जुआ-सट्टा विधेयक-2025 को लेकर सदन में गरजे आदित्य सुरजेवाला
आदित्य ने कहा, भाजपा ने पेश किया सट्टेबाजी तथा जुआखोरी को चोर दरवाजे से एंट्री दिलवाने वाला कानून

कैथल, 27 मार्च 2025 – कैथल से कांग्रेस विधायक आदित्य सुरजेवाला ने हरियाणा विधानसभा सत्र में जुआ-सट्टा विधेयक-2025 को लेकर भाजपा सरकार पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यह विधेयक सदन में पहली बार चर्चा के लिए लाया गया। इस कानून में कई आपत्तिजनक प्रावधान हैं, जिनके कारण अन्य माफिया समूहों का हरियाणा में प्रवेश आसान हो जाएगा। असल में इस कानून को ध्यान से पढ़कर पता चलता है कि हरियाणा में पिछले दरवाजे से यह कानून सट्टेबाजी और कालाबाजारी को वैध मंजूरी देगा। यह कानून गहराई से दोषपूर्ण है, मंशा में भी खराब, मसौदा में भी खराब और सट्टेबाजी तथा जुआखोरी को चोर दरवाजे से चुपके से एंट्री दिलवाने वाला कानून भी है।
आदित्य सुरजेवाला ने कहा कि मैं यह आलोचना के लिए नहीं कह रहा, बल्कि यह मानता हूँ कि अगर कहीं कमी है, तो सरकार को उस पर दोबारा सोचकर ठीक करना चाहिए, ताकि हमारे प्रदेश के लोगों को हम जुए, सट्टे व इस तरह की घर और पैसा लुटाने वाली गतिविधि से बचा सकें। उन्होंने कहा कि सेक्शन 2 (h) को मद्देनजर रखते हुए देखा जाए तो गेमिंग की परिभाषा में “मटका”, “सट्टा”, “वस्तु की कीमतों को लेकर लगाया जाने वाला सट्टा”, “सोना-चांदी या दूसरे मैटल्स की कीमतों पर लगाया जाने वाला सट्टा”, “स्टॉक और शेयर की कीमतों पर लगाया जाने वाला सट्टा”, या फिर “पैसे अथवा कीमती चीजों के लेन-देन की शर्तों पर लगाया जाने वाला जुआ” आदि को शामिल ही नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि ठीक इसी प्रकार, “गेम के उपकरण” को कानून में परिभाषित ही नहीं किया गया, जैसे “कार्ड्स”, “पासा”, “गेमिंग टेबल”, “विशेष गेमिंग कपड़े और बोर्ड” और “कोई अन्य लेख को इस परिभाषा में जोड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मैं नहीं कह रहा। देश के दूसरे राज्यों में इस प्रकार की व्यापक परिभाषाएं हैं, जिन्हें हमें ग्रहण करना चाहिए। मैं तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कानून की कॉपी सदन के पटल पर रखता हूँ, जिन्हें सरकार को जरूर पढ़ना चाहिए।
आदित्य सुरजेवाला ने कहा कि इस कानून में सबसे बड़ी खामी “गेम ऑफ चांस” तथा “गेम ऑफ स्किल” की परिभाषा को लेकर है। सेक्शन 2 (f) में “गेम ऑफ चांस” की परिभाषा है, तथा सेक्शन 2 (g) में “गेम ऑफ स्किल” की परिभाषा है। मैं यह पढ़कर सुनाता हूँ। सेक्शन 2 (h) जिसमें सिर्फ “गेम ऑफ चांस” को ही जुए की परिभाषा में शामिल किया गया है और “गेम ऑफ स्किल” को पूरी तरह से जुआ या सट्टे की परिभाषा से छूट मिल गई है। यही असली चाल है।
उन्होंने कहा कि क्या आप जानते हैं कि जुआ और गेम ऑफ स्किल में असली अंतर क्या है? क्या सरकार नहीं जानती कि आज तक कोई कोर्ट गेम ऑफ स्किल की परिभाषा का मापदंड का उद्देश्य नहीं बना पाई है? देश की सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने हर अलग-अलग गेम पर अलग-अलग निर्णय दिया है। तो फिर आप इस परिभाषा में कौन से जुए और सट्टे को अपराध की परिभाषा से निकालेंगे?
