मुख्यमंत्री मनोहर लाल और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दोनों का भविष्य दांव पर। भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। आदमपुर उपचुनाव संपूर्ण हरियाणा में चर्चा का विषय बना हुआ है। आप पार्टी और भाजपा ने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा का है इंतजार। फिर भी राजनीति है गरमाई, भाजपा और जजपा की खटास है सामने आई। आज भाजपा के क्रियाकलापों से जजपा नाराज नजर आई। उनका कहना है कि प्रोटोकॉल का प्रयोग नहीं हुआ। अत: इस चुनाव को लेकर ही भाजपा की अलग बैठक हो रही है और जजपा की दिल्ली में। शायद संपूर्ण भी हो गई हो लेकिन समाचार प्राप्त हुए नहीं हैं। राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि संभव है इस चुनाव में जजपा का उम्मीदवार भी चुनाव लड़े और गठबंधन पर संकट के बादल छायें। इसके पीछे पूर्व के भी कुछ कारण गिनाए जा रहे हैं परंतु कुछ चर्चाकारों का यह भी कहना है कि भाजपा की रणनीति को कोई समझ नहीं सकता। बहुत गहरी चालें चलती है चुनाव जीतने के लिए और वर्तमान चुनाव में कुलदीप बिश्नोई की छवि जाट विरोधी बनी हुई है और आदमपुर जाट बाहुल्य विधानसभा है। ऐसे में यह भी संभव है कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो कि आप पार्टी, इनेलो और जजपा से जाट उम्मीदवार मैदान में आ जाएं, जिससे भूपेंद्र सिंह हुड्डा जो जाट नेता होने का दम भरते हैं, उनके वोटों में विभाजन हो जाए, जिससे जाट वोटर बेअसर हो जाएं और उनक उम्मीदवार भव्य बिश्नोई विजय पताका फहरा दे। दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से अभी कोई औपचारिक घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसा लगता है कि जयप्रकाश उनके उम्मीदवार होंगे और 14 तारीख को नॉमिनेशन भरेंगे लेकिन हरियाणा में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा दस साल मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और 74 वर्ष भी पार कर चुके हैं। अत: कह सकते हैं कि अनुभव की कमी उनमें भी नहीं होगी और टिकट देरी करने की भी उनकी कोई रणनीति होगी। वह पहले तेल और तेल की धार देखना चाहते हैं शायद। उसके पश्चात संभव है कि वह भी कोई गैर जाट उम्मीदवार कांग्रेस की टिकट पर उतार दें। देखना दिलचस्प होगा कि वह कल अपना उम्मीदवार घोषित करते हैं या अंतिम समय पर। अब भाजपा पहले दो उपचुनाव हार चुकी है। बरोदा विधानसभा में भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था और ऐलनाबाद से अभय सिंह चौटाला जब त्याग पत्र देकर दोबारा चुनाव लड़े तो भी उन्हें हार का ही मुंह देखना पड़ा। यद्यपि तब भी उन्होंने रणनीति तो बहुत जबरदस्त बनाई थी। गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को उम्मीदवार बनाया था और पुराने भाजपाईयों की उम्मीद पर कुठाराघात हुआ था। और ऐसा ही अब आदमपुर में देखने को मिल रहा है कि नए-नए भाजपा में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई के पुत्र भव्य बिश्नोई को टिकट दी गई है, जिसका परिणाम कल देखने को मिला कि प्रदेश अध्यक्ष को अपने कार्यकर्ताओं की मीटिंग में भव्य बिश्नोई की मैंबरशिप की रसीद लगानी पड़ी थी। सोनाली फौगाट के परिवार के बारे में भी कुछ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि वह भाजपा का साथ देंगे या कोई और रणनीति बनाएंगे। समाचार यह आ रहे हैं कि जब कुलदीप बिश्नोई सोनाली फौगाट के घर उनके परिवार से मिलकर आए हैं उसके पश्चात संभावनाएं बढ़ी हैं कि वह अपने परिवार से उम्मीदवार न उतारें और भाजपा का साथ दें। बात वही है कि दो उपचुनाव हारे के पश्चात क्या तीसरा उपचुनाव भी पुराना इतिहास दोहराएगा? कुलदीप बिश्नोई को भाजपा में मिलाने का श्रेय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को जाता है। अत: कह सकते हैं कि इस चुनाव की हार-जीत का सीधा असर मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा पर जाएगा, क्योंकि गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा को टिकट देने में भी मुख्यमंत्री की ही अहम भूमिका थी। अब विचारनीय प्रश्न यह है कि चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री की कितनी भूमिका रहेगी। कुलदीप बिश्नोई के पिता चौ. भजनलाल भी गैर जाट की राजनीति से नेता बने थे और वही कुछ कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस में अपना रखा था और वह परंपरा अभी चली आ रही है। कहा जाता है कि चुनाव लडऩे की जिम्मेदारी सरकार से अधिक संगठन की होती है और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ जाट समुदाय से हैं। और उन्होंने वहां का चुनाव प्रभारी भी जेपी दलाल को बनाया है। ऐसी स्थिति में जब प्रदेश अध्यक्ष और चुनाव प्रभारी जाट हों तो वह नॉन जाट की बात कर पाएंगे? और भव्य बिश्नोई के बुजुर्गों ने गैर जाट की ही राजनीति की है तो क्या वह अब अपनी परंपरा छोड़ पाएंगे? ऐसे अनेक प्रश्न इस चुनाव में उठते नजर आएंगे। कांग्रेस की ओर नजर डालें तो केंद्रीय नेतृत्व ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कमान तो दे दी है परंतु कांग्रेस एकजुट हो नहीं पाई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौ. उदयभान ने कांग्रेस की एक उच्चस्तरीय बैठक चंडीगढ़ में बुलाई थी और प्रचार किया था कि उसमें कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता और चारों कार्यकारी अध्यक्ष उपस्थित होंगे लेकिन उस मीटिंग में क्या हुआ, उसकी प्रेस विज्ञप्ति भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा या अध्यक्ष चौ. उदयभान की ओर से जारी नहीं हुई। हां, भिवानी जिले की पूर्व मंत्री किरण चौधरी ने अवश्य खुलकर कहा कि उन्हें उस मीटिंग में आमंत्रित नहीं किया गया लेकिन वह फिर भी कांग्रेस के पक्ष में मतदान कराएंगी। उनका कहना था कि उनके दिवंगत पति चौ. सुरेंद्र सिंह का वह कार्यक्षेत्र रहा है और वहां उनके विश्वस्त अनेक व्यक्ति हैं। इसी प्रकार कांग्रेस के गैर हुड्डा समर्थक नेताओं का भी असंतोष दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में हुड्डा के लिए यह निर्णायक लड़ाई हो सकती है। देखना दिलचस्प होगा कि बाजी मुख्यमंत्री मारेंगे या पूर्व मुख्यमंत्री। Post navigation खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन कर रहे: राव नरबीर सरकार के 72 घंटे में फसल खरीद, उठान व भुगतान के सभी दावे फेल सिद्ध हुए है – बजरंग गर्ग