रह कर अपने हृदय से दया धर्म भक्ति को मत हटने दो। नियत ठीक रखो। संतो की शरणाईं में रहो क्योंकि संत स्वयं प्रकाशी है वो आपको भी धर्म की ज्योति से प्रकाशित कर देंगे।

हुजूर ने कहा कि सेवा करना चाहते हो तो अपने घर से प्रारंभ करो। जो मां बाप की सेवा करना सीख गया वो संगत की सेवा स्वत ही कर लेगा। हुजूर महाराज जी ने कहा कि जो संत की बात को समझ जाता है उसके भर्म निकल जाते हैं। संत जीव की परीक्षा लेते हैं। उनकी हर परीक्षा का कोई ना कोई आशय होता है इसलिए संतो के वचन पर संशय मत करो। गुरु जी ने कहा कि नानक साहब की एक गांव में बड़ी सेवा हुई। चलते हुए उन्होंने कहा कि ये गांव तो उजड़ जाए। आगे चल कर दूसरे गांव में पहुंचे तो उस गांव वालो ने उनका बड़ा तिरिस्कार किया। नानक साहब ने आशीष दिया कि खूब बसो। साथ चलने वालो ने हैरानी जताई कि दोनो गांव को उल्टा आशीर्वाद क्यो। नानक साहब ने कहा कि उल्टा कहां बड़ा सीधा आशीर्वाद है। जो भले लोग हैं उनको उजड़ने का आशीर्वाद इसलिए दिया ताकि वो एक जगह तक सीमित ना रहकर जगह जगह फैल जाएं ताकि उनके साथ अच्छाई भी फैलें और बुरे लोगो को बसने का आशीर्वाद इसलिए दिया ताकि बुराई जगह जगह फैलने की बजाए एक जगह तक ही सीमित रह जाए। उन्होंने कहा कि अपने बल से नहीं गुरु के बल से बढ़ना सीखो क्योंकि खुद का बल अभिमान लाता है और गुरु का बल ज्ञान।

गुरु महाराज जी ने कहा कि अंग्रेजी में एक कहावत है कि फर्स्ट डिजर्व देन डिजायर यानी पहले काबिल बनो फिर आकंक्षा। जो काबिल हैं उसे उसका मनचाहा अवश्य मिलता है। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी ने भी अपने आप को काबिल बनाया और इतना काबिल बनाया कि आज दुनिया में सिख धर्म सब धर्मों का सिरमौर बना गया। उन्होंने कहा कि दूसरे का भला करके हम खुद का ही भला करते हैं। उन्होंने कहा कि पहले अपने आप को और अपने घर को सुधारो फिर बाहर की दुनिया सुधारो। उन्होंने कहा कि गुरु का नाम रोशन केवल गुरुमुख ही कर सकता है। हुजूर ने कहा कि संत तो ऐसी रचना रच देते हैं जिसका कोई तोड़ नहीं होता। संत तो अपनी निंदा खुद करवा लेते हैं ताकि अनाधिकारी जीव छंट जाए। ये जीवन एक चौपड़ का खेल है जिसमे हमारी बाजी पौ बारह पर अटकी हुई है। ये बाजी केवल पूर्ण संत सतगुरु ही आपको जितवा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आप अपनी दृष्टि सुधारो पूरी दुनिया खुद ही संवर जाएगी।

गुरु जी ने कहा कि अपना संग गुरुमुख के साथ करो ताकि आपकी सोच सुधरे। हुजूर ने कहा कि जैसे दूध को खटाई का एक छोटा सा छींटा भी फाड़ देता है ऐसे ही बुरे आदमी का एक छोटा सा विचार भी आपकी अच्छाई को डिगा सकता है। दूसरो की नहीं अपनी सुध लो। सबसे प्यार करो, सेवा करो, नाम भक्ति अपनाओ, पाखंडों में मत फंसो। परहित परोपकार करो। घरों में प्यार प्रेम शांति बनाओ। अपने आचरण से दूसरो को प्रभावित करके समाज का कल्याण करो। इस अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन भी किया गया जिसमें 200 यूनिट रक्त का दान किया गया।

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