-कमलेश भारतीय

पंजाब प्रदेश कांग्रेस व सरकार में ऐसा घमासान हुआ, ऐसा झंझावत आया कि कैप्टन को इस्तीफा देने का फैसला करना पड़ा । कैप्टन को इस बात का एतराज था कि वे सीएलपी लीडर होते हुए भी नहीं जानते कि विधायक दल की बैठक बुलाई गयी है । यह मेरा अपमान है और मैं बारबार अपमानित होने को तैयार नहीं । आपको मेरे काम काज पर संदेह है तो मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ने जा रहा हूं और इसके जवाब में कांग्रेस हाईकमान सोनिया गांधी ने कहा-साॅरी अमरेंद्र और इस तरह एक कद्दावर नेता की पारी खत्म हो गयी । यह माना जाता है कि नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में एंट्री ही कैप्टन को नीचा दिखाने के लिए की गयी थी । फिर सिद्धू को कैप्टन की मर्जी के विरूद्ध जाकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया गया । खतरे की घंटी तो उसी दिन बज गयी थी लेकिन कैप्टन ने अपनी कार्य शैली नहीं बदली और जल्द ही यह नौबत आ गयी कि इस्तीफा देना पड़ा ।

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन ने कहा कि वे हाईकमान द्वारा बार बार अपमानित किये जाने को सहने को तैयार नहीं थे । कम से कम तीन मौके ऐसे आए जब उन्होंने अपमानित महसूस किया । दूसरा उन्होंने सिद्धू के चलते इस्तीफा नहीं दिया बल्कि अपमान के चलते इस्तीफा दिया । तीसरी बात कि उनके विकल्प खुले हैं और अपने समर्थकों के साथ सलाह मशविरा के बाद कोई फैसला लूंगा । अभी कांग्रेस में हूं और कांग्रेसी हूं । कोई जल्दी नहीं पर संन्यास नहीं ले रहा राजनीति से । पूरे बावन वर्ष हो गये हैं राजनीति में ।

इसके बाद अनेक टीवी चैनलों पर बात करते कैप्टन सिद्धू पर आक्रामक हो गये और देश की सुरक्षा के लिए उनसे खतरा बताते हुए कहा कि यदि सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाया गया तो वे इसका विरोध करेंगे ।

इस सारे घटनाक्रम को नये पुराने नेताओं की टकराहट और कांग्रेस हाईकमान की एकतरफा कार्यवाही व अदूरदर्शितिपूर्ण फैसले के रूप में देखा जा सकता है । जहां तक कांग्रेस की बात है तो इसमें नये नेताओं की उपेक्षा की जा रही है । फिर चाहे मध्यप्रदेश हो या राजस्थान या फिर पंजाब और छत्तीसगढ़ । मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहला संकेत दिया । फिर सचिन पायलट ने ऐसा ही संकेत दिया और पंजाब से न केवल नवजोत सिद्धू बल्कि परगट सिंह ने भी उपेक्षित किये जाने के आरोप लगाये । इस तरह विधायकों ने कैप्टन की कार्यशैली की आलोचना करते हुए हाईकमान से विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने की मांग कर डाली और हाईकमान तो पहले से ही कैप्टन पर कुपित थी और एक रूखे जवाब में कैप्टन को साॅरी बोल दिया । इस तरह अब कांग्रेस का विवाद सुलझने की बजाय और उलझ गया और आने वाले दिन अच्छे नहीं होंगे क्योंकि राजनीति के पुराने खिलाड़ी कैप्टन भी कोई न कोई खेल दिखायेंगे जरूर और हाईकमान से अपने अपमान का बदला लेने की कोशिश करेंगे । यह सबका अनुमान है । किसी को एक दम से दूध मे से मक्खी की तरह नहीं निकाल सकती हाईकमान और फिर छह माह रह गये थे । मुख्यमंत्री पद पर रहने देते और अगली बार का चेहरा न बनाते । सम्मान पूर्वक विदाई तो देनी चाहिए थी न कि अपमानित कर निकलने या इस्तीफे के लिए मजबूर कर देना था । अब तो पंजाब में खेल बिगड़ गया और आप को अवसर मिल गया । कैप्टन किस ओर जायेंगे ? अभी पत्ते नहीं खोलेंगे लेकिन यह तो साफ है कि कांग्रेस के लिए कुछ अच्छा न करेंगे न सोचेंगे । बेशक उनकी तारीफ में हरीश रावत ने बैठक में कसीदे पढ़े लेकिन इसका क्या फायदा ? ये किसी काम न आयेंगे ।

इधर पश्चिमी बंगाल में भी खेला हो गया चाणक्य अमित शाह के साथ जब इसके लाडले सांसद बाबुल सुप्रियो ने भाजपा छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस को ज्वाइन कर लिया । हालांकि भाजपा छोड़ते समय कहा था कि मैं कोई और दल ज्वाइन नहीं करूंगा लेकिन कोई जुबान नहीं होती राजनेताओं की । पचास दिन से पहले ही पलट गये अपनी बात से और बोले कि मैं तो जनसेवा करने के लिए राजनीति में आया था और तृणमूल कांग्रेस में रह कर यह काम बेहतर कर सकूंगा । हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मनाने की कोशिश की थी पर जब से मंत्री पद छीना तब से दिल का चैन और करार खो गया था । यदि कुछ टाइमिंग बेहतर होती और कुछ समय पहले आते तो शायद राज्यसभा के लिए नामांकित कर दिये जाते पर कांग्रेस से सुष्मिता देव पहले आईं और पहले ही पा गयीं राज्यसभा टिकट । यही राजनीति है और यही विचारधारा । यही अवसरवादिता और वही कांग्रेस में नये पुराने की टकराहट । जिसके चलते सुष्मिता देव चली गयीं यह कह कर कि नयी पीढ़ी का कोई भविष्य नहीं कांग्रेस में । अब तो थरूर ने मांग कर दी कि कोई नया और स्थायी अध्यक्ष बनाओ कांग्रेस का ।
सुन रही हो हाईकमान,,
,युवाओं को सौंप दो कमान,
खुद भी करो आराम ,,,,

-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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