पूरण चन्द ग्रोवर गुडगाँव

डेरा गाजी खान में पांचवी तक पढाई की | स्कूल का नाम हिन्दू हाई स्कूल था | हमारे घर से थोड़ी दूर था | हमारे पिता जी जिनको हम लाला जी कहते थे, वह परचून की दुकान चलाते थे | हमारी दुकान में घी, दालें, मसाले आदि ज्यादा बिकते थे | देसी घी शुद्ध 1 रूपये सेर बिकता था | बहुत ही सस्ता था | धेले में मोठ-कचौरी, दाल वगैरह मिलती थी | सब तरफ शांति थी | घर के पास ही श्री गोपीनाथ जी का मंदिर थे | सवेरे 4:00 बजे मंदिर से लाउडस्पीकर पर आवाज आ जाती थी | घर से 2 मील दूर एक बड़ी नहर थी | हमारे लाला जी दोपहर को 2:00 बजे दुकान बंद करके उस नहर में नहाने चले जाते थे | वहीं बैठकर भोजन करते थे | हर वर्ष नहर पर शिव जी का विशेष पूजन होता था | सब कुछ शांति से चल रहा था | परन्तु किसी की नजर लगी | दंगे शुरू हो गये |

हर तरफ दहशत ही दहशत आने लगी | हम रातो को छत पर पहरा देते थे | घर में छुपे कर रहते थे | शोर मच जाता था दंगाई आ गये, दंगाई आ गये | फिर एक दिन मिल्ट्री वालों की बस आई हमें मुज़फ्फरगढ़ चलने के लिए कहा | लाला जी ने सारे रूपये और गहने एक डिब्बे में रखकर दीवार की मोरी बनाई हुई थी वहाँ छुपा दिए कहने लगे वापस आकर ले लेंगे | मुज़फ्फरगढ़ से हमें अटारी स्टेशन ले गये 2 दिन बाद अटारी से जालंधर कैंप में ले गये | कुछ दिन वहाँ रुकने के बाद हम रोहतक आ गये | 3 महीने रुकने के बाद हम गुड़गाँव (भीम नगर) एक कोठी में रहने लगे | यहाँ पर लाला जी ने सब्जी का काम शुरू किया था |

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