नाम कुनिन की दवा की भांति कड़वा है लेकिन यदि इस सांसारिक व्याधियों से छुटकारा पाना है तो ये कुनीन हमें लेनी पड़ेगी
जड़ का ज्ञान हमारे निज ज्ञान को खा रहा है।निज ज्ञान संतो की शरनाई से मिलता है
ताराचंद जी महाराज के 98वें जन्मदिवस पर हुजूर कंवर साहेब ने लाखों की विशाल हाजिरी में साध संगत को सुनाएं सत्संग वचन 

दिनोद धाम जयवीर फौगाट,

आज हम जिस सत्पुरुष का अवतरण दिवस मनाने यहां एकत्रित हुए हैं वे साक्षात परमात्मा का रूप थे। हुजूर ताराचंद जी महाराज स्वत संत थे। उनकी रहनी और करनी बहुत उच्च कोटि थी। साधारण बाने में यदि परमात्मा का जहूर देखना है तो ताराचंद महाराज के जीवन को जान लो। परमसंत ताराचंद जी वो शिल्पकार वो माली थे जिन्होंने मरुस्थल की ऊसर भूमि में भी सत्संग का बाग खिला दिया। यह सत्संग वचन परम संत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने अपने गुरू परम संत ताराचंद जी महाराज के 98वें जन्मदिवस के अवसर पर आयोजित सत्संग में साध संगत की विशाल लाखों की हाजिरी में फरमाए।हुजूर ने कहा कि मेरे गुरु ने अपने जीवन में जितनी विपत्तियां जितने कष्ट उन्होंने सहे शायद किसी और संत ने नहीं सहे होंगे लेकिन फिर भी उन्होंने अपने धर्म को नहीं छोड़ा। उनके अपने पिता से लेकर इस जगत में जो उनके जीवन में आया सब ने उनको सत्संग से दूर करने की कोशिश की लेकिन वो अपने मार्ग से नहीं डिगे। उनके पिता ने एक बार उनसे गुस्से में कहा कि भक्ति का मार्ग छोड़ दे अन्यथा मैं तुझे तीन जहां से खो दूंगा।

ताराचंद जी बोले कि पिताजी मैं इस तीन जहां से अपने आप को खोने के लिए ही तो भटक रहा हूं अगर आप मुझे खो देंगे तो मेरी तो मनोकामना यही पूर्ण हो जाएगी। ताराचंद जी ने ऐसी गुरुभक्ति की जो आज एक मिसाल बन गई है। उन्होंने अपने गुरु से बढ़ कर किसी को नहीं माना और जाना। संतमत की भक्ति ही गुरु भक्ति की है। संतमत कर्म बदलने पर जोर देता है। संतमत जीवन के कल्याण का मार्ग सुझाया है। हुजूर ने कहा कि कितने डेरे खेड़े राज्य बने और मिट गए किसी के साथ कुछ नहीं गया फिर किस बात का संचय। ताराचंद महाराज ने कभी संग्रह नहीं किया। उनमें इतने गुण थे कि उनके गुरु रामसिंह अरमान साहब कदम कदम पर उनकी बड़ाई करते थे। उन्होंने कहा कि आज तो गुरुओं की कमी ही नहीं है लेकिन सब बिना करनी के गुरु हैं। उन्होंने हैरानी जताई कि कोई बुझा हुआ दीपक कैसे दूसरे दीपक को जला सकता है। संत ताराचंद जी तो वो रोशन दिया थे जिन्होंने करोड़ो बुझे दियों को रोशन कर दिया। हुजूर कंवर साहेब ने अपने गुरु को स्मरण करते हुए कहा कि वो उस किसान की भांति थे जो अपनी अथक मेहनत से एक बीज बोकर करोड़ो बीज पैदा कर देता है। गुरु जी ने कहा कि संतो के पास अमर दवाई है, वो दवाई है नाम। आज जिस सत्पुरुष को हम बड़े महाराज जी के नाम से जानते हैं वो भी अपनी बानी में कहते हैं की नाम कुनैन की दवा की भांति कड़वा है लेकिन यदि इस सांसारिक व्याधियों से छुटकारा पाना है तो ये कुनीन हमें लेनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि इस संसार के सारे नाते रिश्ते गरज मर्ज के हैं जो स्वार्थ निकलते ही बोझ लगने लगते हैं।

