सत्संग देखने-सुनने का नही, सत्संग तो करना होता है : कंवर साहेब जी महाराज
दिनोद धाम जयवीर फोगाट
09 जनवरी – सत्संग उसी को माना जाता है जहां परमात्मा के नाम का बखान किया जाता है। सत्संग देखने और सुनने का नहीं होता सत्संग तो करना होता है। सत्संग करने का अर्थ है सतगुरु के वचन को अपने जीवन में उतार लेना। जो सतगुरु के वचन को जीवन में उतार लेता है वो नाम की भक्ति में लग जाता है। नाम भक्ति परमात्मा के स्वरूप को आत्मा में बसा लेना है। हुजूर कंवर साहेब ने सत्संग वचन फरमाते हुए कहा कि कलयुग में सत्संग घरों की, सतगुरु की और सतनाम की महिमा और भी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि कलयुग में जीव कल्याण का आधार नाम का सुमिरन ही है। सत्संग यथार्थ भक्ति की और लेकर जाता है। उन्होंने कहा कि सत्संग चाहे किसी भी रूप में हो वो जीव के लिए कल्याणकारी ही है।
महाराज कँवर साहेब जी ने फरमाया कि हमारी रूह परमात्मा की ही अंश है लेकिन इस सांसारिक आपाधापी में हम आत्म साक्षात्कार ही भूल गए हैं। आत्म साक्षात्कार सत्संग से ही हो सकता है और सत्संग सतगुरु का ही होता है। सरल भाषा में जँहा परमात्मा के सतनाम का प्रचार प्रसार और गुणगान होता है वही सत्संग होता है। सतनाम ही सब जीवो के लिए सत्य शक्ति है। गुरु महाराज जी ने कहा कि बाजी खेलो तो परमात्मा के साथ खेलो यदि हारे तो भी हम जीते और जीते तो भी हम ही जीते। उन्होंने कोरोना काल में सभी को अतिरिक्त सावधानी बरतने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि इस बहाने हमें जो समय मिला है हम उसका सदुपयोग करते हुए उसे परमात्मा की भक्ति में लगाएं।