गुड़गांव निवासी एवं अधिवक्ता मुकेश कुल्थिया द्वारा तीनों कृषि कानूनों को असंवैधानिक एवं ग़ैरकानूनी बताते हुए इन कानूनों को निरस्त करने का दायर किया गया दावा गुड़गांव कोर्ट में विचाराधीन है जिसके तहत सरकार को नोटिस भी जारी हो चुके हैं।

मुकेश कुल्थिया हमेशा किसान एवं किसान आंदोलन के समर्थक रहे हैं एवं किसान आंदोलन पर मुकेश कुल्थिया के निजी विश्लेषण के अनुसार,तीनों काले कृषि कानूनों से किसानों की जर, जमीन, फसल और नसल पर खतरा मंडराया तब ही किसान सड़कों पर उतरे थे, इसी प्रकार जब तक राजनेताओं एवं उनके पूंजीपति मित्रों के ऊपर आर्थिक चोट नहीं पहुँचेगी, आर्थिक खतरा नहीं मंडराएगा तब तक सरकार किसानों की कोई बात नहीं सुनेगी ।

किसान आंदोलन से सरकार, उनके मंत्रियों, पूंजीपति मित्रों पर कोई खतरा नहीं मंडरा रहा है ।ना तो किसी विधायक, सांसद या मंत्री की तनख्वाह रुक रही है ना किसी की पेंशन रुक रही है, ना ही उनके किसी पूंजीपति के किसी मुनाफे पर कोई फर्क पड़ रहा है, सरकार के कार्यकाल पर भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा फिर सरकार क्यों सुनेगी किसानों की ।

किसान 3 वर्ष और इसी प्रकार आंदोलन करते रहें, बैठे रहें सड़कों पर, दो चार हजार और शहीद हो जाएं तब भी सरकार के कोई फर्क नहीं पड़ेगा ।
किसान आंदोलन की रणनीति एवं कूटनीति में पुनर्विचार की आवश्यकता है। किसान आंदोलन की रणनीति एवं कूटनीति में आवश्यक बदलाव नही किया गया तो किसान आंदोलन फेल हो जाएगा ।

1 वर्ष से अधिक हो गया किसान सड़क पर बैठे हैं, सैकड़ों किसान शहीद हो चुके हैं ।

ये तय है कि मोदी सरकार किसी भी कीमत पर काले कृषि कानून वापस नहीं लेगी । कानून वापस लेना तो दूर, मोदी सरकार इन कानूनों पर किसानों से बात भी नहीं करेगी ।

कृषि मंत्री तोमर ने दो दिन पहले एक बार फ़िर स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि कृषि कानूनों पर मोदी सरकार किसानों से कोई वार्ता नहीं करेगी ।एक हकीकत से किसान संगठन एवं पूरा देश अच्छी तरह वाकिफ है की अडानी अंबानी की मदद के बिना मोदी प्रधानमंत्री तो दूर, प्रधानमंत्री के उम्मीदवार भी नहीं बन सकते थे। अडानी अंबानी की मदद से ही मोदी एक बार नहीं दो बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं और अडानी अंबानी के सहयोग के बिना मोदी भविष्य में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं बन सकते।इस हक़ीक़त को जानते हुए मोदी के लिए किसान कोई महत्व नहीं रखते ।जब मोदी HAL जैसी सरकारी कंपनी से छीनकर राफेल का ठेका अंबानी को दे सकते हैं तो मोदी अम्बानी लिए और क्या नहीं कर सकते।

मोदी खुद कहते हैं कि वह ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है, सातवीं आठवीं पास है। मोदी न तो अर्थशास्त्री हैं ना ही कानून के ज्ञाता। इन तीनों कानूनों की एबीसीडी भी मोदी जी को नहीं मालूम होगी। उन्हें तो सिर्फ इतना मालूम है इन कानूनों से किसे फायदा होना है और किनके फायदे के लिए ये कानून बनाए गए हैं। मोदी किसी भी कीमत पर इन कानूनों से पीछे नहीं हटेंगे ।

