सबसे बड़ा पर्व, त्योहार वही है, जिसमें परमात्मा और सतगुरु की महिमा गाई जाती हो : सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज
गुरु का दर्जा ही सबसे बड़ा दर्जा है।
सेवा का भक्ति में विशेष स्थान है।
सेवा भाव प्रेम और प्रीत जगाता है।

दिनोद धाम जयवीर फौगाट

24 जुलाई,सबसे बड़ा पर्व या त्योहार वो है जिसमें परमात्मा की और सतगुरु की महिमा गाई जाती हो। गुरु पूर्णिमा का इसीलिए महत्व है कि इसमें पूर्ण सतगुरु के चरणों में पूर्णता की अरदास की जाती है। गुरु की महिमा सब शास्त्रों, धर्मग्रन्थो, वलियों, महात्माओ ने गाई है। हमारे हिंदुस्तान में तो कोई भी कार्य करने से पहले गुरु के चरणों में बन्दगी करने की परंपरा है। 

यह सत्संग बानी परम सन्त सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर दिनोद से आयोजित वर्चुअल सत्संग में प्रकट की। कोरोना नियमो के चलते लाखो की संख्या में जुटने वाली संगत गिनती भर की बेशक रही हो लेकिन उच्च कोटि के अध्यात्म को ऑनलाइन माध्यम से घर घर बैठे सुन रहे लाखो सत्संगियों को वचन फरमाते हुए हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि गुरु अनेको हैं लेकिन सतगुरु केवल एक है। माता पिता जिन्होंने हमें जन्म दिया निसन्देह हमारे प्रथम गुरु हैं। उनका दर्जा सबसे ऊंचा है लेकिन इससे भी बड़ा यदि कोई दर्जा है तो वो सतगुरु का है क्योंकि सतगुरु ही इन इंसानी यौनि में हमसे भक्ति करवा कर हमें इस चौरासी से छुटकारा दिलवाता है। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि जैसे किसी भी चीज के मिस्त्री से जब वो चीज ठीक नहीं होती तो वो अपने उस्ताद को पुकारता है वैसे ही जब आपके जीवन में जब कोई चीज बिगड़ जाए तो इस जग के सबसे बड़े उस्ताद सतगुरु को याद करलो क्योंकि यही विधान है कि सतगुरु ही आपको अच्छे बुरे का भान करवा कर आपको मन्त्र प्रदान करके आपको परमात्मा की भक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि दूसरी यौनियो में ज्ञान बुद्धि विवेक विचार इतना नहीं है कि वे अपने कल्याण का मार्ग खोज सकें। ये अवसर तो परमात्मा ने केवल इंसानों को दिया है। अगर इस यौनि में भी हमने सतगुरु नहीं चीन्हा तो हमारा जन्म व्यर्थ है। गुरु के बिना माला फेरना भी व्यर्थ है और दान देना भी। सतगुरु आपके मन पर लगाम लगाता है क्योंकि जब तक मन को इससे शक्तिशाली के अधीन नहीं कर देते तब तक ये काबू में नहीं आता। तन, मन, धन का पूर्ण समर्पण सतगुरु को कर दो फिर देखो इसका परिणाम कितना सुखद निकलता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि यदि हम गुरु के होकर भी गुरु से छल, धोखा, चालाकी करते हैं, गुरु से मन की बात छिपाते हैं तो आप गुरु को नहीं अपने आप ही ठग रहे हो। कहने को तो हम गीत गाते हैं कि गुरु वैद अगम के, गुरु को त्रिकाल दर्शी बताते हैं लेकिन हाजिर नाजिर गुरु के आगे ही झूठ बोलते हैं और ठगी करते हैं। आप क्या समझते हो कि गुरु कुछ जानता नहीं है, गुरु भोला है। हाँ गुरु भोला है क्योंकि वो आपके झूठ पर पर्दा डालता है। उन्होंने कहा कि सन्तो का हृदय तो मखन से भी मुलायम है। गुरु तो खुद के साथ बुरा करने वाले का भी बुरा नहीं चाहता। हुजूर महाराज जी ने गुरु के चार प्रकार बताते हुए कहा कि पहला प्रकार है पारस गुरु का। जैसे पारस पत्थर खोटे लोहे को सोना तो बना देता है लेकिन उस लोहे को पारस नहीं बना सकता वैसे ही इस तरह के गुरु खोटे लोगो को सही राह चला देते हैं लेकिन उन्हें अपने जैसा नहीं बना पाते। 

