भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम के विकास के साथ-साथ गुरुग्राम में अवैध कॉलोनियां, अवैध निर्माण आदि का सिलसिला भी विकास की राह पर चलना आरंभ हो गया और यह माना जा सकता है कि जितने भी अनैतिक काम होते हैं जनता को स्पष्ट नजर आते हैं, वह सरकार के आशीर्वाद से होते हैं और इसी क्रम में गत 9 जून को पूर्व विधायक उमेश अग्रवाल की निर्माणाधीन कॉलोनी को गिराने का मामला चर्चा में आया। उससे मेरे ही नहीं बल्कि गुरुग्राम जनता के दिमाग में अनेक प्रश्न आकर खड़े हुए।

उस प्रकरण में जमीन, कॉलोनी के मालिक ने हाई कोर्ट के आदेश दिखाए कि एक पीआइएल डली थी, जिसमें आदेश हुए थे कि आगामी 30 जून तक किसी भी कीमत पर कोई डेमोलेशन या तोडफ़ोड़ का कार्य नहीं होना चाहिए और साथ ही पूर्व विधायक के अनुसार उन्होंने उनकी उस जमीन के स्टे के कागज भी दिखाए और उसके पश्चात भी डीटीपी ने उनके नकारते हुए वहां की सड़कें और कार्यालय धराशाही कर दिए। हमारे देश में प्रजातंत्र है, प्रजातंत्र के चार स्तम्भ माने गए हैं— न्यायपालिका, विधानपालिका, कार्यपालिका और प्रेस और इनमें न्यायपालिका को सर्वोच्च माना गया है और जब न्यायपालिका के आदेशों का अनुपालन नहीं होता तो संविधान पर प्रश्न चिन्ह तो उठेंगे ही न?

अब आगे चलते हैं। डीटीपी आरएस बाठ का नाम इस समय चर्चा में आया हुआ है लेकिन क्या डीटीपी आरएस बाठ इतने शक्तिशाली हो सकते हैं कि अपना कार्य स्वच्छंदता से कर सकें? शायद आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे। हमारे संविधान में कोई भी निरंकुश नहीं है, सभी के ऊपर कोई न कोई अवश्य है।

इस मामले में देखा जाए तो डीटीपी आरएस बाठ के साथ पुलिस बल भी था और जहां तक मेरी जानकारी है कि उपायुक्त महोदय के पास आवेदन कर और उपायुक्त के आदेश से पुलिस बल की प्राप्ति होती है और ड्यूटी मजिस्ट्रेट भी होता है। अब प्रश्न यह है कि क्या उपायुक्त को भी यह नहीं पता था कि आगामी 30 जून तक हाई कोर्ट के आदेश से डेमोलेशन बंद है और उन्हें यह भी नहीं ज्ञात था कि जिस स्थान पर वह अपना कार्य अंजाम देने जा रहे हैं, उस स्थान पर स्टे लिया हुआ है? या एक संभावना और है कि उपायुक्त के पास पूरे जिले के हर क्षेत्र की जिम्मेदारी होती है और उपायुक्त की मजबूरी कह सकते हैं कि वह अपने माततों और सहयोगियों पर विश्वास करना पड़ता है तो बड़ा प्रश्न यह निकलकर आया कि इस मामले की पूर्ण जानकारी उपायुक्त को दी गई थी या उन्हें भ्रम में रखकर यह मुहिम अंजाम दी गई।

 हमारे कहने का यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं है कि अवैध कॉलोनियां निर्मित होनी चाहिएं या अवैध निर्माण होने चाहिएं या फिर ग्रीन बैल्ट पर कब्जे होने चाहिएं। शहर के विकास में इनका होना बाधक बनता ही बनता है और इसमें यदि नुकसान की नौबत आती है तो वह गरीब आदमी की ही आती है, क्योंकि कॉलोनी काटने वाला तो कॉलोनी काटकर, फ्लैट बेचकर पैसा अपनी जेब में रख परिदृश्य से गायब हो जाता है, निपटने के लिए रह जाते हैं वह गरीब लोग, जो अपने पेट काट-काटकर अपना आशियाना बनाए होते हैं। अत: कह सकते हैं कि उनका हटना और इन पर रोक लगाना अति आवश्यक है।

लेकिन वास्तव में देखें तो जिले में शायद ही कोई ऐसा गांव और शहर में शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र होगा, जहां बिना नक्शे के अनेक निर्माण न हो रहे हों और प्रशासन के वह लोग जिन पर जिम्मेदारी होती है उन्हें हटाने की, वह उनके साथ बैठे भी नजर आ जाते हैं कभी-कभार। जैसा कि सबसे पहले मैंने लिखा था कि यह काम बिना शासन-प्रशासन के आशीर्वाद के नहीं हो सकता। वही बात फिर दोहराता हूं कि जितने भी कॉलोनी काटने वाले या मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनाकर फ्लैट बेचने वाले हैं, उन्हें सत्तारूढ़ दल के आदमियों का सहयोग अवश्य है और यह सवाल जनता उठाती रहती है कि अमुक की तो इतनी बड़ी बिल्डिंग बन गई और अमुक ने उसे बनाना शुरू किया तो प्रशासन के आदमी तोडऩे आ गए और फिर कुछ समय रूककर वह फिर बनने लग जाती है। इन बातों से स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि राजनैतिक सहयोग से करोड़ों के वारे-न्यारे इस व्यापार में किए जा रहे हैं।

यह घटना परसों घटित हुई थी, उसके पश्चात से हमारे जनप्रतिनिधि चाहे सांसद हों, विधायक हों या फिर पार्षद हों किसी की इस पर कोई प्रतिक्रिया न आना भी अचंभित करता है।

बस बड़ा प्रश्न यही निकलकर आया कि संविधान के अनुसार यदि न्यायालय ने स्टे दे रखा है तो उसे एक अधिकारी या जिला प्रशासन या फिर हरियाणा सरकार क्या नियमानुसार उसे गिरा सकती है? यदि नहीं तो आज दो दिन गुजरने पर भी किसी पर संविधान धाराएं तोडऩे की कार्यवाही क्यों नहीं?

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