भारत सारथी/ऋषि पकाश कौशिक हमने 18 मई को ही अनुमान लगाकर लिखा था कि गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल को तलब कर निर्देश दिए हैं और कहा कि जनता के बीच जाना बंद करें और कार्यालय में बैठकर ही स्थिति को संभालने का प्रयास करें और आज हम कह सकते हैं कि हमारे अनुमान की पुष्टि हो गई। उसके बाद से मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठकर कार्य कर रहे हैं। आज बुधवार को किसान संगठन काला दिवस मना रहे हैं और उनके समर्थन में अनेक राजनैतिक दल, संस्थाएं, मजदूर, कर्मचारी आ रहे हैं। अत: आज यह पता चल जाएगा कि कितने लोग इस सरकार से परेशान हैं। वैसे एक बात कहना आवश्यक समझते हैं कि कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त। तात्पर्य यह कि काले झंडे लगाने वाले सभी किसान आंदोलन के समर्थन में हैं यह आवश्यक नहीं लेकिन यह तथ्य है कि वे सरकार से प्रसन्न नहीं। मौका है इस तरह अपनी नाराजगी प्रस्तुत करने का। अब देखें 19 मई से मुख्यमंत्री मनोहर लाल जनता के लिए मनोहारी बातें और योजनाएं प्रस्तुत कर रहे हैं। आज यह ज्ञात हो जाएगा कि उनकी मनोहारी योजनाएं नागरिकों को कितना प्रभावित कर पाई हैं, क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में ऐसा लगता नहीं कि जनता सरकार की किसी बात पर विश्वास करती है और सरकार की भी बातें बदलती रहती हैं। कोरोना के कहर से सारी जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। सरकारी अस्पतालों में व्यवस्थाएं ठीक है नहीं, दवाइयां मिल नहीं रहीं, प्राइवेट अस्पताल लूट मचा रहे हैं, सरकार की ओर से बार-बार ब्यान आते हैं कि उन पर कार्यवाही होगी लेकिन कब यह किसी को नहीं पता। कोरोना से निपटने के लिए सरकारी कार्य नगण्य से नजर आते हैं। जनता से भी स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आकर पीडि़तों की मदद कर रही हैं। सरकार की ओर से जो कार्य करते दिखाए जा रहे हैं, वह भी सब कंपनियों के सीएसआर के पैसे से कराए जा रहे हैं और यह भी देखा गया कि सरकार प्रचार कर अपनी वाहवाही लूटने के लिए कम साधन वाले और बिना तैयार कोविड सेंटरों के उद्घाटन कर रही है, जिनमें गुरुग्राम के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में बना कोविड सेंटर चर्चा में रहा। हिसार के चर्चित अस्पताल में भी मुख्यमंत्री के उद्घाटन करने के बाद ऑक्सीजन की कमी का खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ा। अब जब गांवों में कोरोना फैल गया तो सरकार गांवों में वैक्सीन कराने के दावे कर रही है परंतु शायद यह भूल गई कि फरवरी माह से ही पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। नए चुनाव की अब तक सरकार ने कोई घोषणा नहीं की है। अत: वहां का काम सरकारी अधिकारियों के ऊपर ही आ गया और सरकारी अधिकारियों के कार्यों पर सारे हरियाणा में इस समय प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। यहां तक कि कोरोना में बंटने वाले मास्क की खरीद में भी घोटालों के समाचार आ रहे हैं। कंपनियां मानवता के नाते लगात मूल्य पर मास्क बेचने को तैयार हैं लेकिन ऐसे समाचार भी