क्या हरियाणा में हो सकते हैं मध्यवर्ती चुनाव?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। जेल से छूटने के पश्चात ओमप्रकाश चौटाला कई बार कह चुके हैं कि हरियाणा में मध्यवर्ती चुनाव होंगे। यह तो रही उनकी बात लेकिन पुराना अनुभव जो भाजपा सरकार के साथ है, वह यही है कि जब ये गठबंधन में सरकार बनाते हैं तो मध्यवर्ती चुनाव हो ही जाते हैं।

आइए डालते हैं परिस्थितियों पर नजर। भाजपा और जजपा गठबंधन की सरकार है। उपमुख्यमंत्री के पास अनेक महत्वपूर्ण विभाग हैं और उनकी कार्यशैली ऐसी लगती है जैसे वह चुनाव से पूर्व घोषणाएं कर रहे हों।

दूसरी ओर उनके संगठन की कार्यशैली देखें। पार्टी बने अभी लगभग तीन वर्ष हुए हैं। चुनाव लड़ते समय इन्होंने अपने पार्टी के सभी पदाधिकारी बना ही लिए होंगे तभी तो चुनावों में अप्रत्याशित रूप से दस सीटों पर विजयी हुए। अब कोई पदाधिकारी हटाया तो है नहीं लेकिन प्रतिदिन पार्टी विस्तार के नाम पर अनेक पद बांटें जा रहे हैं। राजनैतिक चर्चाकारों का कहना है कि पार्टी का जनाधार तो घट रहा है। लोग जो राजनीति में आते हैं, उनकी लालसा होती है कि पद मिले और इसी मानसिकता का लाभ उठा ये रोज नए-नए मोर्चों का गठन कर पदों बांट रहे हैं, जिसके कारण इनका नाम हरियाणा में जिंदा रहे सके। अभी इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने जब घोषणा की कि हम 22 जिलों में सभा करेंगे तो उसके जवाब में जजपा की ओर से अजय चौटाला ने भी घोषणा कर दी कि हम भी 22 जिलों में सभा करेंगे।

अब ताऊ देवीलाल के नाम को भुनाने के लिए उसके उपलक्ष्य में अपने पदाधिकारियों से नए मैम्बर बनाने की अपील कर रहे हैं। यह सब चुनावी तैयारी का हिस्सा ही दिखाई देता है।अब गठबंधन के बड़े दल भाजपा की बात करते हैं तो भाजपा में भी संगठन और सरकार का तालमेल चल रहा है। मुख्यमंत्री रोज इसी प्रकार की घोषणाएं कर रहे हैं, जैसे चुनाव पूर्व की जाती हैं। एक ही बात को बार-बार प्रस्तुत कर लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिशें की जा रही हैं। वैसे भाजपा पर मुसीबतें भी कई दिखाई दे रही हैं।

सर्वप्रथम तो किसान आंदोलन ही लो। किसान आंदोलन भाजपा के लिए बहुत कठिन साबित हो रहा है। ऐसा कभी इतिहास में हुआ हो, मुझे याद नहीं आता कि मंत्री अपने ही क्षेत्र में सभा न कर सकें। 

प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ जो पहले कृषि मंत्री भी रह चुके हैं, वह किसान आंदोलन आरंभ होने से ही किसानों को जाकर समझाने का प्रयास करते रहे लेकिन कामयाबी हासिल नहीं हुई। जिस प्रकार की भाषा अब मंत्री बोलने लगे हैं, वह भी समझ से बाहर है। उनका कहना है कि आंदोलनकारी किसान नहीं हैं, ये शरारती तत्व हैं। बड़ा सवाल कि यदि वह किसान नहीं हैं तो सरकार क्यों नहीं नौ माह के लंबे समय में शरारती तत्वों को नियंत्रित कर पाई और यदि वे किसान हैं तो उन्हें किसान मानने से इंकार क्यों कर रहे हैं?

इसी प्रकार इस समय हरियाणा में अफसरशाही के बेलगाम होने की चर्चाएं भी खूब चल रही हैं। भाजपा के अपने विधायक प्रेस में और विधानसभा में यह बात उठा चुके हैं लेकिन उस पर कभी मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री या गृहमंत्री का कोई ब्यान आया नहीं है।

अब भाजपा संगठन की बात करें तो बनने के बाद से ही अनेक जिलों में कार्यकर्ताओं में असंतोष है लेकिन भाजपा में असंतोष मुखर करने की इजाजत है नहीं। फिर भी भिवानी में भाजपा कार्यालय के सामने असंतुष्टों ने नारे लगाए। हमारे गुरुग्राम में कुलभूषण भारद्वाज व अन्य भी अफसरशाही व भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठा रहे हैं। जींद के विधायक कृष्ण मिड्ढा ने यहां तक कह दिया कि उग्रवादियों से भी बदतर हैं जींद के अफसर। तात्पर्य यह कि अब भाजपा सरकार और संगठन दोनों से भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाजें मुखर होने लगी हैं। इन्हें संभालना भी सरकार के लिए टेढ़ी खीर ही साबित होगा।

कल चार व्यक्तियों को भाजपा से छह वर्ष के लिए निष्कासित किया लेकिन समाचार यह मिल रहे हैं कि उन चारों को अपने निष्कासन से सरकार या संगठन से माफी मांगने की नहीं सूझ रही, बल्कि उनकी तरफ से यही कहा जा रहा है कि हम तो अपनी सरकार के भले के लिए सरकार की कमियां बता रहे थे, जिससे आम जनता त्रस्त है। हमारा काम प्रदेश और आम जनता के हित के लिए काम करना है और वह करते रहेंगे। 

मजेदारी यह है कि उनके साथ भाजपा के अनेक लोग सोशल मीडिया पर समर्थन में आते दिख रहे हैं। आम जनता की स्थिति यह है कि उन्हें सरकार की बातों पर विश्वास नहीं होता। यहां तक कि मुख्यमंत्री के ब्यान पर भी लोग विश्वास नहीं करते।  

कहते हैं कि अरे घोषणाएं करना इनका काम है, जमीनी स्तर पर तो पता नहीं इनकी घोषणाएं कब उतरेंगी। कांग्रेस अपनी आदत के अनुसार वक्त का इंतजार कर रही है कि यह सरकार अपने बोझ से गिर जाएगी और सरकार के नकारात्मक वोट हमें मिल जाएंगे। अब बड़ा सवाल यही है कि अनुभवी ओमप्रकाश चौटाला की बात सत्य होगी या नहीं ?

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