डॉ उदय यादव ( प्रेसिडेंट इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिक्स फर्स्ट हरियाणा) देशभर में कोरोना से बुरा हाल है। लगातार बढ़ते मरीजों के बीच सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि मरीज का इलाज आखिर कैसे हो? कोरोना की वैक्सीन आ चुकी है, लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद इलाज को लेकर पूरी दुनिया में अलग-अलग तरह की राय है। अलग-अलग दवाइयां हैं। इस बीच, अलग-अलग प्रदेशों में डॉक्टर अपने स्तर पर नए प्रयोग कर रहे हैं, जो कोरोना रोगियों के इलाज में मददगार भी साबित हो रहे हैं। ऐसी ही शुरुआत अब चेस्ट फिजियोथैरपी से दी जा रही है। इस थैरेपी से बड़ी संख्या में मरीज रिकवर हो रहे हैं। कोरोना संक्रमित जो मरीज ऑक्सीजन की कमी के चलते परेशान हो रहे हैं, उनके लिए चेस्ट फिजियोथैरपी कारगर साबित होती नजर आ रही है। इसके जरिए कई अस्पतालों में भर्ती मरीजों का न केवल सैचुरेशन (ऑक्सीजन लेवल) बढ़ा है, बल्कि मरीज के लंग्स (फेफड़ों) की रिकवरी भी तेजी से हुई है। ऐसे भी रिजल्ट सामने आए हैं कि जो मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे, इस थैरेपी से उनका ऑक्सीजन लेवल भी नॉर्मल हुआ है। पिछले दिनों कोरोना संक्रमितों का सैचुरेशन लेवल कुछ स्तर तक बढ़ाने के लिए डॉक्टरों ने जिस तरह प्रोनिंग करने की सलाह दी, ठीक उसी तरह चेस्ट फिजियोथैरेपी के जरिए भी मरीजों का ऑक्सीजन लेवल बढ़ाकर उसे संतुलित लेवल पर लाया जा सकता है डॉ उदय यादव ने बताया कि इस थैरेपी से न केवल मरीज का सैचुरेशन लेवल बढ़ाया जा सकता, बल्कि फेफड़ों की रिकवरी भी तेजी से होती है। इसे लेने के बाद कई मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट की भी जरूरत नहीं पडती । ये थैरेपी केवल उन्हीं मरीजों को दी जाती है, जिनका सैचुरेशन लेवल 80 या उससे ऊपर है। इसमें हम मरीज के लंग्स में जमा स्पुटम (कफ) को ढीला करते हैं, जिससे कफ बाहर आने लगता है और मरीज की सांस लेने की कैपेसिटी बढ़ जाती है। मरीज को ऐसे मिल जाता है आराम कोविड मरीजों के फेफड़े वायरस से डैमेज तो होते ही हैं, साथ ही कई मरीजों के फेफड़ों में टाइट स्पुटम (कफ) जमने की शिकायत भी होने लगती है। कफ जमने से फेफड़े अपनी क्षमता के मुताबिक काम नहीं करते, इसके कारण मरीज की रिकवरी भी देरी से होती है। रिकवरी की स्पीड को बढ़ाने के लिए मरीज के फेफड़ों से कफ हटाना जरूरी होता है, ताकि वह अच्छे से काम कर सकें और मरीज सांस ले सके।फेफड़ों में जमे टाइट कफ को ढीला कर बाहर निकालने के लिए डॉक्टर अलग-अलग दवाइयां देते हैं, जिसमें समय लगता है। जबकि चेस्ट थैरेपी में बिना दवाइयों के कफ को ढीला करते हैं और वह अपने आप मरीज के शरीर से बाहर निकलने लगता है। मरीज के शरीर से जब कफ बाहर आता है तो उसे सांस लेने में आसानी होती है। संक्रमित फेफड़े भी जल्दी से ठीक होने लगते हैं। सीटी स्कैन की रिपोर्ट के आधार पर होती है थैरेपी डॉ. यादव ने बताया कि चेस्ट थैरेपी में भी तीन तरह के वॉल्यूम हैं, जो मरीज की स्थिति को देखते हुए तय किए जाते हैं। चेस्ट थैरेपी में पहले ये देखा जाता है कि फेफड़ों के किस पार्ट में ज्यादा कफ जमा है। सीधे हाथ की तरफ बने फेफड़े तीन पार्ट और उल्टे हाथ की तरफ बने फेफड़े के दो पार्ट होते हैं। इसके लिए मरीज की सीटी स्कैन रिपोर्ट देखी जाती है। इस रिपोर्ट के आधार पर अलग-अलग स्थिति में थैरेपी दी जाती है। थैरेपी में सबसे पहले मशीन से वाईब्रेशन के जरिए और उसके बाद डीप ब्रीदिंग, हाफिग, कफिंग ,वाइब्रेशन ,परकशन ,मेन्युअली हाथों से थप्पी देते हुए टाइट कफ को ढीला करके ,पोजिशनिंग करके बाहर निकाला जाता है। Post navigation सरकारी पाॅली क्लिनिकों में दाखिल मरीजों के लिए सेवा रसोई की आपूर्ती करेगी भाजपा MSP की कानूनी गारंटी से होगा किसानों का असल सम्मान-चौधरी संतोख सिंह