1947 के विभाजन का दर्द – बुजुर्गों की जुबानी

द्वारका दास कथूरिया

15 अगस्त, 1947 के बाद डेरा गाजी खान में एक वर्ग हिन्दुओं के मकान-दुकान जलाने लगे, रात को हिन्दुओं पर हमला करते, हिन्दू भी संगठित हो कर हाथ में डंडे, भले, तलवार लेकर पहरा देते हुए मूँह-तोड़ जवाब देते | इधर गाँवों में घायल लोगों से सिविल अस्पताल भरी हुई थी, लोग तड़प-2 कर मर रहे थे |

श्री गोपीनाथ जी पर मेरे हिन्दुओं का पूरा भरोसा था | श्री गोपीनाथ जी ने एस. एच. ओ. सदर थाना को सपने में कहाँ यदि एक भी हिन्दू का क़त्ल हुआ तो तेरे परिवार कुटुंब का सर्वनाश कर दूंगा | वह दूसरे दिन लड्डुओं का थाल भर कर श्री गोपीनाथ जी के मंदिर पहुंचा और गोस्वामी जी को आश्वासन दिया और पुरे शहर में हाथ में बंदूक लेकर हिन्दुओं की रक्षा की कोशिश की | गोरखा मिल्ट्री न भी पूरा शहर संभाला हुआ था | पहले गाँव से मिल्ट्री हिन्दुओं को लार्ड स्कूल, धर्मशाला व हिन्दुओं के घरों में, हिन्दू संगठनों ने उनका भोजन आदि व ठहरने का प्रबंध किया | मिल्ट्री ने पहले गाँव के लोगों को मिल्ट्री ट्रकों में भरकर मुज्जफरगढ़ ले गये वहाँ से ट्रेन में आगे भेजा |

मेरी आयु 15 वर्ष थी | अब हिन्दुओं पर झूठे मुक़द्दमे कर तुरंत गिरफ़्तारी का वारंट निकाले गये मेरे पिताजी व बड़े भाई के गिरफ़्तारी के वारंट निकाले | वह दिवाली 1947 से 3 दिन पहले गाँव वाले मिल्ट्री ट्रक में भेष बदल कर छुप कर निकल गये | मेरे चाचा जी ने एक मिनी बस किराये पर की हम दो-दो कपड़े लेकर निकले और मिल्ट्री ट्रकों के पीछे-पीछे चले, रास्ते मे ड्राईवर ने बस का इंजन खराब है कह कर बस रोक दी | कुछ लोग तलवारें हाथ में लिए सड़क के पार खड़े थे | श्री गोपीनाथ जी ने हमारी पुकार सुन ली दो – तीन घंटे बाद एक मिल्ट्री जीप गणित कर रही थी आई | वह बस को देर रात तक मुजफ्फरगढ़ तक पहुंचा गई | 3 दिन बाद हमें पिता जी व बड़े भाई मुजफ्फरगढ़ मिले, मुजफ्फरगढ़ से हम अटारी के लिए ट्रेन से हम चले लाहौर स्टेशन पर 2 दिन हमारी ट्रेन रोकी | तब हमारी ट्रेन पूरे मिल्ट्री जवानों की निगरानी में अटारी पहुंची | यहाँ 2 दिन कैंप में रहकर हमें ट्रक से कुरुक्षेत्र भेजा | यहाँ हम 10-12 दिन के बाद गुड़गाँव ट्रक से रेलवे कैंप के टेंटों में रहे |

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