जलकुंड बनाकर अप्रतिम उदाहरण दिया बुजुर्ग दंपत्ति ने

जीव-जंतुओं की सेवा के लिए पहाड़ी पर बनाए तीन कुंड

चरखी दादरी जयवीर फोगाट 

29 जुलाई,जिला के गांव कादमा वासी 87 वर्षीय बुजुर्ग भगवान सिंह और 80 वर्षीय उनकी धर्मपत्नी फूला देवी ने यह साबित कर दिया है कि देखने में वे भले ही बूढ़े लगते हों, लेकिन उनका जोश युवाओं से कम नहीं है। इन दोनों ने मिलकर गांव की पंद्रह सौ मीटर ऊंची साहीवाली पहाड़ी पर तीन जलकुंड बना दिए हैं। दादरी व आसपास के क्षेत्र में जलसंरक्षण का इससे बेहतर उदाहरण मिलना मुश्किल है।

करीब दो सौ साल पहले ठाकुर कदम सिंह द्वारा बसाए गांव कादमा में भगवान ङ्क्षसह और उनकी  पत्नी खेती-बाड़ी कर अपने परिवार की गुजर-बसर कर रहे थे। खेत में काम करने के लिए औलाद बड़ी हो गई तो भगवान सिंह का ध्यान उस इलाके की ओर गया, जहां कभी वे अपने पशुओं को चराने के लिए ले जाते थे। वो जगह है गांव के समीप बसी साहीवाली  पहाड़ी। यहां घास-फूस और चारे की कमी तो नहीं है, लेकिन जीव-जंतुओं को पानी बामुश्किल ही कहीं मिल पाता है। किसान भगवान ङ्क्षसह के मन में इस बात को लेकर टीस थी कि इतने बड़े हरे-भरे इलाके में पशुओं के पानी पीने के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं है। करीब छ: साल पहले उन्होंने अपनी पत्नी फूला देवी को साथ लिया और जा पहुंचे साहीवाली पहाड़ी की चोटी पर। कुंड बनाने के लिए भगवान सिंह को यह स्थान उचित लगा। यहां कभी एक सौ पचास साल साल पहले संत मंगलदास जी ने तपस्या की थी और उनका धूणा आज भी यहां मौजूद है। संत मंगलदास की समाध और मुख्य मंदिर कादमा से दो किलोमीटर दूर गांव कान्हड़ा में बना हुआ है।

एक बार जो बात मन में आई, उसे पूरा करना हर एक के बस की बात नहीं। आमतौर पर इंसान कुछ ना कुछ बहाना खोजकर संकल्प को टाल देता है। लेकिन मजबूत इरादे हारते नहीं है। भगवान ङ्क्षसह रोजाना अपनी पत्नी के साथ पहाड़ी पर जाता। हाथ में उनके ईंट, सीमेंट, कस्सी, तसले भी होते। वजन के साथ वे धूणे पर पहुंचते और लग जाते अपने काम में। संत मंगलदास जी के आर्शीवाद से उनकी मेहनत धीरे-धीरे रंग लाने लगी। गांव कादमा युवा  क्लब के सदस्यों ने भी इस बुजुर्ग दंपत्ति को पहाड़ी पर काम करते देखा तो वे भी इसमें सहयोग करने लगे। भगवान सिंह और फूला देवी ने कादमा पहाड़ी में तीन कुंड बना दिए हैं। इन कुंडों में बरसात का पानी इकट्ठा हो जाता है, जो आसपास रहने वाले गीदड़, हिरण, गाय, भेड़-बकरी, लोमड़ी, नीलगाय आदि की प्यास  बुझा रहा है। आज भी भगवान सिंह व उनकी पत्नी सुबह से शाम तक इसी धूणे पर सेवा में लगे रहते हैं। उन्होंने अपनी एक छोटी सी झोपड़ी भी तैयार कर ली है।

कादमा निवासी कमल सिंह, रामफल, सतबीर शर्मा, महेश फौजी ने बताया कि बुजुर्ग दंपत्ति का लोहा गांव के युवा भी मानते हैं, जो अपने अथक परिश्रम से जलसेवा का श्रेष्ठï उदाहरण प्रस्तुत  कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि संत मंगलदास जी की तपोस्थली पर पुरूषोत्तम गोयल ने अपने ज्येष्ठ भ्राता चंद्रसिंह चेयरमैन की याद में एक शेड का निर्माण करवाया है। पहाड़ी की तलहटी में सेठ रामप्रताप की बनवाई हुई गौशाला है। साहीवाली पहाड़़ी पर भगवान महादेव की भी एक सुंदर प्रतिमा बनाई जा रही है, जिसे कादमा का ही एक युवक नसीब खान पूरे मनोयोग से बना रहा है।

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