शाह से मुलाकात के लिए जतिन को जूते उतारने पड़े, प्रवेश करते ही मिल गया सम्मान। 

जतिन प्रसाद 2014 से लगातार भाजपा में जाने की जुगत में थे, अब पराजित यौद्धा की तरह गए ।
ब्राह्मण वोटर की नाराज़गी से भयभीत भाजपा ने उनके मन की मुराद कल पूरी कर दी ।
राहुल के नाम पर पंचायती चुनाव नही जीत पा रहे तो मोदी का नाम सही, हमको तो बस सत्ता चाहिए ।
आज कांग्रेस में हो रहा है, आने वाले समय में भाजपा में भी देखने को मिलेगा।

अशोक कुमार कौशिक

 अब यह साबित हो गया है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष न बनने की वजह वाजिब थी। उन्हें यह दिखाई दे रहा था कि कांग्रेस में धूर्त लोगों का बोलबाला है। बहुत से लोग तो छोड़ के जा चुके। अभी बहुत और जाने बाकी है क्योंकि यह लोग उसी के बगैर रह नहीं सकते।

 कल सुबह राहुल गांधी ने आखिरी कोशिश की थी। जतिन को मनाने की नही सच की राह दिखाने की, जतिन नही माने। पीयूष गोयल के घर के रास्ते पर उनके एक पुराने साथी ने फिर से रोका , मगर जतिन नही माने। 

जतिन भाजपा में गए लेकिन सिंधिया की तरह नही गए। जतिन नाराज होकर नही गए , उस पराजित यौद्धा की तरह गए जिसके पास दो हो रास्ते बचे थे या तो वो पराजय के इस दौर को सहता रहे या फिर खुद के राजनैतिक जीवन के  लिए सांसें खरीद लें। जतिन ने दूसरा रास्ता चुन लिया। 

जतिन कह रहे हैं मैंने सोच समझ कर फैसला लिया है सही कह रहे हैं। कांग्रेस को पराजित यौद्धाओं की अब जरूरत नही है अब उसे विजेताओं का वरण करना होगा। बतौर पश्चिम बंगाल प्रभारी भी जतिन का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। हम व्यक्तिगत तौर पर यह जानते हैं कि जब जतिन कह रहे होंगे कि देशहित में कोई नेता है तो मोदी है तो उनके मन मे क्या चल रहा होगा?

जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान सम्भाली तो जितेंद्र प्रसाद ने उनका विरोध किया , उनके ख़िलाफ़ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हार गए और सोनिया गांधी ने उन्हें अपना उपाध्यक्ष बना दिया । सोनिया गांधी ने जितेंद्र प्रसाद के जीते जी कभी उनकी उपेक्षा नहीं की । 

जितेंद्र प्रसाद की मौत के बाद उनके बेटे जतिन प्रसाद राजनीति में आए, 30 साल की उम्र में उन्हें शाहजहाँपुर से कांग्रेस का टिकट मिला और वो सांसद बन गए । 35 साल की उम्र में उन्हें मनमोहन सिंह जी की सरकार में मंत्रालय मिल गया । जतिन प्रसाद 2014 से लगातार भाजपा में जाने की जुगत में थे , ब्राह्मण वोटर की नाराज़गी से भयभीत भाजपा ने उनके मन की मुराद कल पूरी कर दी ।

2014 में लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री के रूप में चुनाव लड़ते हुए अपने परम्परागत सीट से न सिर्फ हारे बल्कि 4 नम्बर पर रहे। 2017 में तिलहर विधानसभा सीट भी हार गए ( आप सोचिए इस नेता की काबिलियत जो केंद्रीय मंत्री था वो एक विधानसभा नही जीत सका ) 
2019 में लोकसभा में पुनः धौरहरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और 3 नम्बर पर रहे है। इसके बाबजूद कांग्रेस ने इन्हें महासचिव बनाकर बंगाल का प्रभारी बनाया जहां इन्होंने अपना कोई योगदान नही दिया,  कुछ लोग तो ये कहते हैं केरल के बदले लेफ्ट ने बंगाल में अपना वोट बीजेपी को ट्रांसफर करवाया और जतिन ने कांग्रेस का वोट भी इशारों-इशारों में बीजेपी की तरफ ही भेजने की प्रयास किया। यूपी में हुए पंचायत चुनाव में ये महाशय अपने भाभी को ये नही जितवा पाए। 

