सरकार की मानें तो सिर्फ वही लोग पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं जिन्हें सरकारी अमला यानि राज्यों के लोक एवं जन संपर्क विभाग मान्यता दे।
पत्रकार के रूप में सरकारी मान्यता हासिल करना एक तरह से सरकारी घूस लेने जैसा ही ।
 एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या यू ट्यूब चैनल चलाने वाले या लघु व मीडियम समाचार पत्र प्रकाशित करने वाले लोग पत्रकार हैं या नहीं ?
यू ट्यूबर्ज को लेकर सत्ता में बौखलाहट क्यों?
यूट्यूबर धरमू पर जींद में हमला गलत।

अशोक कुमार कौशिक

 आजकल एक सवाल बहुत उठाया जा रहा है कि कौन पत्रकार असली है और कौन नकली ? कुछ लोग मुख्य धारा के प्रिंट और इलैक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े लोगों को ही पत्रकार मानते हैं । जबकि लघु व मध्यम कैटेगरी के दैनिक, साप्ताहिक व पाक्षिक समाचार पत्रों के संपादकों व संवाददाताओं को कुछ लोग निम्न श्रेणी के पत्रकार मानते हैं । यू ट्यूब चैनल्स के पत्रकारों को भी बहुत सारे लोग या तो नकली पत्रकार मानते हैं या फिर उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं । कल यूट्यूबर धरमू पर जींद में जो हमला हुआ उसे कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता। 

ऐसे में सवाल उठता है कि यदि ये सब नकली या निम्न स्तर के पत्रकार हैं तो सरकार इन्हें चलने ही क्यों दे रही है ? कुछ लोग यह भी मानते हैं कि छोटे समाचार पत्रों से जुड़े पत्रकार या तो ब्लैकमैलर हैं या फिर बिकाऊ पत्रकार हैं जिन्हें थोड़ी बहुत रकम देकर किसी के भी खिलाफ कुछ भी लिखवाया जा सकता है । 

यदि सरकार की मानें तो सिर्फ वही लोग पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं जिन्हें सरकारी अमला यानि राज्यों के लोक एवं जनसंपर्क विभाग मान्यता देते हैं । सूचना के लिए बता दूं कि मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सरकारें मुफ्त बस यात्रा या सस्ती रेल यात्रा जैसी कुछ छोटी मोटी सुविधाएं देती है, जिसे हासिल करने के लिए पत्रकार मंत्रियों व बड़े अफसरारन की ड्योढ़ी पर सिजदा करते रहते हैं । कुछ सरकारें तो पत्रकारों को बड़े शहरों में मुफ्त आवास तथा बीमारी में फ्री इलाज तक की सुविधा भी मुहैया कराती हैं । अक्सर यह सुविधाएं या यह सरकारी मान्यता सिर्फ सत्तारूढ़ सरकार की जी-हजूरी करने वाले पत्रकारों को ही मिलती हैं , जबकि सरकार की ठुकाई करने वाले स्वाभिमानी पत्रकारों को तो सरकार के कोप का ही भाजन बनना पड़ता है । सत्तापक्ष से जुड़े अपने से नेता ऐसे पत्रकार को देश, धर्म और समाजविरोधी के तगमें से नवाज देते है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसे पत्रकार माना जाए और किसे नहीं । मेरे  34-35 वर्ष के पत्रकारिता जीवन में मुझे कभी भी सरकार से मान्यता नहीं मिली, मैने कभी कोशिश भी नही की। जबकि जिन प्रतिष्ठानों में मैं काम करता रहा हूं , वहां मैं एक खांटी पत्रकार के तौर पर पहचाना जाता रहा हूं । इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार की निगाहों में मैं कभी भी पत्रकार ही नहीं रहा । दरअसल मैं व्यक्तिगत रूप से यह मानता रहा हूं कि पत्रकार के रूप में सरकारी मान्यता हासिल करना एक तरह से सरकारी घूस लेने जैसा ही है । इस सोच का विपरीत नतीजा अब मुझे बाकी की पूरी जिंदगी भुगतना पड़ेगा ।

हरियाणा सरकार ने 60 वर्ष की आयु पार कर चुके उन सभी पत्रकारों को 10 हजार रूपये महीना पैंशन देने का फैसला किया है जिन्होंने बीस वर्ष तक पत्रकारिता की है तथा जो कम से कम पांच वर्ष तक सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार रहे हों । मान्यता प्राप्त पत्रकार न होने के कारण मुझे इस पैंशन से वंचित रहना पड़ेगा जबकि मेरे साथ के व बाद के अनेक साथियों ने सरकारी नौकरी तक हासिल की। अपनी इस बेअक्ली का मुझे रत्ती भर भी अफसोस नहीं है साथियो , बल्कि खुशी है कि मैं किसी भी सरकार का कभी भी पिट्ठू बन कर नहीं रहा । 

इस समय एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि क्या यू ट्यूब चैनल चलाने वाले या लघु व मीडियम समाचार पत्र प्रकाशित करने वाले लोग पत्रकार हैं या नहीं । मैं यह मानता हूं कि हर वह व्यक्ति पत्रकार है जो लोगों तक आथेंटिक (पुष्ट) सूचना या समाचार पहुंचाता है । पत्रकारिता के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि नारद मुनि विश्व के पहले पत्रकार थे जो धरती के लोगों और देवी देवताओं के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे । नारद जी देवी देवताओं तक धरती के आम लोगों की तकलीफें पहुंचाते थे ताकि ब्रह्मांड के व्यवस्थापक देवी देवता लोगों की तकलीफ समझ कर उचित कदम उठा सकें । नारद जी के पास न कोई अखबार था और न ही कोई न्यूज चैनल था , फिर भी वे एक बेहतरीन पत्रकार कहे जा सकते हैं । 

