-कमलेश भारतीय

आजकल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के चयन में फिर से ‘गठबंधन धर्म’ की चर्चा सुनते यह सवाल मन को मथने लगा कि क्या गठबंधन का कोई धर्म भी होता है ? कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सांसद बेटे श्रीकांत शिंदे ने कहा कि मेरे पिता ने अपनी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा को किनारे रख कर ‘गठबंधन धर्म’ का पालन किया और उदाहरण पेश किया है । शिंदे गुट के प्रवक्ता व विधायक संजय शिरसाट ने भी कहा कि शिंदे कार्यवाहक मुख्यमंत्री हैं, वे नयी सरकार में डिप्टी मुख्यमंत्री का पद क्यों स्वीकार करेंगे ? यह उस व्यक्ति के लिए शोभा नहीं देता जो पहले मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर चुका हो !

है न मज़ेदार गणित और उससे भी मज़ेदार उदाहरण ! अरे ! जब शिवसेना तोड़कर, भाजपा से हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बने थे एकनाथ शिंदे जी, तब उनकी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं थी क्या ? फिर तो महाअघाड़ी गठबंधन में बैठे रहते शांत होकर ! तब क्यों होटल दर होटल लेकर छिपे फिर रहे थे विधायकों को लेकर ? अब कौन सा ‘गठबंधन धर्म’ बचाने या निभाने की बात कर रहे हो ?

कांग्रेस का इतिहास देख लीजिए न, कितने गठबंधनों को ठेंगा दिखाते सरकारे गिराने में देर नहीं लगाई ! चंद्रशेखर की सरकार को चार महीने बाद धड़ाम से नीचे गिराते ज़रा लज्जा या गठबंधन धर्म की याद नहीं आई ! दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पहली सरकार का साथ देकर फिर बीच मंझधार साथ छोड़ दिया । अब झारखंड में हेमंत सोरोन को अकेले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी पड़ी क्योकि कांग्रेस अभी मत्री पद के तौर पर कुछ तय नहीं कर पा रही है ! फिर यह गठबंधन कब तक निभ पायेगा, जिसकी शुरुआत ही गजब की है !गठबंधन की राजनीति सन् 1967 के आसपास शुरू हुई क्योंकि कांग्रेस से दूसरे दलों का मोहभंग होना शुरू हो गया था ओर जनता का भी ! हरियाणा में चौ देवीलाल ने कांग्रेस के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाया, जिसका संदेश देश भर में गया और आखिर केंद्र में विश्वनाथ प्रसाद सिंह के साथ वे उपप्रधानमंत्री पद तक पहुंचे यानी ‘जुगाड़’ या कहिये ‘गठबंधन’ की राजनीति का उच्च उदाहरण चौ देवीलाल ने देश की जनता के सामने प्रस्तुत किया, यह फार्मूला अब हिट है और हर राज्य में इस जुगाड़ को या गठबंधन को जरूरत के समय निभाया जा रहा है लेकिन इसका कोई धर्म नहीं है ! साढ़े चार साल तक जजपा के साथ हरियाणा में सरकार चला कर भाजपा ने गठबंधन तोड़कर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना कर उपमुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला से मुक्ति पाने में ही भलाई समझी ! तब कहां गया, गठबंधन धर्म ? बताइये कौन सा होता है गठबंधन धर्म ! कोई नहीं, ‘अवसरवादी गठबंधन’ होता है, जैसा दुष्यंत चौटाला खुद कहते रहे कि हरियाणा को मजबूत सरकार देने के लिए गठबंधन किया न कि उपमुख्यमंत्री बनने के लिए लेकिन दादा रामकुमार गौतम साढ़े चार साल रोते कल्पते रहे कि सारी मलाई खुद खाये जा रहे हो, कुछ दूसरों को भी बांट दो पर दादा गौतम अभागे रहे, इस बार भी किसी मलाईदार महकमे से वंचित रह गये मन मसोसकर !

गठबंधन का कोई धर्म नहीं होता और न कोई गठबंधन निभाता ! अभी हरियाणा में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद बसपा की सुप्रीमो मायावती ने इनेलो से गठबंधन तोड़ते कहा कि हमारे वोट तो ले लिये, अपने ट्रांस्फर नहीं करवाये, अब आगे से कोई गठबंधन नहीं किसी से ! उत्तर प्रदेश में उपचुनाव में कांग्रेस को कोई सीट पसंद नहीं आई गठबंधन में तो उपचुनाव से ही भाग खड़ी हुई और सपा को भी दो ही सीटों पर जीत मिल पाई ! काहे का गठबंधन धर्म ? नहीं कोई इसकी शर्म! लिहाज ! एक गीत की पंक्तियों से बात खत्म कर रहा हूं‌ :

यह तो मन मिले का सौदा है दोस्त
सात भ़्ंवरों से ब्याह नही होता !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रन्थ अकादमी। 9416047075

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!