1947 के विभाजन का दर्द – बुजुर्गों की जुबानी

ईश्वर दास ग्रोवर – 32/8, मॉडल टाउन, गुडगाँव

मैं ईश्वरदास ग्रोवर मकान नं. 32/8 मरला, मॉडल टाउन, गुडगाँव अपनी याददाश्त के अनुसार बता रहा हूँ कि मेरी उम्र लगभग 12/13 साल होगी जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था | एक दिन सायंकाल जब हम व्यापार, फेरी करके घर वापस आ रहे थे तो रास्ते में हमें एक नदी पार करनी पड़ती थी | शिखानी बस्ती के पास नदी पर करके, हम बातल बस्ती डेरा गाजी खान के निवासी थे, जाना था परन्तु नदी पार करने के बाद हमें रोक लिया गया | वहाँ कई आदमी थे उनके पास हथियार थे और मैं अकेला था | मुझे धमकी धर्म परिवर्तन की दी गई और बोला जो हे वो दे दो।

मेरे बोलने पर कि मेरे पास कुछ भी नहीं है और आपको देखा है | जब मेरे दादा श्री होआ राम का नाम सुना तो वे भाग खड़े हुए क्योंकि वे उन्हें जानते थे |

बातल बस्ती में हमारा बहुत बड़ा घर था | कोठे अनाज से भरे रहते थे | अनाज का व्यापार करते थे | पिता जी चार भाई थे | तब रात को शोर मचा कि शिखाने में आग लग गई है और लूटपाट हो रही है, संभल जाओं, अब वक्त आ गया है, हमें घर छोड़ना पड़ेगा | बातल बस्ती के साथ साईं पीर की बस्ती, धूतपुर, कुल्ले वाली, गजाने जितनी भी बस्तियां थी वे घर-बार छोड़कर डर के मारे, सब हमारी बातल बस्ती की ओर आ रहे थे | मेरे चाचा जी हमें सब को यह कहकर डेरा गाजी खान चले गये, मिल्ट्री और बस लेने के लिए और फिर हम सब बसों में बैठकर डेरा गाजी खान पहुंचे और तब मार-काट शुरू हो गई और जो ट्रेन हिंदुस्तान से पाकिस्तान जा रही थी उसमें बैठ गये | कुछ का सामान उसमें लूट लिया गया | आगे ट्रेन रुकवा कर वापस आये और हिंदुस्तान जाने वाली ट्रेन में बैठ गये | हमारा सब कुछ गहने, पैसा, जमीन आदि खेत लूट लिए गये और अपनी इज्जत को बचाने के लिए हम अटारी – अमृतसर पहुंचे | अपनी सारी जमीन-जायदाद सब कुछ छोड़ कर हम हिंदुस्तान पहुंचे | यहाँ पर जैसे-तैसे मजदूरी करके पेट पाला | सुबह कमाते और शाम को खाते | उसके बाद रिश्तेदारों को ढूढ़ते हुए गुडगाँव पहुंचे | यहाँ पर 40 गज की कच्ची कोठी अलाट हुए | उसमें परिवार वालों ने सिर ढका | मेहनत – मजदूरी करके पेट पाला | आज भगवान की मौज है | हम ख़ुशहाल है |

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