आराध्य के पूजन से घर में सुख व समृद्धि की होती है प्राप्ति, संतान को प्राप्त होती है दीर्घायु

गुरुग्राम: श्री माता शीतला देवी मंदिर श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संग्राम के अध्यक्ष पंडित अमरचंद भारद्वाज ने कहा कि हिंदू धर्म में अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस साल 19 अक्टूबर के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा को कोजागरी और राज पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का काफी महत्व है। ज्योतिषियों के अनुसार साल में से सिर्फ शरद पूर्णिमा के ही दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन ब्रह्मचर्य अवस्था में शुद्ध रूप से चंद्रमा की पूजा और आराध्य देवों की उपासना से घर में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं संतानों को दीर्घायु प्राप्त होती है। कहते हैं कि इस दिन से सर्दियों की शुरुआत हो जाती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है. पूर्णिमा की रात चंद्रमा की दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है और इसी दूधिया रोशनी के बीच पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

शरद पूर्णिमा के दिन लगाया जाता है खीर का भोग

शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखे जाते हैं। यह चंद्रमा पूजन की विधि है वहीं इसके पीछे वैज्ञानिक कारण होते हैं। दूध में भरपूर मात्रा में लैक्टिक एसिड पाया जाता है। ये चांद की तेज रोशनी में दूध में पहले से मौजूद बैक्टिरिया को और बढ़ाने में सहायक होता है। वहीं, खीर में पड़े चावल में पाए जाने वाला स्टार्च इसमें मदद करता है। इसके साथ ही, कहते हैं कि चांदी के बर्तन में रोग-प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है. इसलिए हो सके तो खीर को चांदी के बर्तन में रखना चाहिए। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी सबसे तेज होती है। इन्हीं सब कारणों की वजह से शरद पूर्णिमा की रात बाहर खुले आसमान में खीर रखना फायदेमंद बताया जाता है।

शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त

इस बार शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर, 2021, मंगलवार को मानई जाएगी।
पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर 2021 को शाम 7:02 बजे से प्रारंभ होकर 20 अक्टूबर 2021 को रात्रि 8:23 बजे समाप्त होगी। पंचांग में 20 अक्टूबर को भी शरद पूर्णिमा का उल्लेख है लेकिन रात्रि के समय पूर्णरूपेण से पूर्णिमा न होने के कारण 19 अक्टूबर को ही शरद पूर्णिमा मानई जाएगी।

श्रीकृष्ण ने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रचाया था रास

मान्यता के अनुसार इसी दिन श्रीकृष्ण को ‘कार्तिक स्नान’ करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति के रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। इस दिन प्रात:काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन,आसन, आचमन, वस्त्र,गंध अक्षत,पुष्प,धूप,दीप,नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घर और चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पित (भोग लगाना) करनी चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें और खीर का नैवेद्य अर्पित करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करना चाहिए साथ ही सबको इसका प्रसाद देना चाहिए। पूर्णिमा को व्रत करने वाले दस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा का विधान है वहीं पूर्णिमा पर कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन निय व्रत धारण करने का भी दिन है।

शरद पूर्णिमा की कथा

पं अमरचंद भारद्वाज ने कहा कि शास्त्र के अनुसार शरद पूर्णिमा की कथा इस प्रकार है। एक साहूकार की दो पुत्रिया थीं। वे दोनों पूर्णिमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थह, लेकिन छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन की जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परंतु बड़ी बहन की सारी संताने जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े बड़े पंडितों को बुलाकर अपना दुख बताया और उनसे इसका कारण पुछा। इस पर पंडितों ने बताया कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसलिए तुम्हारे संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिका का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहा करेंगी। पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुननी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल व गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली और चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर पंडिताइन के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्घ्य दें। शरद पूर्णिमा से ही उत्सव और व्रत प्रारंभ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत नजदीक आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का संकल्प शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए।

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