1947 के विभाजन का दर्द – बुजुर्गों की जुबानी

गोपाल दास वधवा………शिवाजी नगर, गुरुग्राम

श्री मान जी मेरा जन्म विभाजन पूर्व होदी बस्ती जिला डेरा गाजी खान में हुआ था | विभाजन से पूर्व हमारा जीवन सादा था | हमारी बस्ती में लगभग 100 – 150 घर थे, जिसमें मुसलमान लोग अधिक थे | परन्तु सभी हिन्दू – मुस्लिम प्रेम सूत्र में बंधे हुए थे | हिन्दू अधिकतर जमींदार दूकानदार थे | मेरे पिता जी श्री लाल चन्द वधवा तथा श्री कँवर भान वधवा के पिता श्री चान्दनराम वधवा की एक साँझा दुकान थी | दुकान इतनी चलती थी कि श्री टांकन राम दुकान पर हाथ बंटाने के लिए लगाया हुआ था |

जमींदारी बस्ती से हटकर थी उसे वधु वाला कहकर बुलाते थे | वहाँ खजूर के पेड़ भी लगे हुए थे | पशु, गाय, भैंस, घोड़े, खच्चर उसी में बांधते थे | पशुओं की देखभाल मुस्लिम भाईयों के जिम्मे में थी | मैं दूसरी कक्षा में पढ़ता था | मस्जिद में पढ़ने जाते थे | मौलवी साहब उर्दू पढ़ाते थे | अचानक एक दिन सुबह मुजेरा करीम बक्श अपने भाईयों के साथ पिताजी के पास आया और उन्होंने बताया कि चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है, आपका नमक खाया है इसलिए आज आप को डेरा में पंहुचा का अपना फर्ज पूरा करूँगा | थोड़ी देर बाद खच्चरों पर बिठाकर वह नेक दिल इन्सान हमें डेरा पहुंचकर आंसू भरी आँखों के साथ लौट गया तब हमें पता चला कि देश का विभाजन हुआ है |

डेरा पहुँचते ही हमें बसों द्वारा मुजफ्फरगढ़ लाया गया | जहाँ रेलवे स्टेशन था | स्पेशल रेल गाड़ियां वहीं से हिंदुस्तान के लिए चल रही थी | हमारा नम्बर आपने पर हमें भी रेल द्वारा 2 दिन के बाद रोहतक उतार दिया गया | सरकार द्वारा वहाँ टेंट लगाये गये थे | कुछ दिनों बाद इन टेंटों में रहते हुए मेरी बहन भागो की चेचक के कारण मृत्यु हो गई | इसी कारण मेरे पिताजी अन्य भाई-बंधुओं के साथ गुड़गाँव आ गये |

यहाँ पर हम रेलवे रोड कैम्पों के टेंटों में आम के पेड़ों के नीचे रहे | यही पर टीले पर बने हुए प्राइमरी स्कूल में मुझे पहली कक्षा में मेरे फूफा श्री मेलू रा, में दाखिल करवाया | यहाँ हिंदी पढ़ाई जाने लगी | इस स्कूल में मास्टर ठाकुरदास, मास्टर होवनदास तथा मास्टर सिद्धूराम जी पढ़ाते थे |
सरकार द्वारा बनाई गई 40 वर्ग गज की कच्ची कोठी शमशानी कैंप (अर्जुन नगर) में कोठी नं. 77 पिता जी को अलाट हुई | यहाँ पर रहते हुए हमने अपने पुरुषार्थ के बल पर प्रभु-भक्ति का सहारा लेकर आगे बढ़ने लगे | परमेश्वर की अनुकम्पा से हमें सफलता मिली, जिसके लिए हम परमात्मा के अत्यंत आभारी है |

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