एम के कौशिक और रवींद्र पाल सिंह——-जल्द स्वस्थ और प्रसन्न हो शुभकामनाएं है——

अशोक कुमार ध्यानचंद

आज भारतीय हाकी के दो चमकदार सितारे कोविड़ 19 कोरोना वायरस से संघर्ष कर रहे है।1980 मास्को ओलंपिक भारतीय हाकी टीम के स्वर्ण पदक विजेता महाराज कृष्ण कौशिक उर्फ एम के कौशिक और रविन्द्र पाल सिंह दोनो ही कोरोना वायरस से संक्रमित दिल्ली और लखनऊ के अस्पताल मे भर्ती है औरअपना उपचार करा रहे है।1964 टोक्यो ओलंपिक मे स्वर्ण पदक जीतने के 16 वर्ष पश्चात भारतीय हाकी टीम ने 1980 मे मास्को ओलंपिक मे भारत का खोया हुआ सम्मान सवर्ण पदक जीतकर वापिस दिलाया था।

भारत की यह जीत ओलंपिक रिकॉर्ड मे स्वर्ण पदक विजेता देश के नाम से अंकित है।1980 भारत की हाकी का 8वां ओलंपिक हाकी सवर्ण पदक है जो अपने आप मे एक ओलंपिक रिकॉर्ड है ।आज जब ये दोनो होनहार बेहतरीन ओलंपिक हाकी खिलाड़ी कोरोना से संघर्ष कर रहे है तो बरबस ही 1980 के मास्को ओलंपिक के फाइनल मैच की यादे ताजा हो उठती है और मानस पटल पर पूरा मैच जीवन्त हो उठता है जब मैच पूरी तरह से भारत की पकड़ में था और लग रहा था की भारत यह मुकाबला आसानी से जीत जायेगा कयोकी खेल समाप्ती के कुछ मिनटों पहले तक भारत

3 के मुकाबले 0 गोल से आगे चल रहा था अचानक ही खेल का रुख बदला और स्पेन ने लगातार भारतीय गोल पर हमले किये जिसके नतीजन उसे एक के बाद एक पेनाल्टी कार्नर मिल गये स्पेन के रक्षा पंक्ति के खिलाड़ी जुआन आमथ ने इन दोनो पेनाल्टी कार्नर को गोलो मे तब्दील कर स्कोर 3 -2 कर दिया । भारतीय हाकी आक्रमण पंक्ति ने एक बार फिर स्पेन के गोल पर जबरदस्त हमला किया और जिस प्रकार भारतीय खिलाडियो को ड़ी मे बाधा पहूंचायी गयी भारत को पेनाल्टी स्टोक मिल गया भारत ने पेनाल्टी स्टोक को गोल मे बदलकर स्कोर कर दिया 4-2 किन्तु अभी पास बैक ही हुआ था की स्पेन के खिलाड़ियों ने भारतीय गोल पर फिर जबर्दस्त हमला बोल दिया परिणामस्वरूप स्पेन को पेनाल्टी कार्नर मिल गया और जुआन आम्थ ने भारत के खिलाफ तीसरा गोल कर दिया और स्कोर हो गया 4-3 स्पेन के खिलाड़ी भारतीय गोल पर जबर्दस्त हमले कर रहे थे

खेल समाप्त होने मे कुछ ही मिनट शेष रह गये थेऔर लग रहा था की कया होगा ? भारत के करोडो नागरिकों , खेल प्रेमियो की और स्वयं मेरी सांसे रुक सी गयी थी किन्तु भारत ने शानदार खेल का प्रदर्शन करते हुए 16 वर्षो के पश्चात भारत के लिए हाकी का सवर्ण पदक अपने नाम कर लिया ।सांसे रुकी भी, थमी भी परंतु भारतीय हाकी के खिलाड़ियों ने धेर्य संयम साहस के साथ मुकाबला किया और मैदान से अपनी धरती देश के लिए सवर्ण पदक जीतकर विजेता बनकर देश का नाम रोशन कर दिया ।आज उसी टीम के दो खिलाड़ी एम के कौशिक और रवींद्र पाल सिंह अपनी सांसो के लिए संघर्ष कर रहे है जिन्होने अपनेअद्भूत खेल से भारत के करोडो लोगो की रुकी हुई सांसो को ओलंपिक मे विजय दिलाकर थमने नही दिया था आज वे स्वयं अपनी सांसो के लिए संघर्ष कर रहे है और इसलिये ही आज हम सब भारत के खिलाडियो , नागरिको ,खेल प्रेमियो की यही कामना और दुआ है की ये दोनो खिलाड़ियों की सांसे वैसे ही चलती रहे जैसी सांसे 1980 के ओलंपिक फाइनल मैच मे इन खिलाड़ियों की चल रही थीऔर हमारी रुकी हुई सांसो को उन्होने अपने खेल से विजय और उत्साह से भर दिया था। दोनो ही खिलाड़ी जल्द से जल्द स्वस्थ होकर पुन भारतीय हाकी की सेवा के लिए देश को उप्लब्ध हो सकेगे यही सारे देश की कामना है।

उन सभी महानुभावो का धन्यवाद है जिन्होने इस कठिन समय में दोनो खिलाड़ियों को समय रहते आर्थिक मदद दी है ।विशेष रुप से हाकी इंडिया के पदाधिकारियों का,उत्तरप्रदेश खेल विभाग का, पूर्व ओलंपिक एव अन्तर्राष्ट्रिय हाकी खिलाड़ियों का धन्यवाद है जिनके अथक प्रयासों ने समय रहते इन दोनो ही खिलाड़ियों की चिंता की जो वास्तव मे भारतीय हाकी की खुशबू है एक दुसरे की मदद के लिए आगे आना और यह खुशबू उसे अपने महान हाकी खिलाड़ियों से विरासत मे मिली है।दोनो ही खिलाड़ियों को मेरी ओर से ,देशवासियो की और से शुभकामनाएं है।

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