– मुकेश शर्मा राजनीतिक विश्लेषक

लगता है कि इस देश में टैक्स अदा करने वालों के लिए सरकार के सभी दरवाजे बंद हैं।अप्रैल, मई 21 के दौरान आयी कोरोना की प्रलय के बीच भी मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यम परिवारों के प्रति केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने जिस संवेदनशून्यता का परिचय दिया है, उसके बाद ऐसा लग रहा है कि इस देश में आजीविका कमाने में सही समर्थ हो जाना किसी गुनाह से कम नहीं है।वे केवल टैक्स पेयर्स और मतदाता मात्र हैं।

ग़ौरतलब है कि अप्रैल और मई,21 की अवधि में कुछ समय ऐसा आया कि जब देश की मेडिकल व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होती प्रतीत हो रही थी या इस क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक ध्वस्त तो पहले से ही थी,लेकिन अब वह सार्वजनिक तौर पर एक्सपोज हो गई।ऐसे में अस्पतालों में बैड नहीं मिल रहे थे, ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पा रही थी, रेमडेसिवर इंजेक्शन के लिए मारामारी थी और दवाइयों के विकल्प मिल रहे थे, डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाइयां बाज़ार से प्रायः गायब थी।

ऐसे प्रलय के दौर में अमीरों ने तो मुंहमांगे दाम पर सुविधाएं खरीद ली,गरीबों के साथ आयुष्मान भारत योजना थी,फ्री इलाज, फ्री राशन था,लेकिन सरकारी सहायता के नाम पर मध्यमवर्गीय परिवारों के पास क्या था?महज़ सरकारी ठेंगा।टैक्स दो,वोट दो और ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण, सही उपचार न मिल पाने के कारण अपने प्राण त्याग दो या ज़िंदा रहने की जद्दोजहद के बीच आपदा को अवसर बना देने वाले ‘भेड़ियों’ के हाथों नोच दिये जाने की पीड़ा को सहन करो?मध्यम वर्गीय परिवारों के नाम पर कहाँ थी सरकार?

कोरोना की लहर नाममात्र कम होने के साथ ही गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए कोविड उपचार की निशुल्क सुविधा कुछ राज्य सरकारों द्वारा शुरु की गई है।फ्री राशन भी।यह अच्छी बात है, होना ही चाहिए।उच्च वर्ग के लिए बैंकों की आकर्षक योजनाएं, सब्सिडी,सरल लोन सुविधा आदि उपलब्ध हैं।सरकार चाहती है तो इसमें भी कोई हर्ज नहीं।लेकिन इन सबके बीच मध्यम वर्गीय परिवारों के पास,निरंतर इंकम टैक्स भरने वालों के पास कौन सी सरकारी सपोर्ट थी?इतने बुरे हालात में भी मात्र सरकारी ठेंगा?

निरंतर टैक्स भर रहे करदाताओं को ऑक्सीजन सिलेंडर तक नहीं।लगातार कंगाली की ओर बढ़ रहे इस वर्ग के पास सरकारी राहत के नाम पर कुछ नहीं है।स्कूल, कॉलेज फीस भरनी ही पड़ेगी।बिजली चाहे इस्तेमाल न की हो,बंद पड़े कार्यालयों में, वकीलों के चेम्बर्स में बिजली चाहे एक यूनिट भी खर्च नहीं हुई,लेकिन एम एम सी चार्जेस (न्यूनतम उपभोग शुल्क) तो अदा करना ही होगा।टोल टैक्स,हाउस टैक्स, सीवरेज टैक्स, जीएसटी देना ही पड़ेगा।इंकम टैक्स देने वालों को कोई सुविधा नहीं।

टैक्स भरने वालों के प्रति,मध्यम वर्गीय परिवारों के प्रति केंद्र, राज्य सरकारों की यह संवेदनशून्यता हैरान कर देने वाली है।विकसित देशों में टैक्स भरने वालों को शिक्षा, स्वास्थ्य की  निशुल्क या कम खर्च पर जो सुविधाएं दी जाती हैं, उस तर्ज पर यहाँ कोई योजना नहीं है।
ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार का एक शे’र शायद ऐसे ही वंचितों के लिए लिखा गया है-

‘जो चाहे, बजा ले,हमें इस सभा में, हम नहीं है आदमी, हम झुनझुने हैं।’

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