वर्ष 1945 में स्थापित हुआ था दादरी शहर के रेलवे रोड़ पर गुरूद्वारा

चरखी दादरी जयवीर फोगाट

21 अप्रैल, दादरी की पावन भूमि साधु-संतों और धर्मस्थलों की नगरी है। यहां हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक स्थल हैं। इन्हीं में से एक गुरूद्वारा सिंह साहब, जो कि दादरी शहर के रेलवे रोड पर विगत 86 सालों से विराजमान है।

संत स्वामीदयाल जी की बसाई हुई नौ सौ साल पुरानी इस नगरी में सिक्खों का आवागमन सन 1857 के बाद हुआ है, जब अंग्रेजी हुकूमत ने गदर में उनका साथ देने के लिए नवाबों की जागीर छीनकर सिक्ख रियासतों को बांट दिया था। सतावन की लड़ाई से पहले दादरी नवाब झज्जर राणा जंगबहादुर खां के आधीन थी। पीर मुबारिज खां की बदौलत मुस्लिम आबादी तो यहां गांव कलियाणा में 13 सौ ईस्वी में ही आ गई थी। हिंदूओं ने इस नगरी को सिद्घ महात्मा स्वामीदयाल जी के आशीर्वाद से सन 1150 के आसपास बसाया था। उस समय संत स्वामीदयाल जी ने राजस्थान से यहां आए एक राजपूताना मुखिया को फौगाट गोत्र बख्शा और दादरी में अमन शांति के साथ रहने की अनुमति प्रदान की थी। वर्ष 1857 में नवाब का शासन चले जाने के बाद ब्रिटिश वायसराय ने दादरी को जींद रियासत के अधीन करने का फरमान सुनाया था। जींद राजा के शासनकाल में दादरी का विकास तेजी से शुरू हुआ और सन 1900 से पहले यहां रेलवे लाईन बिछाए जाने की शुरूआत हो गई थी।

आधुनिक विकास आरंभ हुआ तो वर्ष 1935 में दादरी में सेठ डालमिया ने सीमेंट फैक्ट्री की स्थापना कर दी थी। यहां चूना बहुतायत में था। सीमेंट फैक्ट्री की स्थापना और सिक्ख रियासत का शासन होने की वजह से दादरी में सरदार कौम के अफसरों व मुलाजिमों का आना-जाना शुरू हो गया था। यहां का पानी ठीक नहीं होने के कारण सीमेंट कारखाने के कुछ सिख अधिकारी व कर्मचारी तो केश धोने के लिए रेवाड़ी रेलवे स्टेशन पर जाया करते थे। उस समय दादरी किला मैदान के मुख्य द्वार पर गुरूद्वारा स्थापित किया गया, जो कि बाद में चकबंदी के सरकारी दफ्तर में तब्दील हो गया था। सिखों को मत्था टेकने के लिए एक गुरूद्वारे की आवश्यकता थी। कहते हैं कि वर्ष 1945 में एक सिख पटवारी ने रेलवे स्टेशन के नजदीक लगभग 1200 गज की जमीन गुरूद्वारे के लिए मुहैया करवाई थी। गुरूद्वारा का निर्माण यहां शुरू हुआ और नाम रखा गया गुरूद्वारा सिंह सभा।

गुरूद्वारा में रह रहे साबी वीरेंद्र सिंह ने बताया कि वर्ष 1947 की लड़ाई में कुछ लोगों ने धार्मिक स्थलों को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी। गुरूद्वारा सिंह सभा में भी कुछ उपद्रवी घुस गए थे, लेकिन इसे बचा लिया गया। साबी ने बताया कि उनके पिता अजीत सिंह अमृतसर से सन 1964 में आए और बिजली बोर्ड में काम करना शुरू कर दिया था। उनके परिवार को यहां 58 साल हो गए हैं और गुरूद्वारा की देखरेख यही परिवार करता आ रहा है। गुरूद्वारा सिंह सभा में हर साल बैसाखी, गुरू नानक देव जी का प्रकटोत्सव, गुरू गोबिंद सिंह जयंती व गुरू अर्जुनदेव जी का प्रकाशोत्सव हर साल मनाया जाता है। इस दिन यहां पावन गुरूग्रंथ साहिब का पाठ व शबद वाणी की जाती है। यहां खास मौकों पर लंगर और छबील का आयोजन करवाया जाता है। गुरूद्वारा सिंह सभा दादरी व आसपास रह रहे सिक्ख तथा हिंदू परिवारों के लिए धार्मिक श्रद्घा का केंद्र है। पिछले छ: सौ साल की धार्मिक विरासत में सिख गुरू इंसानियत और धर्म की रक्षा के लिए सेवा, त्याग और समर्पण की सीख देते आए हैं। दादरीवासियों ने 24 अप्रैल को मुख्यमंत्री मनोहर लाल के मार्गदर्शन में मनाए जा रहे गुरू तेग बहादुर जी के 400 वें प्रकाशोत्सव पर खुशी जताई है।

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