नारनौल, रामचंद्र सैनी

 नारनौल के स्टेडियम के पास स्थित ऐतिहासिक सोमेश्वर तालाब के बहुचर्चित मामले में सेशन कोर्ट ने फैसला दे दिया है। कोर्ट का फैसला तालाब सहित कुल 13 बीघा 7 बिस्वा भूमि के सेल डीड धारी जयप्रकाश के पक्ष में आया है। इस तालाब पर सन 2011 कुछ प्रॉपर्टी डीलरों ने जेसीबी चलाकर इसे तहस नहस करने का प्रयास किया था। जिसका लोगों ने डटकर विरोध किया था और बाद में अनेक गणमान्य लोगों पर पुलिस ने मुकदमें तक दर्ज किए गए थे। जिसके चलते यह मामला काफी सुर्खियों में रहा था। बाद में सैंकडों लोगों ने  आमसभा बुलाकर इस मामले में अदालत की शरण ली और नारनौल शहर के विभिन्न मोहल्लों से 14 लोगों द्वारा तालाब व इसकी जमीन वाली सेल डीड को अलग-अलग चुनौती दी थी। आम लोगों के एक पक्ष की कोर्ट में पैरवी करने वाले अधिवक्ता सत्यनाारायण शर्मा ने बताया कि पिछले माह इस मामले में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने विवादित भूमि पर तालाब को तो मान लिया है लेकिन अपने फैसले मे विभिन्न टिप्पणियों के साथ इसका फैसला सेल डीडधारी जयप्रकाश के पक्ष में किया है। फैसले की प्रति उन्होंने अपने याचिकाकर्ताओं को उपलब्ध करवा दी है।

अदालत का फैसला का अध्ययन करने के बाद इस मामले में याचिकाकर्ताओं व कई गणमान्य लोगों ने यहां के दादू आश्रम में एक बैठक की। जिसमें सभी ने कहा कि सोमेश्वर तालाब नारनौल की एक ऐतिहासिक धरोहर है। इसे बचाने के लिए वे अपनी कानूनी लडाई जारी रखेंगे। बैठक में उपस्थित गुरू गोबिंद स्कूल के प्रधान सरदार गुरमेल सिंह, मार्केट कमेटी नारनौल के निवर्तमान चेयरमैन जेपी सैनी, पूर्व पार्षद देवकरण चौहान, वरिष्ठ पत्रकार रामचंद्र सैनी, पूर्व पार्षद अजय सिंहल, कामरेड महाबीर प्रसाद एडवोकेट, समाजसेवी सुरेशपाल सैनी, एडवोकेट पंकज किरोडीवाल, मदनलाल गांठी व गंगाराम सैनी आदि ने एक स्वर में कहा कि सोमेेश्वर तालाब मामले में नारनौल सेशन कोर्ट के फेसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की जाएगी।

आखिर क्या है मामला:-

नारनौल के सुभाष स्टेडियम के पास ऐतिहासिक सोमेश्वर तालाब है। कुल 13 बीघा 7 बिस्वा रकबा वाली इस भूमि में चार बीघा 10 बिस्वा रकबा में वर्गाकार तालाब बना हुआ है और बाकी 8 बीघा 17 बिस्वा भूमि तालाब के चारों तरफ सहन के रूप में है। जो 1932 बीके के रिकार्ड के अनुसार तालाब सोमेश्वर के नाम से दर्ज है। 1987 में हरियाणा सरकार ने इस सारी भूमि को मात्र करीब 85 हजार में नारनौल के जयप्रकाश को विक्रय कर दी और बाकायदा जयप्रकाश को इसके लिए एक सेल डीड भी जारी कर दी गई। जयप्रकाश ने सेल डीड के आधार पर इस भूमि व तालाब पर सबसे पहले कब्जा 1994 में लेने का प्रयास किया तो लोगों के भारी विरोध के चलते असफल रहा। इसके बाद भी कई प्रयास किए गए लेकिन डीडधारी को कब्जा नहीं मिल पाया और हर बार लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। कई प्रयासों के बाद भी जब जयप्रकाश को इस पर कब्जा नहीं मिला तो जयप्रकाश ने सन 2011 में इस सेल डीड के आधार पर तालाब व इसकी भूमि का आदमपुर दाढी निवासी सतीस सांगवान व हरसौली निवासी जितेंद्र सैनी के नाम बेचने का एक एग्रीमेंट कर दिया। एग्रीमेंट के आधार पर सतीस सांगवान व जितेंद्र सैनी ने ना केवल गैरकानूनी तरीके से संख्याबल से इस भूमि पर कब्जा करने का प्रयास किया बल्कि जेसीबी की सहायता से तालाब को तहस नहस करना शुरू कर दिया।

एग्रीमेंट धारियों की इस कार्रवाई का पता चलते ही भारी तादाद में आसपास के लोगों के पुरूष व महिला मौके पर पहुंच गए और कब्जे का डटकर विरोध किया। मौके पर तालाब को तहस नहस कर रही जेसीबी मशीनों के शीशे महिलाओं ने पत्थरों से तोड़ डाले। भारी विरोध होता देख कब्जा लेने आए लोग जेसीबी भी मौके पर छोडकर भाग खडे हुए थे। मोहल्ले के लोगों ने बाद में जेसीबी पुलिस के हवाले करके तालाब को नुकसान पहुंचाने वालों पर कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन प्रॉपर्टी डीलरों ने अपने प्रभाव से मुकदमा मोहल्लों के गणमान्यों के खिलाफ ही दर्ज करवा दिया था। इस एपीसोड के बाद शहर के लोगों की बैठकों का दौर चला, जिसमें सभी की एक राय बनी कि तालाब और इसकी जमीन को कानूनी प्रक्रिया से बचाया जाये और जयप्रकाश की सेल डीड को कोर्ट में चुनौती दी जाये। तब 2011 में शहर के 14 लोगों ने कोर्ट की शरण ली थी जिस पर अब दस साल बाद कोर्ट ने अपना फैसला देते हुए जयप्रकाश के पक्ष में फैसला दिया है।

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