ऋषि प्रकाश कौशिक

लोकतंत्र का अर्थ पाँच साल में एक बार वोट डालना नहीं है; लोकतंत्र का अर्थ यह भी नहीं है कि मतदान सम्पन्न होने के बाद मतदाता की भावनाओं की लगातार उपेक्षा हो; लोकतंत्र के ये मायने भी नहीं है कि सरकार सार्वजनिक हित दरकिनार कर अपने फैसले जनता पर थोपती रहे। लोकहित, लोकलाज, लोक परंपरा से लोकतंत्र चलता है। मनमाने फैसलों के डंडे से लोकतंत्र को आहत करना संवैधानिक मान्यताओं का जनाजा निकालना है।

हरियाणा में आँगनवाड़ी की आशा कार्यकर्ता कोर्ट पहुंच गईं हैं; अध्यापक अदालत में न्याय मांग रहे हैं; पंचायतें कोर्ट की शरण में चली गई हैं; निजी स्कूल अपनी समस्याओं पर माकूल समाधान ना मिलने पर कोर्ट के आँगन में खड़े हैं; बिजली कर्मचारी सरकारी नीतियों का करंट नहीं झेल पाए इसलिए अदालत में गुहार लगा रहे हैं। रोडवेज कर्मचारियों ने अपने कल्याण पर लगे ब्रेक हटवाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। डॉक्टर भी सरकारी नीतियों से नाखुश थे लेकिन उनकी आवाज़ आवश्यक सेवा अधिनियम (एस्मा) लगा कर बंद कर दी गई। किसान पहले से ही नाराज थे। अदालत पहुंचने वालों की फहरिस्त देख कर यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर सरकार से खुश कौन है! अदालत की दहलीज पर वही जाता है जिसे सरकार से न्याय नहीं मिलता। भारी संख्या में लोगों की नाराजगी का मतलब है, कल्याणकारी नीतियों का अभाव और सरकार का मनमाना रवैया।

 किसी भी आदर्श सरकार का पहला सिद्धांत होता है – लोक कल्याण। जिस सरकार की नीतियां कल्याणकारी नहीं होतीं, वह सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों की पोषक नहीं मानी जाती। लोकतांत्रिक मूल्यों के बिना लोकतंत्र कैसा?

जनता की नाराजगी पर धर्म या देशभक्ति का मुलम्मा चढ़ा कर अपनी छवि चमकाने की कोई सरकार कोशिश करे तो समझ जाइए की सरकार को कल्याणकारी कार्यों से कोई सरोकार नहीं है। देशभक्ति का जज्बा हर नागरिक में होना चाहिए लेकिन जब देशभक्ति का राजनीतिक स्वार्थों के लिए प्रदर्शन किया जाता है तब जनता सवाल तो पूछती ही है। जनता को पूरा हक है सवाल पूछने का।

पहला सवाल तो यही है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल आती है लेकिन पहले कभी बीजेपी ने इतने सम्मान के साथ नेताजी को याद नहीं किया। बीजेपी की दलील हो सकती है कि इस साल आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है इसलिए नेताजी को विशेष सम्मान के साथ याद किया जा रहा है। इस दलील से सभी सहमत होंगे। पर एक सवाल फिर खड़ा होता है कि अमृत महोत्सव 2021 15 अगस्त को भी था तब क्यों नहीं याद किया नेताजी सुभाष चंद्र बोस को । इतनी बड़ी हस्ती को विशेष सम्मान देने के लिए अमृत महोत्सव की प्रतीक्षा क्यों? इससे पहले नेताजी को सम्मान देने के लिए क्या बीजेपी कार्यकर्ताओं को कोई रोक रहा था! अचानक नेताजी के प्रति मान, सम्मान और प्यार उमड़ने से ‘दिखावे’ का शक तो होगा ही। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए हर साल जो सम्मान दिया जाता है वैसा ही नेता जी के लिए क्यों नहीं था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी को बिना अमृत महोत्सव जो सम्मान दिया जाता है वैसा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी तो दे सकते थे। नेताजी को अचानक याद करने से सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न उठना लाजिमी है। ऐसा लगता है, लगाता ही नहीं, ऐसा ही है कि सरकार देशभक्ति की चादर से कई तबकों की नाराजगी ढक कर अपनी नाकामी छुपा रही है।

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