कांग्रेस में हमेशा बाग़ी पैदा हुए जिन्होंने सामने वाले के क़द और पद को नज़रअन्दाज़ करके बग़ावत की। 
भाजपा पर नज़र डाले तो मोदी जी के उदय से पहले तो पार्टी में छिटपुट बग़ावत ही देखने को मिली।
मोदी सरकार का एक भी मंत्री आज तक एक शब्द मोदी या शाह के विरुद्ध नहीं बोल पाया।
तानाशाही पर घुटने टेकने वाले मोदी के मंत्री जब मुँह से लोकतंत्र बोलते हैं तो हंसी आती है।

अशोक कुमार कौशिक

 देश के 5 राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय को लेकर उसके एक रीढ़ विहीन नेता कपिल सिब्बल ने टिप्पणी की। लेख उसी टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखा है। वर्तमान सरकार को भी इसमें समाहित कर विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है। कांग्रेस सरकार के जाने के बाद भी इतने बुरे हालात में भी कांग्रेस में कोई ना कोई लगातार सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता रहा। अभी हाल ही में कांग्रेस के 23 दिग्गज नेताओ ने कांग्रेस आला कमान को चिट्ठी लिखकर पार्टी की वर्किंग पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है। 

आओ कांग्रेस के अतीत में चलते हैं। पंडित नेहरू के बाद जब देश की बागडोर लाल बहादुर शास्त्री से होते हुए इंदिरा गांधी के पास आयी तो कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज से इंदिरा गांधी की कई मुद्दों पर खटपट रही और आख़िरकार के कामराज ने इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया। बाद में इंदिरा गांधी ने इंदिरा कांग्रेस बनायी और फिर जो कुछ हुआ वो इतिहास में दर्ज है। 

1975 में आपातकाल के ख़िलाफ़ बग़ावत करने वाले ज़्यादातर नेता पूर्व कांग्रेसी थे। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, बाबू जगजीवन राम समेत जितने भी बड़े नेता इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ बिगुल फूंक रहे थे, ज़्यादातर कांग्रेसी थे। 

इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी आए। राजीव गांधी के ख़िलाफ़ बोफ़ोर्स मुद्दे पर बिगुल फूंकने वाले वीपी सिंह भी कांग्रेसी थे। वीपी सिंह के साथ अरुण नेहरू, आरिफ़ मुहम्मद खान जैसे नेता भी पूर्व कांग्रेसी थे। 

राजीव गांधी के बाद नरसिम्हा राव गद्दी पर बैठे। उनको शरद पवार और अर्जुन सिंह समेत कई कांग्रेसियों की मुख़ालिफ़त झेलनी पड़ी। सोनिया गांधी और राजीव गांधी के करीबी नेता हमेशा उनके सिर का दर्द बने रहे।नरसिम्हा राव के बाद सीताराम केसरी को कांग्रेस की बागडोर मिली तो उन्हें माधवराव सिंधिया, अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी का ज़बर्दस्त विरोध झेलना पड़ा। 

सीताराम केसरी के बाद सोनिया गांधी के पास बागडोर आयी तो उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष का पद पाने के लिए जितेंद्र प्रसाद से चुनाव लड़ना पड़ा। उसके बाद शरद पवार, संगमा और तारिक अनवर ने उनके ख़िलाफ़ बिगुल बजाया और पार्टी को तोड़ दिया। 

सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस चुनाव जीती और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनके विदेश मंत्री नटवर सिंह ने उनके ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी। 

कांग्रेस सरकार के जाने के बाद भी इतने बुरे हालात में भी कांग्रेस में कोई ना कोई लगातार सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता रहा। अमरिंदर सिंह से लेकर वीरभद्र सिंह तक कैसे बग़ावत करके मुख्यमंत्री बने, यह किसी से छिपा नहीं है। अभी हाल ही में कांग्रेस के 23 दिग्गज नेताओ ने कांग्रेस आला कमान को चिट्ठी लिखकर पार्टी की वर्किंग पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है। 

नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस का नेतृत्व किसी के भी हाथ में रहा हो, कांग्रेस के नेताओ में इतनी रीढ़ हमेशा रही कि वो किसी भी मुद्दे पर शीर्ष नेतृत्व के ख़िलाफ़ बोलने या बग़ावत करने से कभी नहीं हिचके। मुद्दा भ्रष्टाचार हो, देश का हो, तानाशाही का हो या खुद को साइडलाइन करने का हो, कांग्रेस में हमेशा बाग़ी पैदा हुए जिन्होंने सामने वाले के क़द और पद को नज़रअन्दाज़ करके बग़ावत की।

इसके उलट अगर भाजपा पर नज़र डाले तो मोदी जी के उदय से पहले तो पार्टी में छिटपुट घटनाएँ बग़ावत की हुई है। कल्याण सिंह, उमा भारती, वसुंधरा राजे, यदुरैपा, शंकर सिंह वाघेला जैसे लोगों ने अपनी गद्दी या सम्मान बचाने के लिए बग़ावत की है लेकिन मोदी का दौर आने के बाद किसी की इतनी हिम्मत ना हुई कि सर उठाकर चल सके। 

आडवाणी, जोशी, शत्रुघन सिंहा, यशवंत सिंह, जसवंत सिंह, अरुण शोरी सब मोदी से इस बात को लेकर नाराज़ रहे कि उन्हें साइडलाइन कर दिया गया लेकिन पार्टी तोड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया बल्कि खुद ही चुपचाप धीरे धीरे पार्टी छोड़कर चले गए। कुछ अभी भी बेशर्मी से पार्टी में जमे हुए हैं।

मोदी सरकार का एक भी मंत्री आज तक एक शब्द मोदी या शाह के विरुद्ध नहीं बोल पाया। आज तक मोदी शाह के किसी फ़ैसले के ख़िलाफ़ किसी एक मंत्री का मुँह नहीं खुला। जेटली के ऑफ़िस में जासूसी कैमरा लगा, लेकिन जेटली चू नहीं कर पाए और घुट घुट कर भगवान को प्यारे हो गए। सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनी लेकिन विदेश जाने को तरस गयी। सरकार के किसी फ़ैसले में वो अपनी बात ना रख पायी और अन्त में भगवान के पास चली गयी लेकिन सरकार के ख़िलाफ़ एक शब्द ना बोल पायी। पर्रिकर रक्षा मंत्री बने लेकिन राफ़ेल डील से बाहर कर दिए गए। वो सारे अपमान सह कर चुपचाप गोवा चले गए और मरते दम तक चुप ही रहे। राजनाथ सिंह गृह मंत्री से रक्षा मंत्री बना दिए गए लेकिन मजाल है जो ठाकुर साहब के मुँह से एक शब्द भी निकला हो। जो लोग अपने अपमान को ही चुपचाप बर्दाश्त कर गए, उनके मुँह से देश के या जनता के लिए बाग़ी होना तो असम्भव ही है।

नोटबंदी, जीएसटी, अर्थव्यवस्था पर नाकामी, मॉब लिंचिंग, गौ गुंडई, कोरोना, चीन अतिक्रमण, मोदी का पाकिस्तान दौरा, आतंकी हमले, आईएसआई की जाँच, पुलवामा जैसे हज़ारों मुद्दे थे, जिन पर अगर किसी की पीठ में रीढ़ होती तो ज़रूर कुछ बोलता लेकिन मोदी सरकार के मंत्रियों को देखकर ऐसा लगता है कि इन्हें शपथ ही रीढ़ की हड्डी निकलवाने के बाद दी गयी है। 

देश ने मोदी सरकार से पहले कई सरकार देखी लेकिन ऐसा रीढ़विहीन मंत्रालय कभी नहीं देखा। तानाशाही पर घुटने टेकने वाले मोदी के मंत्री जब मुँह से लोकतंत्र बोलते हैं तो हंसी आती है।