उन्होंने कहा कि आज सब पैसे के पीछे भाग रहे हैं। आपके पास यदि धन संपत्ति है तो ही सब आपके हैं अन्यथा सारे मतलब खारे हैं। हुजूर ने संगत से पूछा कि क्या कभी आपने इस बात पर विचार किया है कि हम इस संसार में इस इंसानी चोले में क्यों आए हैं। क्यों हमे गुरु मिला, क्यों हमें नाम मिला, क्यों हमे सत्संग मिला है इस बात पर विचार करो। ये सब हमें मिला क्योंकि परमात्मा की हम पर मेहरबानी है इसलिए उसने एक मौका हमें दिया कि हम परमात्मा की भक्ति करके अपने आवन जान से छुटकारा पा लें। अगर हम इस अनमोल अवसर को खो देंगे तो केवल पछतावा ही हमारे हाथ लगेगा। उन्होंने कहा कि अपनी संगती की सुधारो। चोरों में बैठ कर हम साहूकारी नहीं कर सकते। हम जड़ में फंसे बैठे हैं जबकि कल्याण कारी केवल सतगुरु का सत्संग है। जड़ का ज्ञान हमारे निज ज्ञान को खा रहा है। निज ज्ञान संतों की शरनाई से मिलता है। उन्होंने डाकू खड़ग सिंह और बाबा भारती का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि डाकू महात्मा का घोड़ा लेना चाहता था लेकिन ले नहीं पाया। अंततः डाकू ने अपना भेष बदला और महात्मा के पास पहुंच गया और धोखे से घोड़ा लेकर जाने लगा तो बाबा भारती ने कहा कि खड़ग सिंह घोड़ा ले जा लेकिन किसी से ये मत कहना कि तूने धोखा देकर घोड़ा लिया है क्योंकि ये घटना सुनकर कोई किसी की मदद नहीं करेगा। उन्होंने कहा की आपका बुरा व्यवहार समाज के सामने बुरा उदाहरण रखता है। उन्होंने कहा कि अगर ताराचंद जी महाराज के जीवन से प्रेरित हो तो किसी के साथ छल धोखा कपट मत करना। अपने हृदय को पाक पवित्र रखना सीखो। सबके साथ भला करो। सत्संग और परमात्मा के गुणगान में अपना समय बिताओ। आपकी आस्था में बड़ी ताकत है। गुरु के प्यार करते हो तो सिर्फ गुरु के बन कर रहो।

गंगा गए तो गंगादास जमुना गए तो जमुनादास वाली प्रवृत्ति त्यागो। जैसा करोगे वैसा ही भोगोगे। उन्होंने कहा कि आप अपने तीनों काल इसी वर्तमान में जीता है। ये इंसानी चोला मिला ये आपके भूतकाल के कर्मो का फल है। अब जैसा कर्म करोगे वैसा ही वर्तमान सुधारोगे और इन्हीं कर्मों के आधार पर आप अपना भविष्य लिख रहे हो। सतगुरु को अपने सारे बल हार जाओ। सब सतगुरु को अर्पण कर दो। जब सतगुरु का ही सब कुछ है तो फिर उसी को क्यों नहीं सौंप देते। उन्होंने कहा कि अगर आपने अपने अंदर संतो का सत्संग भरा है तो अपनी अच्छी आदत को मत छोड़ो उस साधु की भांति अपनी अच्छाई का त्याग मत करो जो पानी में डूबते बिच्छू को बार बार डंक मारने के बाद भी उसे बचाने में परहेज नहीं करता। इस अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया जिसमें 200 यूनिट रक्त एकत्रित किया गया।

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