गुडग़ांव, 9 मई (अशोक): समाज को एकसूत्र में बांधे रखने के लिए समय-समय पर विभिन्न पर्वों का आयोजन होता रहा है। इन पर्वों की जानकारी हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलती है। कहीं गुरु पर्व तो कहीं मातृ-पितृ पर्व का आयोजन भी ग्रंथों में मिलता है। आधुनिकता के इस दौर और बदलते परिवेश में हमारे इन पर्वों पर पाश्चात्य सभ्यता का साया भी पड़ता दिखाई दे रहा है। तभी तो मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडस डे, वेलेंटाईन डे आदि पर्वों का आयोजन समय-समय पर होता रहा है।

रविवार को लोगों ने मदर्स डे को मातृ दिवस के रुप में कोरोना महामारी के चलते अपने घरों में ही मनाया। मातृ दिवस माता को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। परिजन अपनी माता का सम्मान करते हुए उन्हें उपहार आदि देकर उनसे आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कि एक मां का आंचल अपनी संतान के लिए कभी छोटा नहीं पड़ता। मां का प्रेम अपनी संतान के लिए इतना गहरा और अटूट होता है कि मां अपने बच्चों की खुशी के लिए दुनिया से लड़ सकती है। मां का जीवन हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मां के बिना यह दुनिया अधूरी है।

विदेशों में भी यह \पर्व अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। पर्व के मनाने का तरीका अलग-अलग है। बताया जाता है कि कुछ देशों में यदि मातृ दिवस पर अपनी मां को सम्मानित नहीं किया गया तो वहां पर इसे अपराध माना जाता है।

error: Content is protected !!