रेवाड़ी. 27 सितम्बर 2021 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही नेे आरोप लगाया कि लगभग दस माह से तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बार्डर पर सड़क पर खुले आमसान के नीचे बैठे किसान आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों द्वारा अपनी कुर्बानी देने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इन तीन काले कृषि कानूनों को वापिस लेना तो दूर की बात, इतनी किसान मौतों पर सहानुभूति के दो शब्द भी नही बोलना प्रमाण है कि मोदी-भाजपा-संघी सरकार मानसिक रूप से कितनी किसान विरोधी सरकार है। विद्रोही ने कहा कि विगत 10 माह में किसान दो बार भारत बंद कर चुके है, अनेक कुर्बानियां कर चुके है, देशभर में लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे है, फिर भी भाजपा सरकार किसानों से वार्ता करके समस्या का समाधान करने को तैयार नही। मोदी सरकार के कृषि मंत्री 6-7 माह से बंद पड़ी वार्ता को शुरू करने की बजाय अपने बयानों से किसानों के जख्मों पर नमक छिडकते रहते है। कृषि मंत्री का कहना कि किसान आंदोलन समाप्त करे और यदि उनकी कृषि कानूनों के प्रति कोई विरोध है तो अपना पक्ष रखे। विद्रोही ने कहा कि कृषि मंत्री के बयान की ध्वनि बताती है कि मोदी सरकार का मानना है कि कृषि कानूनों में कोई खामी नही है और विगत एक साल से देशभर में इन काले कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे भारी विरोध के बाद भी सरकार को अभी तक पता ही नही है कि किसान किस बात का विरोध कर रहे है। सरकार का यह रवैया व सोच ही प्रमाण है कि भाजपा-संघी सरकार अन्नदाता किसान के प्रति कितनी घृणित सोच रखती है व कितनी किसान विरोधी है। जब सरकार में बैठे संघी सत्ता अंहकार में किसानों की बात सुनने को तैयार ही नही, कृषि कानूनों की खामियों को मानने को तैयार नही तो किसानों के पास आंदोलन करने के अलावा और रास्ता ही क्या बचता है। सरकार का सत्ता अंहकार व चंद पूंजीपतियों का कृषि व्यापार पर कब्जा करवाने की चाल से किसान व सरकार में टकराव बढना तय है जिसके दूरगामी दुष्परिणाम भी निकलेंगे। विद्रोही ने हरियाणा व देश के लोगों से आग्रह किया कि अब समय आ गया है कि जब वे किसान, मजदूर, कमेरे वर्ग, आमजन विरोधी भाजपा-संघी सरकार को सत्ता से उखाडने के लिए सड़कों पर उतरे ताकि सत्ता दुरूपयोग से संघी सरकार देश को पूर्णतया बर्बाद न कर सके। Post navigation खरीफ फसल बाजरे की अधिकांश फसल कट चुकी, फिर मुआवजा देने की बात का औचित्य ही क्या है ? विद्रोही बागवानी फसलों में भावांतर के नाम पर किसानों को ठगा ही गया यही स्थिति बाजरा की होने वाली : विद्रोही