मिले हैं कि अधिकांश निगम के अधिकारी जब मास्क खरीदने जाते हैं तो वह अधिक बिल बनवाते हैं और तुरंत पेमेंट करा देते हैं। वह पैसा अधिकारियों की जेब में ही जाता है। सरकार की ओर से अधिकारियों की जांच तो आजकल होनी बंद ही हो चुकी है। उसके बारे में जनता का सोचना है कि अधिकांश अधिकारी नजराना देकर अपनी स्टेशन लेते हैं। अत: उन्हें किस बात का डर। खैर इन बातों को छोड़ते हैं, यह इन बातों का विषय नहीं। मुख्यमंत्री की ओर से जो मनोहारी घोषणाएं होती हैं, उन पर जनता को विश्वास तो नहीं होता। हां चर्चा का विषय जरूर बन जाती हैं। आज ही मुख्यमंत्री की ओर से ब्यान आया कि हम कोरोना की तीसरी लहर से निपटने की तैयारी कर रहे हैं तो कुछ लोगों से यह सुना गया कि वर्तमान में तो लोग मौतों से जूझ रहे हैं, मौतों के आंकड़े छिपाए जा रहे हैं, कहीं वैक्सीन हो नहीं रहा। मजेदारी देखिए, जजपा और बीजेपी के संगठन के लोग कहीं इक्का-दुक्का स्थान पर सैनेटाइज करा अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने की चेष्टा में लगे हुए हैं। वह शायद यह भूल जाते हैं कि आपदा की अधिकता ने जनता को कुछ समझदार तो कर दिया है। जनता की तरफ से यह आवाज उठ रही है कि यह काम तो सरकार का है। सरकार की ओर से हर क्षेत्र सैनेटाइज होना चाहिए। इसी प्रकार भाजपा के संगठन के बारे में बातें आ रही हैं कि जैसे-तैसे संगठन बना था, उसके बाद जैसा कि अनुमान था वही हुआ। भाजपा कार्यकर्ताओं में दूरियां बढ़ गईं। सब अपने-अपने पहचान बनाने को प्रयासरत हो गए और इसका असर यह हो रहा है कि कोरोना के समय जो कार्य भाजपा संगठन को सौंपे गए थे, वह कहीं दिखाई नहीं दे रहे। गुरुग्राम संगठन की बात करें तो जब इन्हें कोरोना की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो एक-दो दिन तो ब्यान और फोटोज आईं लेकिन उसके पश्चात जनता को पता लग नहीं रहा कि भाजपा की जिला इकाई भी कोरोना मरीजों की मदद कर रही है। सिविल अस्पताल में कोरोना मरीजों को यदि खाना दिया जाता है तो वह भी सरकार की ही कमी को पूरा कर रहे हैं, क्योंकि मरीजों को भोजन तो अस्पताल की ओर से ही मिलना चाहिए। तो आज पता लगेगा कि कितने लोगों में इतनी हिम्मत है कि वे काला झंडा लगा सरकार को यह दर्शा सकें कि हम सरकार के विरूद्ध हैं। वैसे कुछ भाजपाई भी यह कहते सुने गए कि चाहते तो हम भी हैं परंतु पार्टी का नाम जुड़ा है, इसलिए लगा नहीं सकेंगे। पिछले काफी समय से काला रंग मनोहर लाल खट्टर को अप्रिय रहा है। अब आज यह देखना होगा कि वह किसानों, कर्मचारियों, कामगारों, व्यापारियों आदि के काले झंडे देख क्या अपनी रणनीतियां बदलेंगे? क्या वह ब्यानबाजी छोड़कर धरातल पर काम करेंगे? क्या भ्रष्ट अधिकारियों की जांच करा उन्हें सजा देने का काम कर पाएंगे? क्या इस समय में जो वह प्रदेश के मुखिया बने हुए हैं, भाजपा सरकार और भाजपा संगठन दोनों चला रहे हैं, क्या वह उसकी सार्थकता सिद्ध कर पाएंगे? या फिर भाजपा में ही अपने विरोधियों को मुखर होने की हिम्मत देंगे? Post navigation कोरोना से मुकाबलें को वैक्सिन ही मजबूत हथियार: शरद यादव है अंधेरी रात पर, दीया जलाना कब मना है ?