किसान संगठन 2024 तक होने वाले प्रत्येक प्रदेश के चुनावों में मोदी एवं भाजपा को वोट ना देने एवं भाजपा को हराने का प्रयास करते भी रहेंगे तब भी 3 वर्षों का काफी लंबा समय लगेगा।2024 में लोकसभा चुनाव होंगे या नहीं इस पर भी पिछले 2 वर्षों से संशय कायम है ।चुनाव हो भी गए तो मोदी किसानों से हार ही जाएँगे ये भी सुनिश्चित नहीं है क्योंकि अभी तक तो किसान या विपक्ष जनता को कोई विकल्प ही नहीं दे पाए हैं।2024 के लिए संघ या भाजपा ने अपने तरकश में कौन से तीर छिपा रखे हैं ये भी कोई नहीं जानता ।

इसमें कोई शक नहीं कि किसान आंदोलन के बाद मोदी की छवि पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है किन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि मोदी, भाजपा, संघ एवं इनके पूंजीपति उद्योगपति एवं इनके आई टी सेल में काफी ताकत है।कुछ नहीं कहा जा सकता ये कब, कहाँ, कौनसी हवा अपने पक्ष में कैसे बना लें।

पुलवामा फ़ौजियों की शहादत से भी मोदी की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा था लेकिन मोदी ने उस शहादत को भी अपने पक्ष में भुना लिया।कहने को 2019 में कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत से भी मोदी की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा था किंतु फिर भी मोदी ने बिहार अपने नाम लिखवा ही लिया।नोटबंदी से भी जनता में त्राहि-त्राहि मची थी, मोदी की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा था लेकिन उस नोटबंदी को भी मोदी ने अपने पक्ष में भुना लिया और पहले से ज्यादा सीटें लेकर दोबारा प्रधानमंत्री बने।

बंगाल चुनाव मोदी बनाम दीदी ही था। ‘दीदी ओ दीदी’ से भी मोदी की छवि पर विश्व स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था, बेशक मोदी बंगाल हार गए लेकिन इस सच्चाई को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि एकमात्र मोदी के कारण बंगाल में भाजपा 3 से 77 सीटों पर पहुंची।ये सीटें भाजपा की जीत कतई नहीं कही जा सकतीं, ये जीत सिर्फ और सिर्फ मोदी की जीत थी।

कहने का तात्पर्य यह है कि अगर किसान नेता एवं किसान संगठन सिर्फ मोदी की छवि और मोदी सरकार को हराने के भरोसे बैठे रह जाएंगे तो हो सकता है कि किसान हाथ मलते रह जाएंगे।

निजी उद्योगपतियों को नाजायज फायदा पहुँचाना मोदी सरकार की दुखती रग है।इसी कारण से मोदी सरकार ने किसानों के 10 वर्ष पुराने ट्रैक्टरों के इस्तेमाल पर गैर कानूनी तौर से पाबंदी लगाई है ताकि नहीं ट्रैक्टरों का उत्पादन और बिक्री बढ़ाई जा सके जिससे कि ऑटोमोबाइल उद्योग पतियों को आर्थिक मुनाफा हो।मोटर व्हीकल कानून में 10 वर्ष पुराने ट्रेक्टर या अन्य किसी भी वाहन पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है। अधिवक्ता मुकेश कुल्थिया ने इस बाबत भी गुड़गांव कोर्ट में दावा दाखिल कर रखा है। गुड़गांव कोर्ट में मुंह की खाने के बाद हरियाणा सरकार सरकार हाई कोर्ट पहुंच चुकी है, मामला विचाराधीन है।

किसान संगठन एवं किसान नेताओं को चाहिए कि किसानों के ट्रैक्टर्स पर लगाई गई इस गैर कानूनी पाबंदी को हटाने की दिशा में मुहिम चलाएं।इस मुहिम से देश के लाखों किसानों के ट्रैक्टर स्पेयर से गैर कानूनी पाबंदी पटेगी एवं किसानों को फायदा होगा साथ ही मोदी सरकार के निजी उद्योगपतियों के नाजायज हितों पर चोट पहुंचेगी तभी वह आवाज मोदी सरकार को सुनाई देगी।

किसान संगठन चाहें तो इस बाबत किसान हित में समस्त कानूनी करवाई का जिम्मा वहन करने को मुकेश कुल्थिया तैयार हैं।