करनाल के बसताड़ा टोल पर अधिकारियों द्वारा कातिलाना हमला किया गया किसानों पर जिसके मुख्य कर्ता-धर्ता एसडीएम सिंहा रहे खबरों के हिसाब से मगर पर्दे के पीछे का शयबाज कोन है इसे छिपाया जा रहा है जब्कि सर्वविदित है कि एक अदने से अधिकारी की इतनी हिम्मत नहीं हो सकती है कि बगैर सरकार की अनुमति के प्राणघातक हमला करे किसानों पर यदि एसडीएम ही जिम्मेवार होता तो यकीनन उसपर एक्शन ले लिया गया होता परन्तु यहाँ तो शाशन-प्रशासन दोनों ही मिलकर प्रदर्शनकारियों को गलत और एसडीएम सिंहा को सही ठहराने में लगे हैं जिससे साफ हो जाता है कि खट्टर साहब की योजना से ही पीटे गए हैं किसान क्योंकि करनाल में जो पार्टी मीटिंग बुलाई गई थी और उसकी जो वजह बताई जा रही है वो वजह ही फर्जी है !

सुनियोजित तरीके से मीटिंग की कोल दी गई मालूम होने उपरांत भी कि किसान प्रदर्शकारी विरोध करने जरूर पहुंचेंगे , उन्हें कहाँ रोकना है कहाँ ठोकना है कि पूर्व योजना बनाकर पूरे करनाल शहर को छावनी में तब्दील कर दिया गया स्थानीय लोगों की आवाजाही और जरूरत के कार्यों को भी दरकिनार करते हुए !

अतिरिक्त शक्तियां देकर अधिकारियों को नियुक्त किया गया पांच से सात जिलों की पुलिस फोर्स तैनात की गई और जैसे कि तय था पुलिस द्वारा जमकर लाठियां भांजी गई एक बार नहीं कई बार दुश्मनी सी निकाली गई , बेरिकेड्स नहीं पानी की बौछार नहीं कोई पैरों पर भी नहीं सीधे सर फोड़ने के आदेश ? ताज्जुब की बात है यह तो शुक्र मनाना चाहिए कि उस एसडीएम के हाथों में मशीनगन नहीं थी वरना बहुत बड़ा नरसंघार हो सकता था दूसरा जलियावाला बाग बना सकता था प्रशाशन करनाल खट्टर साहब की रहनुमाई पाने के लिए अपने स्टार बढ़वाने के लिए ।।

मीटिंग के एजेंडे पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष , जिलाध्यक्षों , संगठनमंत्रियों और प्रभारियों को बुलाया गया था पंचायतों चुनावों पर चर्चा करने के लिए जब्कि इनके ही पंचायतराजमंत्री के ब्यानानुसार अदालती आदेशों की ही पालना की जाएगी अर्थात माननीय अदालत के फैंसले उपरांत ही चुनाव सम्पन्न कराए जाएंगे अब चूंकि मामले की सुनवाई ही 26 सितंबर को होनी है और अदालत कह चुकी है कि पहले वाली नीतियों से चुनाव कराने हैं तो करा सकते हैं मगर अपनी शर्तों पर चुनाव कराना चाहती है सरकार तो निर्णय सभी दलीलों को सुनने के बाद ही लिया जाएगा और इस प्रक्रिया में समय लगेगा !

अब सवाल यह उठता है कि जो निर्णय आया ही नहीं तो उसपर भाजपा का मंथन चर्चा अभी ही क्यों हुई ? करनाल में ही क्यों की गई चंडीगढ़ और शांत समझे जाने वाले गुरुग्राम में भी की जा सकती थी ?

मगर ऐसा नहीं किया गया क्योंकि शायद भाजपा सरकार फसाद कराना चाहती थी यह सोचकर कि पांच सितंबर को यूपी में होने वाली किसान महापंचायत में जुटने वाली भीड़ कहीं योगी आदित्यनाथ जी का खेल ना बिगाड़ दे इसलिए हरियाणा में ही किसानों को उलझाए रखना चाहती थी ।

तरविंदर सैनी (माईकल ) किसान हितैषी गुरुग्राम का मानना है कि हरियाणा की जनता सब देख रही है उसे अच्छे से ज्ञात हो गया है कि यह किसका करा-धरा है यानी खट्टर सरकार की घटिया संकीर्ण मानसिकता वाली सोच का पर्दाफाश हो चुका है इसलिए अधिक भोली बनकर ना दिखाए खट्टर सरकार अपने दिन पूरे कर लें बैसाखी के सहारे जो बचे ही हैं दो चार ।।

error: Content is protected !!