कोर्ट के निर्णयों के मुताबिक कुछ उदाहरण पेश करते हुए आदित्य सुरजेवाला ने कहा कि कैसिनो को जुआ कहा गया है। पोकर पर यह विवाद है कि वह जुआ है या गेम ऑफ स्किल? गुजरात हाईकोर्ट कहती है कि वो जुआ है इसलिए जुआ है। इलाहाबाद हाईकोर्ट कहती है कि वह गेम ऑफ स्किल है। बिंगो तथा बैटिंग को गेम ऑफ चांस बताया गया है। पर हॉर्स रेस को गेम ऑफ स्किल बताया गया है। “फंतासी खेल” को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट गेम ऑफ स्किल कहती है, तो बॉम्बे हाईकोर्ट इसे गेम ऑफ चांस कहती है। अब सुप्रीम कोर्ट इसका फैसला “गुरदीप सिंह सच्चर बनाम भारत संघ” में करेगा। पर तब तक संदेह तो है ही।
उन्होंने कहा कि खेल बैटिंग की बिल के शीर्षक में चर्चा भी है, पर खेल बैटिंग, जो सट्टे का सबसे बड़ा बाजार है, के बारे में अभी भी अदालत में यह विवाद है कि वो जुआ है, या फिर गेम ऑफ स्किल। इसका फैसला भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, तथा सुप्रीम कोर्ट “गीता रानी बनाम भारत संघ” मुकदमे में ही इसका फैसला करेगी।
आदित्य ने कहा कि ऐसे में अधिकतर प्रांतों ने गेम ऑफ चांस और गेम ऑफ स्किल के विवाद को लेकर इसका हल निकाला है। प्रांतों ने कानून बनाकर गेम ऑफ चांस और गेम ऑफ स्किल की व्यापक परिभाषा कानून में दी है, जहाँ यह बताया गया है कि अमुक चीज़ गेम ऑफ चांस यानी जुआ है, और अमुक चीज़ गेम ऑफ स्किल, यानी जुआ नहीं है। पर मौजूदा कानून में ऐसी कोई परिभाषा नहीं है। अधिकतर प्रांतों ने गेम ऑफ चांस हो या गेम ऑफ स्किल दोनों किस्म के खेलों की रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य किया है, ताकि उचित विनियमन भी हो और हेराफेरी भी न हो। उदाहरण के तौर पर, नागालैंड के कानून में जुआ के लिए लाइसेंस अनिवार्य है। सिक्किम के कानून में गेम ऑफ चांस हो या गेम ऑफ स्किल, दोनों के लिए लाइसेंस अनिवार्य है। नागालैंड में तो बाकायदा ऑपरेटर्स द्वारा जिन गेमिंग के लिए लाइसेंस चाहिए, उसके कुछ उदाहरण हैं जैसे वर्चुअल स्पोर्ट्स फ़ैंटेसी गेम्स, शतरंज और सुडोकू गेम्स(जिसमें दांव खेले जाते हैं), वर्चुअल स्टॉक गेम/मोनोपोली गेम्स, वर्चुअल मिस्ट्री/डिटेक्टिव गेम्स, ब्रिज, पोकर और रम्मी गेम्स, वर्चुअल रेसलिंग/रेसिंग, गोल्फ इत्यादि। उन्होंने सरकार से अपील की कि अगर जुआ और सट्टा रोकना है, तो हमें इन सब प्रांतों के कानूनों को ध्यान से पढ़ना चाहिए और जो सही है, उसे अपनी परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए।
आदित्य सुरजेवाला ने कहा कि ज्यादातर प्रांतों ने या तो ऑनलाइन गेम्स पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है या फिर उन्हें नियमित करने की कोशिश की है। मैं कुछ उदाहरण देना चाहूंगाः- • तेलंगाना और आंध्र प्रदेश ने पैसे से खेले जाने वाले ऑनलाइन गेम्स को पूरी तरह से बैन कर दिया है। मेरे विचार से यह सही है क्योंकि यही हमारे बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
तमिलनाडु ने एक कानून बनाया है The Tamil Nadu Prohibition of Online Gambling and regulation of online games act, 2022. तमिलनाडु ने भी ऑनलाइन गेमिंग को बैन कर दिया है, व ऑनलाइन गेम्स के लिए भी “तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग ओथॉरिटी” को बनाया है, जिससे बाकायदा रजिस्ट्रेशन की स्वीकृति हो और युवा पीढ़ी पैसे और जुए की लत में न पड़ जाएं। लेकिन हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा मौजूदा कानून में इस प्रकार का कोई प्रावधान ही नहीं है। न नियम है, न रजिस्ट्रेशन है, न पूछताछ है, न कोई अधिकार है। इसके बगैर, ऑनलाइन जुए और सट्टे पर नियंत्रण कैसे हो पाएगा। उल्टा सेक्शन(g) के प्रावधान में सरकार ने खुद के पास यह ताकत रखी कि वो जिसे चाहे, उसे गेम्स ऑफ स्किल घोषित कर दे, और फिर जुआ खेलने और खिलाने की पूरी छूट। यह अपने आप में गलत है तथा इससे खुलेआम भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार वास्तु बाजार में नाजायज तरीके से सैकड़ों हजारों करोड़ का सट्टा लगाया जाता है। आखिर में न किसान को कीमत मिलती, न गरीब को चीज। कमाल यह है कि इस कानून के सेक्शन 16 में सरकार ने किसी भी वास्तु बाजार या मैटल मार्केट को इस कानून की शर्तों से छूट देने की ताकत अपने पास रख ली है। यानी अब सरकार ही सट्टा लगाने का लाईसेंस देगी। यह पूरी तरह गलत है।
आदित्य सुरजेवाला ने सरकार से अपील की कि यह कानून दोषपूर्ण है, इसमें भयंकर गलतियाँ हैं, तथा यह जुए और सट्टे को रोकने की बजाय उसे कानूनी मंजूरी दे देगा, जिससे हरियाणा के लोगों का नुकसान होगा। मेरी यह विनती है कि इस कानून को विधानसभा की “चुनी हुई कमेटी” को सौंप दिया जाए और इसे दुरुस्त बनाकर ही विधानसभा में पेश किया जाए। हरियाणा को सट्टे और जुए के कुएं में धकेलने से और कानूनी मंजूरी देने से हरियाणा को बचाईये। यही मेरी दरख्वास्त है।