उन्होंने कहा कि दूसरे दीपक गुरु होते हैं जिसे कबीर गुरु भी कहते है। जिस प्रकार एक दीपक हजारो बुझे हुए दियो को भी अपने ही भांति प्रकाशित कर देता है वैसे ही ऐसे गुरु भी हजारो लाखो को अध्यात्म ज्ञान से प्रकाशित कर देते हैं। तीसरा है मलय गुरु। जैसे चंदन के पेड़ अपनी संगत में आने वाले हर वस्तु में अपनी खुशबू भर देते हैं वैसे ही इस तरह के गुरु अपनी संगत में आने वाले हर जीव के जीवन को सतनाम की खुशबू से महका देते है। अंत मे चौथे प्रकार के गुरु का ज्ञान देते हुए हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि चौथे प्रकार के भृंग गुरू होते हैं। जैसे भृंग नाम का कीड़ा दूसरे जीव को अपना डंक मारकर उसे मार देता है और फिर उसे अपना नाद सुना कर उस मरे हुए कीट को भृंग कीट में ही बदल कर उसे जिंदा कर देता है वैसे इस प्रकार के गुरु जीव को अपना नाद सुना उसे अपना ही रूप बना लेते हैं।हुजूर महाराज जी ने कहा कि जिसको देखोगे वैसे ही गुण आपके अंदर आ जाएंगे।जैसे जल को देखने से आपमें शुचिता और महात्मा को देखने से ज्ञान उपजता है वैसे ही परमात्म रूप सतगुरु की संगत से आपमें परमात्मा का ही स्वरूप जागृत हो जाएगा।अगर पाप को मिटाने के लिए प्रकाश, अधर्म के नाश के लिए धर्म की आवश्यकता है तो इस काल माया के जाल को काटने के लिए सतगुरु की आवश्यकता है। 

उन्होंने कहा कि पात्र और कुपात्र में बहुत बड़ा अंतर है। सतगुरु की मौज मेहर पाने के लिए आपको पात्र बनना पड़ेगा। जैसे बादल तो हर खेत में एक जैसा ही बरसता है लेकिन एक खेत में अन्न ज्यादा उपजता है तो दूसरे में कम। ये कमी बादल की नहीं है। कमी है तो हाली की है। गुरु शिष्य का प्रेम तो ऐसा होना चाहिए कि एक पल भी गुरु दिखाई ना दे तो आपकी तड़प सारी सीमाएं तोड़ दें। अगर आपके दिल में साँच है तो दुनिया की कोई ताकत आपको आपके उद्देश्य से नहीं भटका सकती। हुजूर महाराज जी ने कहा कि इस दुनियादारी में रहते हुए भी इसमें मत फँसो। गुरु को अपना सर्वस्व मानो। गुरु नाम ज्ञान का है। ज्ञान शास्वत है। जिसको ज्ञान हो गया वो कैसे भटक सकता है। सतगुरु इसी ज्ञान का नाम है। उन्होंने कहा कि इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है अगर कोई आपका है तो केवल सतगुरु है। सतगुरु के दर्शन मात्र से आपका कल्याण हो जाएगा। गुरु का बोला वचन ही मन्त्र है गुरु का स्वरूप ही ध्यान है और गुरु के चरण ही तीर्थ हैं। जो इन तीन बातो को मान लेता है वो सब बन्धनों से मुक्त हो जाता है। लेकिन ये भेद बाते करने से नहीं मिलेगा ना ही बुद्धि लगाने से मिलेगा। ना इसमें उम्र की बाधा है ना जाति की। ये भेद तो करनी करने से मिलेगा। जो करेगा वही पायेगा। जैसे किसी नौकरी के लिए योग्यताएं निश्चित हैं वैसे ही सतगुरु की मौज के लिए भी आपको अपनी योग्यताएं बढ़ानी पड़ेगी। हृदय शुद्ध करके पात्र बनो क्योंकि पात्र यदि सही होगा तो ही वस्तु आपके अंदर समाएगी। हुजूर महाराज जी ने कहा गुरु पूर्णिमा पर हर कोई अपने अंदर की एक बुराई को त्यागने का संकल्प ले कर जाओ।

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