मनोहर लाल शास्त्री,…….गली नं. 7, मदनपुरी, गुड़गाँव

मैं मनोहर लाल शास्त्री अपने परिवार के साथ पाकिस्तान में दायरा दी पनाह तहसील तौंसा जिला डेरा गाजी खान में रहता था | मेरे पिताजी पंडित कँवर भान जी हकीम थे | उनके चाचा श्री पंडित मोटन लाल जी भी हकीम थे | इसके साथ कर्मकांड का काम भी करते थे | हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं थी कईं परिवार हमारे यजमान थे | पिताजी पंडिताई भी करते थे | यजमानों में चावला, चुटानी, बत्रा और सुनार थे |

1947 में जब अफरा-तफरी मची उस वक्त मैं 8 साल का था और तीसरी कक्षा में पढ़ता था हमें ख्वाजा साहब ने अपनी देखरेख में तौंसा शरीफ़ में रखा | हमारे पिताजी यह सोचकर कि हमें वापस अपने घरों में पहुंचा दिया जाएगा, हुआ उल्टा, हमने कुछ नहीं उठाया, सब कुछ वहीँ छोड़कर निकल आये | ख्वाजा साहब ने ट्रकों में बिठा कर मुजफ्फरगढ़ स्टेशन पर छुड़वा दिया | हम नदी के किनारे सर्दी में पड़े रहे | वहाँ बड़ा डर लगता | चारों तरफ से अल्लाह हू अकबर के नारे लगते | बड़ा भयानक और डरावना वातावरण था |

कुछ दिनों के बाद गाड़ी में बिठा दिया और हमें करनाल उतार दिया | वहाँ का माहौल अच्छा नहीं था | हमारे पीछे दो गाड़ियों में लगभग कटे हुए और मरे हुए लोग थे | गाड़ी में बचे हुए लोग भी चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे | हमें पास के गाँव जुन्डला में भेज दिया | वह नदी के किनारे पर था | वहाँ पर पिताजी और दादा जी कभी मजदूरी करके राशन ले आते थे | इसी से गुजारा किया और मेहनत मजदूरी से दिन काटे तथा 2 साल वहाँ रहे |

फिर हमें गुड़गाँव से गौशाला के सामने टेंटों में रहना पड़ा था | वहाँ मेहनत मजदूरी करके गुजारा करते रहे | फिर शमशान के पास 40 गज की कोठियों में रहे | वहाँ पिताजी व दादा जी हिकमत का काम करते और हमें पालते थे | अर्क, शरबत, माजून और त्रिफला बनाकर दवाई देते थे और हमें पालते थे |

मुझे पढ़ाने वाले श्री मदन मोहन शास्त्री जी ने अंग्रेजी लाइन से हटाकर संस्कृत लाइन में भिजवा दिया | परिश्रम करके मैंने सन 1958 में शास्त्री, सन 60-61 में एल. टी. सी. की ट्रेनिंग की और 1961 में सर्विस में लग गया | 13.07.1964 को रेगुलर हुआ | 35 वर्ष सर्विस की और अब रिटायर हूँ | 31 दिसम्बर 1996 को रिटायर हुआ | दुःख के बाद, सुख आता है | बड़े बूढ़े ऐसा कहते है | अब सुखी जीवन है | बच्चे अपने-अपने काम में लगे हुए है और बच्चों को पालन हो रहा है भगवान् की अनन्य कृपा है |

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