-कमलेश भारतीय यह मैं नहीं कह रहा । देश का नाम दुनिया भर में संगीत के क्षेत्र में रोशन करने वाले पंडित राजन मिश्रा का बेटा रितेश मिश्रा कह रहा है । उल्लेखनीय है कि पंडित राजन मिश्रा भी कोरोना की भेंट चढ़ गये थे कुछ दिन पहले तो उनकी स्मृति में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कोविड के उपचार के लिए बनाये गये अस्थायी अस्पताल का नाम पंडित राजन मिश्रा रख दिया गया । इसी पर कड़ी टिप्पणी करते उनके बेटे रितेश मिश्रा ने कहा कि अब क्या , चाहे देश भी मेरे पिता के नाम पर कर दें , अब क्या फायदा ? जिसे जाना था , वह तो चला गया । अब सरकार कुछ ऐसा करे कि जिन कोरोना पीड़ितों का इलाज चल रहा है , उनकी जान बचाई जा सके । चुनाव के दिनों में नेता खोज खोज कर वोट लेने आते हैं लेकिन आम दिनों में वही लोग उन वोटरों को अस्पताल व बेड नहीं दिला पा रहे हैं । पूरा तंत्र मेरे पिता के चिराग को बचाने में फेल रहा । सरकार ने यदि कोरोना से लड़ने की तैयारी पहले से की होती तो मेरे पिता जी जैसे लाखों लोगों को बचाया जा सकता था । अफसोस कि ऐसा न हो सका । रितेश ने सरकार से मांग की कि बड़े बड़े मंदिर बनवाने की जगह स्वास्थ्य विभाग को मजबूत किया जाये । सच , एक बुद्ध कथा याद आ रही है । जब एक बौद्ध भिक्षु महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने के लिए धन एकत्रित करता है और जैसे ही वह पुस्तक प्रकाशन के लिए देने वाला होता है तब देश के एक राज्य में अकाल पड़ जाने की खबरें आने लगती हैं। वह बोद्ध भिक्षु अपना सारा पैसा उस राज्य को दे आता है ह फिर किताब के लिए धन एकत्रित करता है कि दूसरे राज्य में बाढ़ आ जाती है , वह भिक्षु इस बार वहां पैसा दे आता है और तीसरी बार कुछ और प्राकृतिक आपदा के लिए पैसा दे देता है । आखिर चौथी बार सफर होता है किताब छापने में तो भिक्षु लिखता है -पुस्तक का चौथा संस्करण । सवाल पूछते हैं लोग चौथा कैसे ? पहले तीन संस्करण बुद्ध की शिक्षा को समर्पित किये । यह चौथा संस्करण है मित्रो तो बताइए मंदिर , गुरुद्वारे का पैसा मानवता के कल्याण के लिए अर्पित किया जाना चाहिए कि नहीं? वाराणसी से उठी रितेश मिश्रा की आवाज़ का बहुत महत्त्व है क्योंकि यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंगा मैया ने चुनाव के समय बुलाया था और वे इन संगीतकारों के घर जाकर मिले थे । पश्चिमी बंगाल के कोलकाता की तरह वाराणसी का बहुत बड़ा स्थान है देश की संस्कृति में । ऐसे शहर से पंडित राजन मिश्रा के इलाज की भी उपेक्षा कर देना, बहुत अखरा उनके बेटे को । फिर भी वे अपने दुख को निजी रखते हुए सबके लिए उपचार की मांग कर रहे हैं तो ये उनके संस्कार हैं । अभी दो तीन वर्ष पूर्व ये भाई यानी राजन मिश्रा और साजन मिश्रा हिसार में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी सभागार में भी स्पिक मैके के निमंत्रण पर कार्यक्रम देने आए थे । आज यादों में उनका संगीत गूंज रहा है ।वैसे कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी भी तो यही बात नये बनने वाले प्रधानमंत्री आवास को लेकर कह रही हैं कि एक भवन पर बीस हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने की बजाय इन पैसों से आप कम से कम दस एम्स बना सकते हो और इस समय देश को नये आवास की नहीं बल्कि दस एम्स की जरूरत है । पर ये बात हज़म नहीं होती और विपक्ष की बस आलोचना करना है जे पी नड्ढा का काम है। या शायद उन्हें यही काम सौंपा गया है । पहले पश्चिमी बंगाल गये और ममता बनर्जी की आलोचना कर आए । अब दिल्ली लौटे तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस की भूमिका को लेकर एक लम्बी सी चिट्ठी लिख दी । अरे , सर्दवलीय बैठक बुला कर सुझाव लेने में क्या शान कम हो जायेगी आपकी ? हर केंद्र सरकार आपदा में सर्वदलीय बैठक कर सुझाव या कहिए विपक्ष की आवाज़ सुनती रही है , अपने ही मन की नहीं करती रही । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की विपक्ष में भूमिका की सराहना होती रही । आज आप भी विपक्ष की बात क्यों नहीं सुनते ? कोरोना की इस भयावह लहर के चलते कितने ही करूण दृश्य देखने को मिल रहे हैं । एम्बुलेंस न मिलने पर साइकिल ही शव ढोने का हृदय विदारक फोटो या फिर बक्सर से नदी में बह रहे अनगिनत शव । पैदल अपने गांवों को जाने को मजबूर प्रवासी मजदूर । ऑक्सीजन न मिलने पर अस्पतालों में मर रहे लोग । कितने कितने दृश्य जो मन को व्यथित कर जाते हैं और हम सरकार की ओर देखते हैं तो निराशा ही मिलती है । हां, चाहे सोनू सूद हो या दीपेंद्र हुड्डा या फिर हर शहर में सक्रिय समाजसेवी , जो हर मुश्किल घड़ी में मदद के लिए अपने हाथ बढ़ा रहे हैं , ये सुकून देने वाले हैं । ऑक्सीजन लंगर लगाने वाला पटना का गुरुद्वारा नमन् व सम्मान के योग्य है । कितने धार्मिक स्थल हैं जो इस तरह आगे बढ़ कर मानवता की रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं ?इतनी शक्ति हमें देना दातामन का विश्वास कमज़ोर हो न ,,, Post navigation बात सही तो है तर्क से सोच कर देखों, आंखे बंद करके रटी रटाई बात क्या कहना ! क्या खट्टर को बना दिया सिपहसालारो ने “खटारा”?