चुनाव उपलब्ध करवाने के बजाय मांगने वाले को किया जाता है परेशान 

भारत सारथी/ कौशिक 

नारनौल। हरियाणा में आरटीआई का मतलब जन सूचना अधिकार नहीं बल्कि सूचना मांगने वाले को परेशान करना है। आइये आपको क्रमवार समझाने की कोशिश करते हैं।

जिस तरह अब हरियाणा में पंचायतों के चुनाव नहीं हो पा रहे। क्योंकि मामला न्यायलय में है। सरकार बार-बार कह रही है कि जल्द ही चुनाव करवाएंगे मगर चुनाव हो नहीं रहे बल्कि आमजन को तसल्ली देने के लिए सरकार बार-बार जल्द चुनाव करवाने की बात करती है।

पंचायत चुनाव नहीं होने से गांवों के विकास कार्य रुके हुए हैं। ठीक इसी प्रकार शिक्षा की अनिवार्यता को लेकर पिछले पंचायत चुनाव भी लगभग छः महीने देरी से हुए थे जिसकी वजह से पंचायतों के विकास कार्य ठहरे हुए थे। 25 जुलाई 2015 से 10 जनवरी 2016 तक हरियाणा में पंचायतों का कार्यभार प्रशासनिक अधिकारियों के पास था।

भारत सरकार के साथ-साथ हरियाणा सरकार भी प्रदेश के गांवों में सफाई को लेकर कुछ ज्यादा ही गंभीर थी लेकिन हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के एक अधिकारी ने प्रशासनिक कार्यकाल के दौरान चार ब्लाकों के अधिकतर गांवों में सफाई को लेकर डस्टबिन की खरीद कर डाली ।

जिसमें सरकार के निर्देशों की सरेआम उड़ाते हुए सरकारी पैसे का दुरुपयोग किया और सरकार को ठेंगा दिखाते हुए सरकार के बजट को ही साफ कर डाला। सरकार के सफाई अभियान को ही जंग लगा दिया।

ऐसा ही कारनामा महेंद्रगढ़ जिले के अटेली नांगल  बीडीपीओ कार्यालय के द्वारा भी किया गया था। तत्कालीन बीडीपीओ ने लगभग 4 ब्लॉकों का कार्यभार संभाल रखा था जिसमें अटेली बीडीपीओ कार्यालय भी शामिल था। तत्कालीन बीडीपीओ ने डस्टबिन की खरीद की थी आपको याद दिला दें कि डस्टबिन खरीद को लेकर खेड़ी निवासी सतेन्द्र यादव ने अपने गांव में प्रशासनिक कार्यकाल के दौरान डस्टबिन,स्ट्रीट लाइट व सौलर लाईट और सिमेंटिड बैंचों की खरीद में गड़बड़ी घोटाले की आशंका को लेकर आरटीआई लेकर सीएम विन्डों पर न्यायिक जांच की मांग की थी।

कई महीनों बाद आरटीआई में खुलासा हुआ। खुलासा होने के बाद शिकायतकर्ता ने इसके कई महीनों बाद अधिकारियों ने आखिर मुख्यमंत्री का सपना कहे जाने वाली सीएम विन्डों पर जांच कर ही डाली । जिसमें तत्कालीन सरपंच ,ग्राम सचिव और तत्कालीन बीडीपीओ के खिलाफ सरकार के आदेश अनुसार मामला वर्ष 2019 में अटेली थाने में दर्ज करवाया गया। यह मामला अब न्यायालय में विचाराधीन चल रहा है।

अब बात करते हैं अटेली नांगल खंड के कांटी गांव की । कांटी ग्राम पंचायत में भी प्रशासनिक कार्यकाल में सफाई व्यवस्था को लेकर डस्टबिन की खरीद की गई थी । आवेदन कर्ता खेड़ी निवासी सतेन्द्र यादव की मानें तो यहां भी डस्टबिन की खरीद सिर्फ कागजों में ही की गई। इसी आशंका के साथ खेड़ी निवासी सतेन्द्र यादव ने कांटी ग्राम पंचायत से 14 अगस्त 2019 को जन सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी। यह जानकारी उस समय न पंचायत ने दी और ना ही बीडीपीओ कार्यालय दिला पाया।

