राधास्वामी नाम ज्ञान और विज्ञान का है मिश्रण
भक्ति करना कठिन काम नहीं, कठिन तो अच्छे गुणों को अपनाना है, सचाईं और ईमानदारी को धारण करना है : कंवर साहेब जी महाराज
दिनोद धाम जयवीर फोगाट,
15 मई,जिस जगह इंसान की आस्था जुड़ जाती है उस जगह से इंसान जो चाहे वो पा सकता है। मंदिरों में स्थापित मूर्तियां इंसानों की बनाई हुई हैं लेकिन मूर्तियों में हम अपने इष्ट के दर्शन पा कर उनसे मनचाहा वरदान पा लेते हैं ये उन मूर्तियों के प्रति इंसानो की आस्था और विश्वास का ही परिणाम है। साधारण शब्दों में इंसान की भक्ति उसके अपने विश्वास में ही है। आपका विश्वास आपकी आस्था ही आपका इष्ट है वही आपका गुरु है वही परमात्मा है।
हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि राधास्वामी नाम आज कण कण में व्याप्त है लेकिन ये सोचो कि जब स्वामी जी महाराज ने इस नाम को प्रकट किया था तब किस तरह से ये लोगो के मन में टिका होगा। जब चहुं और कर्मकांडी भक्ति का फैलाव था तब अंतर घट की भक्ति की बात करना और राधास्वामी नाम की स्थापना करना कितना मुश्किल होगा लेकिन जो निखालिष वस्तु होती है वो किसी के छुपाए नहीं छुपती। उन्होंने कहा कि शब्दो का अपना महत्व है। कोई शब्द मंगल का होता है तो कोई चेतावनी का। कोई हेली का शब्द होता है तो कोई विरह और प्रेम का। इसी तरह मंजिले मकसूद के शब्द होते हैं जो उस धाम की बड़ाई करते है जो परमात्मा का धाम है और जहां से हर रूह बिछुड़ कर आती है। हर शब्द को गाने का अपना एक समय होता है। महाराज जी ने कहा कि शब्द परमात्मा का गुणगान हैं। उन्होंने कहा कि राधास्वामी दयाल ने ऐसी मौज दिखाई कि एक ही जीवन में हम योग भोग और जोग को धारण करके अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि राधास्वामी नाम का अगर अर्थ भी जान जाओगे तो और कुछ करने की आवश्यकता नहीं हैं। उन्होंने कहा कि राधास्वामी मत में सत सनातन धर्म का हर मर्म है। यही आत्मा को परमात्मा से मिलाने का सही व सच्चा योग है। यह ज्ञान और विज्ञान का सही मिश्रण है। राधास्वामी नाम राधास्वामी दयाल ने स्वयं प्रकट होकर अपनी मुबारक जुबान से प्रकट किया है। गुरु जी ने फरमाया कि सबसे पहला कार्य मन की शुद्धि का करो क्योंकि शुद्ध मन में ही भक्ति हो सकती है। हुजूर ने कहा कि भक्ति करना कोई कठिन काम नहीं है कठिन तो अच्छे गुणों को अपनाना है, सचाईं और ईमानदारी को धारण करना है। उन्होंने कहा कि एक कटु सत्य है मौत लेकिन हैरानी की बात है कि इंसान इस सत्य को मानने से भी इंकार करता है।
गुरु महाराज जी ने आठ सुखों का जिक्र करते हुए कहा कि पहला सुख निरोगी काया है। जिसका तन ठीक नहीं वो ना मन सुखी रख सकता है ना भक्ति कमा सकता है। काया अगर सुख दे रही है तो माया के बिना भी इंसान रह सकता है। हुजूर ने कहा कि इस दुनिया में जितने भी इंसान है वो सब शरणार्थी हैं। यहां कोई स्थाई नहीं है। सब को जाना है फिर किस बात का संचय। उन्होंने कहा कि दुनियादारी की सारी कलाएं केवल जीवन यापन का साधन मात्र हैं लेकिन ये वो विरह नहीं है जिस से परमात्मा मिलता है। सब उन सुखों में गाफिल हैं जो क्षणभंगुर हैं। जब ये सुख छूट जाते हैं तब इंसान दुखी होता है। उन्होंने कहा कि खोटे कर्म हम करते हैं और दोष भाग्य को देते हैं। उन्होंने कहा कि जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे। अगर कोई आपका बुरा करता है तो भी आप उसका बुरा मत सोचो क्योंकि जो बुरा करता है उसको उसका फल स्वयं मिल जाएगा। आप तो सबसे उत्तम कर्म करो और वो कर्म है परमात्मा की भक्ति। संतो के पास जाकर केवल उनका आशीर्वाद मांग लो आपको सब कुछ मिल जाएगा। सुख में मालिक का शुकराना करो और दुख में प्रार्थना करो। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार समुद्र के किनारे के शहरों में बारहों महीने मौसम एक जैसा रहता है वैसे ही परमात्मा की शरण में रहने वाला इंसान भी सम्भावी रहता है। बानी बोलो तो हृदय से बोलो क्योंकि हृदय से निकला वचन कभी गलत नहीं होता। हुजूर ने कहा कि सत्य के लाखो दुश्मन होते है और झूठ के लाखो हिमायती लेकिन फिर भी जीत सत्य की ही होती है।