जब वो एक नई यूपीए के टीम की रूप में लडाई लड़ेंगे तो वो बीजेपी समेत पूरे एनडीए पर भारी पड़ेंगे कांग्रेस एक आंदोलन से जन्मी पार्टी है वह एक पार्टी नही ब्रांड है मोदी कोई नया काम नही कर रहे है वो बस महात्मा गाँधी की कॉपी कर रहे है इसे कम्युनिकेशन इंगेजमेंट कहा जाता है जेपी फिर से सिर्फ व्यापारियों की पार्टी बनकर रह जायेगी अशोक कुमार कौशिक अपने एक राष्ट्रवादी दोस्त से राहुल गाँधी के बारे में बात हो रही थी। आश्चर्यजनक रूप से वे ल़ॉजिकल हैं, रेशनल हैं। आपकी बात बहुत धैर्य से सुनते हैं, अपनी असहमति को सभ्य तरीके से व्यक्त करते हैं और सहमत होते हैं तो स्वीकार भी करते हैं। वे कहने लगे कि ‘राहुल बहुत अच्छे इंसान तो हैं, लेकिन राजनीति के लिए नहीं हैं।’ मैंने पूछा, ‘क्यों?’ तो बोले, ‘राजनीति में जिस किस्म के शातिर, श्रूड और धूर्त लोगों की जरूरत है वे उसे पूरा नहीं करते हैं। मतलब जो चीज आम जिंदगी में गुण हैं, वह राजनीति में दुर्गुण है।’ मुझे लगा बात गलत भी नहीं है। लेकिन फिर तुरंत लगा कि आखिर यह किसने तय किया है कि राजनीति में धूर्त औऱ शातिर होना ही चाहिए। मैंने तुरंत प्रतिवाद किया, ‘यह सही है कि हमने राजनीति को ऐसे ही जाना है, लेकिन यह भी तो हो सकता है न कि राहुल राजनीति की तकनीक, परिभाषा, मुहावरे, भाषा और पद्धति ही बदल दे। आखिर तो बदलाव ऊपर से चलकर ही आता है।’ वे सोचते रहे, फिर बोले, ‘हाँ ये भी ठीक है, लेकिन सच कहूँ तो मुझे इस आदमी पर भरोसा नहीं है।’ फिर मैंने पूछा, ‘भरोसा मतलब?’ वे बोले, ‘ये पगला है। यदि कभी इसके प्रधानमंत्री बनने की स्थितियाँ आई तो यह भी अपनी माँ की तरह यह कह सकता है कि मुझे नहीं बनना प्रधानमंत्री।’ मुझे लगा हां ये भी हो सकता है। राहुल जिस कदर लापरवाह औऱ गैर महत्वाकांक्षी इंसान है उसमें ऐसा करना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी। मुझे नहीं पता कि राहुल गाँधी का राजनीतिक भविष्य क्या है, यह भी नहीं पता कि यदि वे सत्ता में आ जाते हैं तो फिर उसके दबावों और मजबूरियों से कैसे निबटेंगे। हो सकता है कि वे भी बाकियों की तरह निराश ही करें, लेकिन आज राहुल उम्मीद जगाते हैं। ऐसा नहीं है कि मैं राहुल को फॉलो करता हूँ और उनका डाई हार्ड फैन हूं, लेकिन उनका जो कुछ भी सार्वजनिक जीवन में आता है, उसे मैं कई एंगल से आलोचनात्मक दृष्टि से देखता हूं और उसका विश्लेषण करता हूँ। अपने जीवन की बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं और लगातार मिलती असफलताओं के बावजूद राहुल जिस तरह से संतुलन औऱ गरिमा को साधे हुए हैं, वह न सिर्फ काबिल – ए – तारीफ है बल्कि सीखने के भी लायक है। जब से नरेंद्र मोदी सत्ता में आए हैं, तब से एक भी मौका ऐसा नहीं आया कि राहुल को अकेला छोड़ दिया गया हो। वे जो भी करते हैं मोदी के राडार पर रहते हैं। उस पर उनका मजबूत दुष्प्रचार तंत्र और उससे भी आगे मोदी एंड कंपनी के अंधभक्त…। यहां तक कि यदि राहुल अपनी नानी से मिलने भी जाते हैं तो यहाँ उनका मजाक बनाया जाता है। बताइये नानी से मिलने जाने में मजाक उड़ाने की क्या बात है? मगर यदि दुष्प्रचार करना ही लक्ष्य हो तो किसी भी चीज का हो सकता है। थोड़ी पुरानी बात है, अंग्रेजी अखबार से आई लड़की ने आलू-सोना वाले बयान को लेकर मजाक उड़ाया था। उससे कहा कि यार तुम को पत्रकार हो, वो वीडियो टैंपर किया हुआ है। तो उसने जवाब दिया कि ये आप और मैं जानते हैं बाकी लोग थोड़ा जानते हैं। तब पता चला कि जो जानते हैं वे भी अपने दुराग्रह के चलते उसे गलत नहीं बताते हैं। पिछले कुछ सालों से मैं राहुल को ऑब्जर्व कर रहा हूं। उसकी परिस्थितियों, दबावों, अपेक्षाओं, असफलताओं और लगातार की जा रही उपेक्षा और उपहास के बावजूद राहुल को जिस कदर संतुलित पाता हूं उसने गहरे तक प्रभावित किया है। वे खराब राजनेता हो सकते हैं, लेकिन इंसान बहुत शानदार हैं। जिस तरह का