मेरा मानना है कि सोशल मीडिया पर सच का प्रसार करने वाले लोग भी पत्रकार हैं यदि वे सबूतों व तर्कों के आधार पर पुष्ट समाचार लोगों तक पहुंचाते हैं । यह अलग बात है कि सरकार को ऐसे पत्रकार कभी फूटी आंख नहीं सुहाते । सरकार को तो अपने पक्ष में झूठी व फर्जी सूचनाएं परोसने वाले तथा एडिटिड मनघड़ंत वीडियोज प्रसारित करने वाले लोग पसंद हैं । शर्मनाक बात यह है कि ऐसे लोगों को सरकार मोटी रकमें देकर बाकायदा पुरस्कृत तक करती है । 

रही बात पीत पत्रकारिता या ब्लैक मैलिंग की तो मुख्य धारा के मीडिया के लोग भी इसमें बड़े पैमाने पर शामिल हैं । जी न्यूज के फॉयरब्रॉड पत्रकार सुधीर चौधरी को तो सौ करोड़ रूपये की ब्लैक मैलिंग के आरोप में जेल तक जाना पड़ा था । वैसे आज की राष्ट्रीय मीडिया और उसके सिरमौर संदेह के घेरे में है। इसलिए सिर्फ छोटे अखबारों व यू ट्यूब चैनल वालों को ही कटघरे में खड़ा करना समझदारी नहीं है । जितने भी बड़े कांड आज तक लाइम लाइट में आये हैं , वे सभी पहले छोटे अखबारों और मामूली माने जाने वाले चैनल्स ने ही उजागर किये हैं । ये अलग बात है कि बाद में मुख्यधारा के मीडिया ने इसका क्रेडिट खुद ले लिया ।

यू ट्यूबर्ज को लेकर सत्ता में बौखलाहट क्यों?

किसान आंदोलन आने पर यू ट्यूबर्ज की ओर हर सरकार का ध्यान गया जो पहले नहीं था । मज़ेदार बात कि मंत्रियों की प्रेस वार्ताओं में भी इन्हें पहले कोई रोक टोक नहीं थी । 

मंत्रियों या सरकार के ध्यान में भी सब कुछ था लेकिन एक यू ट्यूबर्ज की एक पोस्ट पर हरियाणा सरकार का ध्यान ऐसा गया कि उस पर केस दर्ज कर लिया गया । अम्बेडकर दिवस चौदह अप्रैल को भाजपा जजपा नेता मनाने लोगों के बीच जायेंगे। यह एक कोशिश है किसान आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्त्ताओं द्वारा विरोध को रोकने की जिससे वे जनता के बीच जा सकें और यदि फिर भी विरोध हो तो दलित वर्ग को यह बता सकें कि किसान आपको भी बख्श नहीं रहे । यह आरोप उस यू ट्यूबर्ज की एक पोस्ट के आधार पर लगाये गये हैं और केस दर्ज कर लिया गया है कि यह संदेश हरियाणा के हित में नहीं ।  

आज सरकार के एक प्रतिनिधि ने इस यू ट्यूबर्ज की पोस्ट के साथ कमेंट करते सवाल किया है कि यह किसी पत्रकार की भाषा न होकर किसी गुंडे की भाषा लग रही है । इसलिए केस दर्ज हुआ हरियाणा के भाईचारे को बचाने के लिए । अब सवाल उठता है कि क्या यू ट्यूबर्ज को सरकार पत्रकार मान रही है या नहीं ? यदि पत्रकार मान रही है तो फिर पहले से हर वार्ता में आने क्यों दिया ? यू ट्यूबर्ज लगातार निशाने पर हैं । चाहे दिल्ली बाॅर्डर की बात हो । अब हरियाणा में यह दूसरा मामला है । राजेश कुंडू से पहले मनदीप पुनिया को निशाना बनाया जा चुका है। क्या इन की कोई मान्यता की शर्तें तय होंगीं ? पत्रकारों के संगठन ने जब बैठक की तो एक युवा यूट्यूबर ने सवाल पूछा जो बहुत जायज था कि पहले यह तो साफ होना चाहिए कि हमें बैठक में बुलाया किस हैसियत से ? हमारा विरोध भी करते हो और हमारा सहयोग भी मांगते हो ?

 यही सवाल सरकार से भी है कि जब तक यू ट्यूबर्ज आपके हित में कुछ बोलता या तैयार करता है तब उसकी भाषा की ओर ध्यान क्यों नहीं जाता ? उसकी मान्यता की बात क्यों नहीं उठती ? उसके प्रोफैशनल होने या न होने की जांच क्यों नहीं की जाती? अचानक एक केस दर्ज कर सरकार अपनी बात सामने रखती है । बीते कल यूट्यूबर धरमू पर पर जींद में कुछ किसानों ने हमला किया यह गलत है विरोध करने के और भी तरीके हैं मारपीट करना कहीं न्योचित नहीं ठहराया जा सकता।

 हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन संविधान में दूसरों को भी आजादी है। जवाहर लाल नेहरू ने इसकी बड़ी प्यारी व्याख्या दी थी कि जहां से मेरी नाक शुरू होती है , वहां से मेरी स्वतंत्रता शुरू होती है और आपकी खत्म । सरकार को बहुत पहले ही यू ट्यूबर्ज की इस बढ़ती संख्या के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए था लेकिन तब तो इनके लाखों फाॅलोअर्ज के लोभ में अपने इंटरव्यू भी देते रहे। अब सोचने का समय है और कुछ नियम व शर्तें तय करने का भी ।

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