इन सबके बाबजूद इन्हें अब 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले इन्हें उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष और मुख्यमंत्री का चेहरा बनना था मगर इनकी काबिलियत पार्टी बेहतर ढंग से समझ गई तो इन्हें साफ तौर पर मना कर दिया गया जिसके बाद ये अब बीजेपी में चले गए हैं। 
सबसे गजब देखिए इन्होंने बीजेपी को ब्राह्मण पर अत्याचार करने वाली पार्टी कहकर” ब्राह्मण चेतना परिषद” बनाया और  अब “ब्राह्मण जलाओ पार्टी” में चले गए। 

आप लोगों को अंदाज नहीं होगा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नामक पार्टी में जतिन प्रसाद,  ज्योतिराज सिंधिया और इन जैसों का कितना रुतबा रहता रहा है। नेहरू-गांधी परिवार के शीर्ष लोगों के यहां इन जैसों की  इंट्री के लिए किसी की इजाज़त नही लेनी पड़ती रही है। लेकिन केरल से कश्मीर और कोहिमा से कच्छ के जमीनी  नेताओं को दिल्ली आकर सप्ताह या सप्ताह से भी ज्यादा समय तक ‘साहबों’ के दर्शन के लिए इंतजार करना पड़ता रहा है।

अगर ये नेता दलित, ओबीसी, आदिवासी या गैर-अंग्रेजी भाषी हुए तो और मुश्किल। कांग्रेस की यूँ ही दुर्दशा नहीं हुई है। बीते दो-ढाई दशकों से पार्टी आलाकमान के ‘ताकतवर सलाहकारों’ ने इस पार्टी का ज्यादा बुरा हाल किया। Arrogance और जमीनी राजनीति के प्रति इनके Ignorance ने अच्छे और जनाधार वाले नेताओं को हतोत्साहित किया और जितिन प्रसाद जैसों को प्रभावशाली बनाया । हमारे पास अंग्रेजी बोलने वाले ऐसे ‘प्रभावी ‘ की लंबी सूची है।

“एक  कांग्रेसी भाई कह रहे है कि राहुल गांधी चाहते तो 10 साल की यूपीए सरकार में स्वयं प्रधानमंत्री बन सकते थे , कैबिनेट मंत्री बन सकते थे किंतु उन्होंने राज्यमंत्री तक का पद नहीं लिया । मगर जतिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, सचिन पायलट ये सब वो थे जिनको पहली बार सांसद बनने पर ही मंत्री पद मिल गया।

किन्तु इन सभी नेताओं में एक बात कॉमन थी वो ये की इनका बैकग्राउंड बाप दादाओ की जमीन से था न कि स्वंय संघर्ष का इन्होंने पार्टी के लिए कोई संघर्ष नही किया बल्कि पैराशूट से लांच किए गए। वो सभी पद और प्रतिष्ठा जिसकी कामना हर एक नेता को जीवन भर रहती है वो एक झटके में मिल गयी”।

तो इसमें कसूर किसका है ? कांग्रेस का ही ना? कि इसमें भी मोदी का हाथ है? तुमने भी तो माधव राव सिंधिया, जितेंद्र  प्रसाद और राजेश पायलट की लोकप्रियता को कैश करवाने को सोची तब क्यों नही सोचा कि निचले स्तर पर दशकों से काम करने वाले लाखो कार्यकर्ता भी इंतज़ार कर रहे है जिन्होने पार्टी के लिए दिन रात काम किया है। क्यों नही उनको ऊपर लाये? क्यों इन सपुत्रो को लाये और शीर्ष पदों पर बिठा दिया? और आज क्यों याद आ रहा है, ये सब? जो बोया है वो काटो अब। रोना किस बात का। बोया पेड़ बबूल का, आम कहां ते खाय।

देश की राजनीति में यह तय हो गया है कि काँग्रेस के बिना अब बीजेपी का कोई अस्तित्व नही है। एक वक्त ऐसा भी आ सकता है कि देश मे जो बीजेपी बचे उसमे कांग्रेस, टीएमसी और वाम के नेता हों। यह बात अतिश्योक्तिपूर्ण लग सकती है लेकिन असम को ही देखिए।

जतिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने के ज्यादा मायने मत निकालिए । जतिन के बीजेपी में शामिल होने से न तो बीजेपी को कोई खास फायदा होगा और न ही जतिन प्रसाद को । लेकिन कांग्रेस को संगठन स्तर पर जरूर नुकसान होगा । किसी भी बड़े नेता का इस तरह पार्टी छोड़कर जाना बाकी नाराज नेताओं और जनता के बीच कई गलत संदेश दे जाता है । पार्टी के और कमज़ोर होने का खतरा बढ़ जाता बाकी के नाराज़ नेताओं में भी बगावत के सुर तेज होने की आशंका बढ़ जाती है । वोटर के तौर पर जनता का भी पार्टी के प्रति विश्वास कम होता है ।

लेकिन यकीन मानिए खुद की उपेक्षा से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ने वाले जितिन प्रसाद अगर बीजेपी में शामिल होकर खुद के अच्छे दिनों की अपेक्षा कर रहे हैं तो वो सरासर गलती कर रहे हैं । कांग्रेस में रहकर आज नहीं तो कल उन्हें सम्मान मिल ही जाना था लेकिन बीजेपी में उन्हें दुर्गति के सिवाय कुछ नहीं मिलने वाला । दूसरे दल को छोड़कर बीजेपी में आने वाले एक दो नेता को अपवाद के तौर पर अगर छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर नेता आज खाली हाथ ही बैठे हैं ।

सिंधिया की बगावत ने तो सूबे की सरकार तक बदलवा दी लेकिन फिर भी बीजेपी में उन्हें क्या मिला ? महाराष्ट्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे । पाटिल ने जिस समय इस्तीफा दिया था वह विधानसभा में विपक्ष के नेता थे। अब बीजेपी में हाशिए पर चल रहे हैं । जगदंबिका पाल, विजय बहुगुणा, एसपी के नरेश बंसल, पूर्व विदेश मंत्री एस एम कृष्णा जैसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है । 

अरविंदर सिंह लवली जैसे नेताओं की एक लिस्ट ऐसी भी है जो बीजेपी में शामिल तो हो गए लेकिन फिर दम घुटने की वजह से उन्हें बीजेपी छोड़कर वापस कांग्रेस में ही आना पड़ा ।

कुछ लोग जतिन प्रसाद को यूपी के सीएम कैंडिडेट या फिर किसी बड़े पद के तौर पर भी देख रहे हैं । लेकिन ऐसा सोचना मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है । जतिन को बीजेपी में शामिल करने के पीछे बीजेपी का एकमात्र मकसद कांग्रेस को कमज़ोर करना है इससे ज्यादा कुछ नहीं ।

इस बात को इससे भी समझा जा सकता है अमित शाह से मुलाकात करने के लिए जितिन प्रसाद को अपने जूते उतारने पड़े हैं । (देखे फोटो)
और भाजपा भी यही कर रही है ये मत समझना कि वो कोई इनसे अलग है। उनके भी कई कार्यकर्ता दशकों से दरी चद्दर बिछा कर चंद दिनों पहले आये कांग्रेसी नेताओ के लिए वोट मांग रहे है। जब जिस दिन इस पार्टी का नशा लोगो के दिमाग से उतरेगा इनके यहां भी भगदड़ मचेगी। क्योंकि जिनको सत्ता ही चाहिए होती है वो कभी भी अपने पाला बदल लेते है।

जब राहुल के नाम पर हम पंचायती चुनाव भी नही जीत पा रहे तो मोदी के नाम से ही सही। हमको तो बस सत्ता चाहिए । और जो वफादार होते है उनको तुम दुत्कारते होममता की जगह जमीन से कटे हुए दिल्ली के ड्राइंग रूम में बैठकर राजनीति करने वाले प्रणब मुखर्जी को तरजीह देते हो तो भुगतना भी तुमको ही है। देखो कहाँ खड़े हो आज बंगाल में? यही देश मे तुम लोगो का हाल होना बाक़ी है, ज़ीरो। क्योंकि ज़ीरो से नीचे कोई संख्या होती नहीं।

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