धैर्य, सौहार्द्र, समझ, सहनशीलता, संवेदनशीलता, मानवता उनमें देखने मिलती है वह बहुत दुर्लभ है। वे ईमानदार हैं, गलतियाँ करते हैं तो उसे खुले दिल से स्वीकार करते हैं। पारदर्शी हैं, मानवीय हैं, मानते हैं कि उन्होंने गलतियाँ की हैं और यह भी कि उससे उन्होंने सीखा भी है। वे राजनीति के वर्तमान खाँचे में इसलिए भी मिसफिट है क्योंकि राजनीति का पूरा-का-पूरा फ्रेम ही धूर्तता और शातिराना तरीकों से बनाया गया है। अपने पिता के हत्यारों को न सिर्फ माफ कर देना बल्कि यह कहना कि उनके लिए मेरे मन में कोई गुस्सा या आक्रोश नहीं है। यह कहने के लिए जिस किस्म के साहस औऱ उदारता की जरूरत होती है, वह बिरलों में पाई जाती है। यदि नरेंद्र मोदी औऱ राहुल में से चुनना होगा तो राहुल को ही चुनूंगा, यदि केजरीवाल औऱ राहुल में से चुनना होगा तब भी राहुल का ही चुनाव होगा। हो सकता है राहुल कभी सफल न हो, हो सकता है यदि सत्ता की राजनीति में सफल हो जाए तब हमारी अपेक्षाओं पर सफल न हो, फिर भी यह कहूंगा कि एक साफगोई, ईमानदार और उदार इंसान की गलतियाँ भी गलतियाँ ही होंगी क्योंकि नीयत गलतियाँ करने की नहीं होगी। मुझे राहुल गांधी में प्रियंका से ज्यादा संभावना दिखती है। हो सकता है वे भारतीय राजनीति की परिभाषा और मुहावरे बदलकर रख दें। राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष नही बनना चाहिए ! चौकिये मत आपने बिलकुल सही पढ़ा है ..राहुल को अध्यक्ष बनकर बीजेपी के खेल में नही पड़ना चाहिए ..राहूल को अब यूपीए चेयरपर्सन बनना चाहिए और कांग्रेस अध्यक्ष की कमान किसी ऐसे जुझारू ज़मीनी नेता के हाथ में दे देना चाहिए जो कांग्रेस संगठन का ढांचा पूरी तरह बदल सके पर आप सोच रहे होंगे इससे क्या होगा … राहुल एक साफ्ट टारगेट है लेकिन मेरा मानना की जब वो एक नई यूपीए के टीम की रूप में लडाई लड़ेंगे तो वो बीजेपी समेत पूरे एनडीए पर भारी पड़ेंगे राहुल को प्रियंका, सचिन, आदित्य, कन्हैया, जिग्नेश ,जगन, हुड्डा,और उनके जैसे 20 निडर और युवाओं की यूपीए की टीम बनाना चाहिए जो हर राज्य में एक वाइब्रेंट यंग अल्टरनेटिव प्रदान कर सके राहुल को राज्यो के चुनाव पर ज्यादा फोकस नही करना चाहिए उन्हें सिर्फ 2024 लोकसभा के चुनाव को ध्यान रखकर रणनीति बनाना चाहिए उन्हें अगर मोदी को हराना है तो उनको उससे भी बेहतर रणनीति की आवश्यकता है। 2013 से मोदी अभियान पुरुष बन गए है। एक खत्म होता ही नही वो दूसरा शुरू कर देते है। मोदी कोई नया काम नही कर रहे है वो बस महात्मा गाँधी की कॉपी कर रहे है। इसे कम्युनिकेशन इंगेजमेंट कहा जाता है राहुल को भी अपनी ऑडियंस के साथ लगातार इंगेजमेंट रखना होगा उन्हें लोगो मोदी सरकार की गलत नीतियों जैसे महँगाई , बेरोजगारी और किसानों के मुद्दों को भूलने नही देना है राहुल को रघुरामन राजन जैसे अर्थशास्त्री को अपनी टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाकर मध्य वर्ग के साथ पॉलिटिक्स ऑफ होप करनी होंगी क्योकि भारत का वोटर केवल बेहतर कल के लिए वोट करेगा। 2009 और 2014 का चुनाव इसका परफेक्ट यूजड केस है जहां भारत के वोटर ने एक बेहतर कल के सपने को वोट दिया था राहुल को बस एक अच्छी युवा टीम और एक बेहतर सपने के साथ सफर की शुरुआत कर देना चाहिए और विचारधारा से एक इंच भी समझौता नही करना चाहिए कांग्रेस एक आंदोलन से जन्मी पार्टी है कांग्रेस एक पार्टी नही ब्रांड है जो 100 साल से देश के हर आदमी के जेहन में है जिस दिन राहुल ने आज के युवा को यह विश्वास दिला दिया उनके पूर्वजों ने इस पार्टी को देश की बागडोर 65 साल तक क्यो सौपी थी उस दिन से बीजेपी फिर से सिर्फ व्यापारियों की पार्टी बनकर रह जायेगी राहुल को बस भारत की हर युवा की आँखों को यही कहना है Post navigation शिक्षा के सँग कीजिये, भोजन उचित प्रबंध।पोषण सह बल से बढ़े, जीवन का अनुबंध।। बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने की जरूरत