1947 के विभाजन का दर्द – बुजुर्गों की जुबानी

ज्ञानचंद मेहता, रामनगर, गुरुग्राम

ज्यों ही मैंने पेन उठा कर 11/08, 12/08, 13/08 और 14/08 1947 की घटना लिखने लगा, मेरा दिल-दिमाग चकरा गया, मेरे हाथ कांपने लगे | वह दिन हमारी घोर परीक्षा के दिन थे, मेरे पिता जी श्री साधुराम जी, माता लेखी बाई जी मूल रूप से सोकड़ तहसील तौंसा शरीफ, जिला डेरा गाजी खान से थे | परन्तु लम्बे समय से वह लोअर मिडिल स्कूल खानपुर, तहसील ननकाना साहिब जिला शेखुपुरा में मुख्याध्यापक के पद पर सेवा कर रहे थे | यह हिन्दू-सिख गाँव एक मजबूत किले के अन्दर था | परिवार का हर बड़ा लड़का प्राय: सिख था | कोई भेदभाव नही था | आरती और गुरु घर पूजा धूमधाम से होती थी | बहुत धनी लोग व्यापार के केंद्र और अच्छा बाजार था |

गाँव के बाहर सुन्दर स्कूल जिसमें उर्दू – फ़ारसी पढ़ाई जाती थी | हिंदी- इंग्लिश का नाम भी नहीं था | सांयकाल एक संघ शाखा भी लगती थी | कुछ अधिकारी, कभी-2 बाहर से आते और लोगों को बहुत कुछ बता जाते, उन दिनों बहुत हलचल मची थी, डर-खौफ बहुत था | इधर-उधर मुसलमानों के गाँव थे, मेरी आयु 12 साल की थी | गाँव में रात को मीटिंग होती लोग भय-डर से घर छोड़ने और हिंदुस्तान जाने की बात करते | कुछ लोग गाते “सुरा सोई जानिए, जो लड़े दीन के हेत” “बंद बंद कटवाएँगे, बंदा बहादुर बन जायेगें”

मेरे पिता श्री साधुराम का लोग बहुत सम्मान करते थे | वह वीर हकीकत की लम्बी कविता सुनाते थे, बच्चे नाचते थे | एकदम जयकारा लगता “सब कुछ छोड़ेंगे धर्म नहीं छोड़ेंगे”, लोगों ने घरों में भाले, तलवारें, गंडासे बनवा रखे थे | उन माताओं, बहनों, बच्चों को शत-शत प्रणाम करता हूँ जिनके मन में अपने धर्म और देश प्रति प्रेम था |

सब गाते, सब कुछ छोड़ेंगे, धर्म नहीं छोड़ेंगे | लोग कहानियां सुनाते | एक गुरु प्रेमी महाराज श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के दो बेटों बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह की कथा सुनाते कि मुगलों से लड़ते जान दे दी और दूसरे दो बेटों को जिनके नाम बाबा जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह था | सरहिन्द के नवाब ने जिन्दा दीवार में चिनवा दिया | जयकारे बोलते और गाते थे |

(पिता वारियां और लाल चारे वारे, नी हिन्द तेरी शान बदले) कुछ लड़के गाते हम “हकीकत तेरे भाई हम भी सिर कटवा लेंगे” रोती चिल्लाती स्त्रियों और बूढ़े लोगो का रोना मुझे याद है |