परेशान होकर आवेदनकर्ता ने सुचना आयुक्त चंडीगढ़ का रास्ता अपनाया। चंडीगढ़ जाने के बाद बीडीपीओ कार्यालय की नींद टूटी और जानकारी के नाम पर (आधी-अधूरी) महज 2 पेज की जानकारी दे कर  इतिश्री कर ली।

आवेदन कर्ता ने एक बार फिर से चंडीगढ़ का दरवाजा खटखटाया । इस जुर्माने से सरपंच और ग्राम सचिव को कोई गहरा फर्क नहीं पड़ा क्योंकि जब मामला लाखों करोड़ों का हो तो महज कुछ हजार जुर्माने की राशि बड़ी बात नहीं। तब सूचना आयुक्त ने कांटी के सरपंच पर 15000 रुपए और ग्राम सचिव पर 10,000 रुपए का जुर्माना ठोका। लेकिन सूचना आयोग के दिशा निर्देशों के बावजूद  फिर भी आवेदन कर्ता को जानकारी पूरी नहीं मिल पाई थी, इसको लेकर कानून सख्त नहीं है।

इसी गांव से संबंधित एक अन्य व्यक्ति अशोक कुमार ने जन सूचना अधिकार के तहत ग्राम पंचायत कांटी को लेकर कुछ जानकारी चाही थी जिसे आज तक उपलब्ध नहीं करवाया गया। जन सूचना अधिकार के तहत चंडीगढ़ स्थित सूचना आयुक्त बी इस मामले में कारगर सिद्ध हो सके और आवेदन कर्ता को आज तक कोई सूचना उपलब्ध नहीं करवाई गई। भारतीय जनता पार्टी पारदर्शी सरकार देने का दावा तो करती है लेकिन हकीकत में पारदर्शिता का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। जिस तरह जन सूचना अधिकार के आवेदनों को दबाया जा रहा है उसको देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है की पंचायत स्तर और खंड विकास स्तर पर मामलों में भारी घालमेल हुआ है जिसे राजनीतिक सफर दबाया जा रहा है।

14 अगस्त 2019 से आज 31 अगस्त 2022 को 3 साल से ज्यादा समय लगने के बाद आखिर ग्राम सचिव ने अपने सीनियर अधिकारी से सत्यापित करवाकर जानकारी आवेदन कर्ता को दे ही दी। मजेदार बात देखिये कि जानकारी में एक पेज दिया गया है जिस पर लिखा है कि आपके द्वारा चाही गई जानकारी रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है।

यहां आपको यह बताना अति आवश्यक है कि सूचना आयुक्त कार्यालय पहुंचने पर ग्राम सचिव ने 2 पेज की जानकारी उपलब्ध करवाई थी जिसमें एक पेज पर डस्टबिन खरीद बिल व दूसरे पेज पर डस्टबिन खरीद संबंधित प्रस्ताव की कॉपी थी।

आज 3 साल बाद आवेदन कर्ता को तीसरा पेज भी बीडीपीओ कार्यालय द्वारा सत्यापित कर उपलब्ध करवा दिया गया जिस पर लिखा गया है। आपके द्वारा मांगी गई जानकारी रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है।

अब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब जानकारी ही 3 साल बाद दे रहे हैं तो भला जांच अगले कितने साल में पूरी होगी, यह सवाल अनुत्तरित है ? फिर यह मामला माननीय न्यायालय में अगले कितने साल तक चलेगा और फैसला कब आएगा ? वैसे आवेदन कर्ता सतेन्द्र यादव कहना हैं कि हम जांच भी पूरी करवाएंगे और माननीय न्यायालय के फैसले का इंतजार भी करेंगे।

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