रिश्तों की भी हो रही है मौंत, सामूहिक प्रयासों से ही मुक्ति पाई जा सकती है महामारी से गुडग़ांव, 13 मई (अशोक): विश्व में कोरोना महामारी का प्रकोप जारी है। कोरोना की दूसरी लहर ने भारत देश के विभिन्न प्रदेशों को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रख दिया है। कोरोना महामारी के इस वीभत्स रुप ने समाज का ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न कर रख दिया है और समाज का अमीर-गरीब वर्ग इससे बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। कोरोना की इस दूसरी लहर में असंख्य लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। कोरोना इंसान को ही नहीं, रिश्तों को भी संक्रमित कर रहा है। इंसान के साथ रिश्तों की भी मौंत हो रही है। संक्रमित होते ही अपने भी पराये होते जा रहे हैं। रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है। जीवन के मायने भी कोरोना ने बदलकर रख दिए हैं। सरकार व जिला प्रशासन के पास मौंत के आंकड़े सिर्फ संख्या ही बनकर रह गए हैं। कोरोना ने हमारी संवेदनाएं भी मारकर रख दी हैं। कोरोना से उपजी परिस्थितियों में कुछ अवसरवादी लोग कालाबाजारी व धन संग्रह में जुटे हुए हैं, कफन चोरी तक की सूचनाएं भी मिल रही हैं। अवसरवादियों ने न केवल खाद्य पदार्थों, अपितु जीवनरक्षक रुपी दवाईयों, इंजेक्शन, ऑक्सीजन तक की भी कालाबाजारी करनी शुरु की हुई है। ऐसे लोगों का मानना है कि आपदा में भी अवसर खोजे जाएं और इन अवसरों का पूरा लाभ उठाया जाए। आस-पड़ोस में किसी की कोरोना से मौंत होती है तो पड़ोसी अपने घरों के खिडक़ी-दरवाजे तक बंद कर लेते हैं। परिजन किसी तरह शव को एंबूलैंस तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। इन पीडि़तों को 4 कंधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं। भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद भी कोरोना से मरने वाले का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह किया जा रहा है। अब तो घरों मे आने वाले फोन भी लोग उठाने से डरने लगे हैं। न जाने कब किसकी और कैसी खबर आ जाए। कोई ऐसा परिवार नहीं बचा है जिसमें कोई संबंधी रिश्तेदार, परिजन व पड़ोसी इस महामारी का शिकार न हो गया हो। इस प्रकार की कोरोना की भयावह स्थिति को देखकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आत्मीयता दिखाते हुए पुलिसकर्मी व कुछ संस्थाओं के स्वयंसेवक कोरोना से जंग हार चुके लोगों का अंतिम संस्कार कराने में जुटे हैं। समूचे विश्व को एक कुटुम्ब मानने वाले भारत देश में रिश्तों पर कोरोना भारी पड़ता दिखाई दे रहा है। लोगों का मानना है कि आज नहीं तो कल कोरोना से मुक्ति मिल ही जाएगी, लेकिन कोरोना का असर इतना रहेगा कि उससे हमारी प्रकृति ही बदल जाएगी, समाज बदल जाएगा। हमारी संवेदनाएं व रिश्ते भी बदल जाएंगे। यह महामारी किसी एक के बस की नहीं है। केंद्र व प्रदेश सरकारें भी अपनी सामथ्र्यनुसार कोरोना को मात देकर देशवासियों के अमूल्य जीवन को बचाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रही हैं। कोरोना से लडऩे वाले तंत्र को भी विशाल बनाना होगा। सभी को सामूहिक रुप से प्रयास करने होंगे। एक दूसरे की मदद करनी होगी। मरी हुई संवेदनाओं को जगाना होगा। यह वक्त आपसी तनाव का नहीं, एकजुट होकर कोरोना से लडऩे का है। सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा, तभी कोरोना से मुक्ति मिल सकती है। Post navigation “मयूकोरमाइकोसिस” में भी कारगर हो सकती है होम्योपैथी – डॉ. नितिका शर्मा भगवान परशुराम जी का संक्षिप्त जीवन परिचय