मैं अब यह लिखते भी रो रहा हूँ गुरु तेग बहादुर, गुरु अर्जुन देव की गाथा सुना लोग हिम्मत देते | 14.08.1947 आखिर वह दिन आ गया – इधर – उधर सूचनाएं सुन, जब सब लोग धर्म की खातिर, सब कुछ छोड़ सिर पर छोटी-2 गठरी ले, भरे घरों को ताले लगा, किले से बाहर आ गये | मुसलमान लोग भाले-तलवारें ले गाँव को घेर रखा | हम सब लोगों के हाथों में भाले-तलवारें चमक रही थी | आम लोग मेरे पिताजी की बात सुनते, उनके हाथ में जो भाला था, हमें याद आता है | मुसलमानों के झुण्ड, एकदम इस धनवान गाँव में घुस गये | इतने में मेरे पिता जी को अपने सर्टिफिकेट याद आये | हम रोकते रहे परन्तु वह वापस गये, देखा सामने वाले घर के बहुत वृद्ध जोड़े को लोगों ने मार दिया | जब वह वापस आये तो हमारी जान में जान आई |

हमारा काफिला चला, इसमें इधर-उधर के गावों से बहुत हिन्दू लोग, कई दिन पहले आ गये थे | पहला गाँव ताहर था परन्तु यहाँ कोई बहुत बड़ी घटना नहीं हुई | दूसरा गाँव किलबमां सिंह था, धनवान सिख गाँव था | एक दिन-रात यहाँ रहे | दिन-रात आटा पिसता था | इन लोगों के पास हथियार, बंदूक, पिस्टल थे | वह 8-10 मील लम्बा काफिला कड़ाके की गर्मी चारों तरफ से हमले कभी – 2 अल्लाह हू अकबर की आवाज और सत्य श्री अकाल की आवाज | हर रात्रि को काफिलें पर हमला जवान लोग दिन-रात रक्षा करते | सब लोग भूखे प्यासे थके – रात को जो मिलता पकाते, खाते और भूखे सो जाते, नींद कहाँ ? रास्ते में नदी किनारे लाशें पड़ी होती और साथ बैठकर हम पानी पीते, माताएं रोटी खाती या न, बच्चों को खिलाती, मैंने अपनी माँ को भूखे देखा है | रास्ते में एक गाँव पर एक हवेली के दरवाजे पर एक – दो आदमी आवाज दे रहे ठंडा जल, ठंडा जल गर्मी बहुत थी जो भी जाता वापस नहीं आया | मेरे पिताजी हमारे लिए पानी लेने गये परन्तु गेट से देखा आदमी मार रहे है वह भाग कर वापिस आये |

हमारा आखिरी पड़ाव, वाघा से कुछ दूर था | बहुत गहरा और बड़ा स्थान, जवान लोग सबको वार्निंग दे रहे थे | आज बड़ा हमला होगा, सोना नहीं | थकावट भूख और सामने मौत, नींद कहाँ थी ? लगभग आधी रात अल्लाह हू अकबर, सत श्री अकाल की आवाजें, भाले और तलवारें, बहुत जबरदस्त मुकाबला | काफिले में कितने आदमी मरे, पता नहीं | हमारे नजदीक सब हुआ |

अगली प्रात: डरे भूखे-थके लोग, चिल्लाते रोते, भारत पहुंचे | काफ़िर देर बाद हमें तरनतारन लाया गया | कुछ लंगर रोटी-चावल मिला | हमें भारत ने किसी ने शरणार्थी कहा, किसी ने रिफ्यूजी बोला, किसी ने पाकिस्तानी कहा, किसी महापुरुष ने नहीं कहा’ “यह लोग धर्म प्रेमी और देश भक्ति है” |

जो सब छोड़, खाली हाथ, भूखे नंगे प्यासे, अपने धर्म की खातिर अपने देश भारत आये है |

मैं अपने पूर्वजों को नमस्कार करता हूँ जिन्होंने भारत की शान, अपनी मेहनत एवं त्याग से बढ़ाई | परन्तु सरकार से कही आरक्षण नहीं माँगा | भारत के हर फील्ड में ज्ञान और शोभा बढ़ाने में इन त्यागी देश भक्तों का बहुत बड़ा हाथ है | हमारे लोगों ने मेडिकल फील्ड, सिनेमा जगत, शिक्षा और खेती-बाड़ी में देश की भरपूर सेवा की है |

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