दिनोद धाम जयवीर फौगाट

20 जुलाई – सत्संग देखने और सुनने का नहीं होता सत्संग तो करना होता है। सत्संग करने का अर्थ है सतगुरु के वचन को अपने जीवन में उतार लेना। जो सतगुरु के वचन को जीवन में उतार लेता है वो नाम की भक्ति में लग जाता है। नाम भक्ति परमात्मा के स्वरूप को आत्मा में बसा लेना है।                             

यह सत्संग विचार परमसन्त हुजूर कँवर साहेब जी महाराज ने सत्संग प्रेमियों को ऑनलाइन सत्संग के दौरान प्रकट किए। गुरु महाराज 24 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर दिनोद में होने जा रहे सत्संग और भंडारे हेतु आवश्यक दिशा निर्देश दे रहे थे। गुरु महाराज जी ने कहा कि कोरोना महामारी के सम्बन्ध में जारी नियमो के अनुरूप सत्संग ऑनलाइन ही दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सत्संग चाहे किसी भी रूप में हो वो जीव के लिए कल्याणकारी ही है। महाराज कँवर साहेब जी ने फरमाया कि हमारी रूह परमात्मा की ही अंश है लेकिन इस सांसारिक आपाधापी में हम आत्म साक्षात्कार ही भूल गए हैं। आत्म साक्षात्कार सत्संग से ही हो सकता है और सत्संग सतगुरु का ही होता है। सरल भाषा में जँहा परमात्मा के सतनाम का प्रचार प्रसार और गुणगान होता है वही सत्संग होता है। सतनाम ही सब जीवो के लिए सत्य शक्ति है। इंसानी चोला इसलिये अमोला बताया गया है क्योंकि यही वो चोला है जिसमें हम सतगुरु का सत्संग कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मोह माया गलत नहीं है यदि वो सकारात्मक हो तो। जैसे हमारा मित्र यदि हमें सदमार्गी बनाने में सहायक है तो वह हमारा हितकारी है और यदि वही मित्र हमें कुमार्गी बनाता है तो वही हमारे लिए घातक है। माया का भी यही खेल है। जिसे नाम रूपी अनूप भेद मिल जाता है वह इस माया को सत्कार्य में लगाता है।                                       

कबीर साहेब का प्रसंग सुनाते हुए गुरु महाराज जी ने कहा कि सन्तमत सबसे ऊंचा है क्योंकि ये घर में रह कर भी आपको त्यागी तपस्वी बनना सिखाते है। गुरु महाराज जी ने कहा कि मूल को पकड़ लो सब कुछ आपके वश में हो जाएगा। आज हम मूल को छोड़ कर छोटे मोटे अंशो में उलझे रहते हैं। गुरु महाराज जी ने कहा कि आनन्द ना बड़े घरानों में है ना बंगला कोठी कारो में है। ना ये सोना चांदी महल खजानों में हैं ना रूप और बल में। आनन्द अगर कहीं है तो सतगुरु के दरबार में है। जिसको संतोष धन मिल जाता है उसके लिए बाकी धन धूल के समान हो जाता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि आत्म विचार ही शांति की कुंजी है। आत्म विचार कर्महीन व्यक्ति नहीं कर सकते हैं। जीवन रूपी मान सरोवर में मोती भी हैं और दूसरे पदार्थ भी हैं। हंस और बगुले का रंग एक जैसा है लेकिन हंस मोती ही चुगता है और बगुला मछली को ही मारता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि बाजी खेलो तो परमात्मा के साथ खेलो यदि हारे तो भी हम जीते और जीते तो भी हम ही जीते। उन्होंने कोरोना काल में सभी को अतिरिक्त सावधानी बरतने की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि इस बहाने हमें जो समय मिला है हम उसका सदुपयोग करते हुए उसे परमात्मा की भक्ति में लगाएं।

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